कोरोना, यास से बाधित हुआ गांधी सेतु के पूर्वी लेन का निर्माण, महज 10% कर्मी कर रहे काम, खोल रही सरकारी दावों की पोल, जानिए पूरा मामला

कोरोना संक्रमण ने पूरे देश को अपने चपेट में ले रखा है। इसकी दूसरी लहर के बीच चरमराती स्वास्थ वयवस्था ने सबको अस्त व्यस्त कर दिया। सरकार ने संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए लॉकडाउन लगाया हुआ है। कोराना की दूसरी लहर की मार से पटना, गांधी सेतु के पूर्वी लेन का निर्माण कार्य पहले से ही बेहद धीमा हो गया था। बाकी कसर यास तूफान और उसके साथ हुई चक्रवाती बारिश ने पूरी कर दी। बतादें कि पिछले दो – तीन दिनों से यह काम लगभग बंद को गया है।

बताया जा रहा है कि इस बार थोड़ी देरी से 3 जून तक देश में मौनसून भी दस्तक देगा। मौजूदा हालत यह हैं कि मानसून आने के पहले अब नदी पाट का काम पूरा नहीं हो पायेगा और इस क्षेत्र में बचे कार्य को पूरा करने के लिए चार-पांच महीने का इंतजार करना पड़ेगा। दरअसल बरसात के बाद नदी के दोनों ओर फैले पानी के सूखने के बाद ही काम दोबारा शुरू हो पायेगा। लिहाज़ा इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में देर होगी।

अप्रैल से महज 10% कर्मी कर रहे काम

लॉकडाउन में सबको काम मिले, कोई भूखा न रहे, वहीं मनरेगा में अधिक से अधिक काम मिले इसके लिए मुख्यमंत्री के आदेश पर ग्रामीण विकास विभाग ने मनरेगा के काम की जिलावार समीक्षा शुरू कर दी है। ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार खुद ऑनलाइन बैठक कर योजनाओं और जिला के हालात का जायजा लेते रहे।

दरअसल कि गांधी सेतु के पूर्वी लेन के निर्माण कार्य में बीते मार्च महीने तक हर दिन 1100 कर्मी लगे रहते थे, जिनमें 400 इंजीनियर और 700 टेेक्निशियन व मजदूर शामिल थे। लेकिन अप्रैल के पहले सप्ताह में कोरोना की नयी लहर के कारण इनमें कमी आनी शुरू हुई और हर दिन बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित होने की वजह से अप्रैल के अंत तक इनकी संख्या घट कर महज 100 के आसपास रह गयी।

इसप्रकार पिछले एक महीना से लगभग 10% मजदूर ही यहां काम कर रहे हैं। इसके कारण पुल के पुराने कंक्रीट निर्मित सुपर स्ट्रक्चर को काटकर हटाने और उसकी जगह स्टील का सुपरस्ट्रक्चर बनाने का काम लगभग बंद हो गया है और बरसात से पहले डूब क्षेत्र का काम पूरा करने का प्रयास हो रहा था. हालांकि उसके पूरे होने की भी अब बहुत कम संभावना दिख रही है।

पिलर संख्या 27, 29, 31 और 35 पर पियर कैप का निर्माण जरूरी

मॉनसून के पहले दौर की बारिश के बाद ही नदी के जल में सामने वाले पिलर संख्या 27 से 39 तक का क्षेत्र नदी के उन तटवर्ती क्षेत्रों में शामिल हैं। इनमें पिलर संख्या 27, 29, 31 और 35 पर बनने वाले चार पियर कैप का निर्माण अभी भी अधूरा है, जिसे पूरा करने के लिए उपलब्ध मानव संसाधन को लगाया गया था। लेकिन यास के कारण निर्माण स्थल के आसपास जलजमाव ने काम बाधित कर दिया है।

लॉकडाउन के डर से प्रवासी मजदूरों ने किया था बिहार का रुख

बतादें कि देश भर में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर कहर बरपा रही थी। रोजाना कोरोना के हजारों मरीज मिल रहे थी। स्थिति दिन पर दिन भयावह होती जा रही थी। ऐसे में लॉकडाउन के डर से प्रवासी मजदूरों ने एक बार फिर से वापस बिहार लौटने लगे थी। खासकर महाराष्ट्र में काम करने वाले सैकड़ों मजदूर रोजाना बिहार लौट रहे थी। इसी क्रम सूबे के पटना, मुजफ्फरपुर एवं दुसरे जिलों में लौटे सैकड़ों प्रवासी मजदूरों से जब उनके लौटने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वहां स्थिति काफी भयावह है। लॉकडाउन लगे, इससे पहले हमलोग घर पहुंच जाना चाहते हैं।

मजदूरों ने कहा काम नहीं मिला तो जाएंगे वापस

वहीं, जब उनसे वापस जाने के संबंध में पूछा गया तो कई मजदूरों ने कहा कि वे अब वापस नहीं जाएंगे। यहीं कोई काम-धंधा करके अपना जीवन यापन करेंगे। जबकि कुछ मजदूरों ने कहा कि वो वापस नहीं जाना चाहते, लेकिन अगर बिहार सरकार उन्हें रोजगार के अवसर नहीं देगी, तो मजबूरन उन्हें अपनी रोजी-रोटी के लिए बाहर जाना ही होगा। स्थिति सामान्य होने के बाद वे ये फैसला करेंगे कि आखिर उन्हें क्या करना है।

राज्य सरकार का दावा

इधर, बिहार सरकार ने प्रवासी मजदूरों के आने को लेकर खुद को तैयार बताया था। प्रवासी मजदूरों की वापसी को लेकर नीतीश सरकार भी अभी से सक्रिय दिखती रही। सरकार ने बिहार में हर जरूरतमंद को काम दिलाने का फैसला किया। राज्य के ग्रामीण विकास विभाग ने इसके लिए पूरा प्लान तैयार कर रखा। बीते दिनों विभाग के मंत्री श्रवण कुमार ने कहा था कि हम बिहार वापस लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को तत्काल जॉब कार्ड बनाकर देने को तैयार हैं। लेकिन कोरोना और यास के कारण अब केवल 10% मजदूर ही कर रहे काम, शायद यह तमाम सरकारी दावों की पोल ख़ोल रहे हैं।