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बदलते समय और समाज में सुनिए दुष्यंत कुमार की रचना ‘कहीं पे धूप’
बदलते समय और समाज में दुष्यंत कुमार की रचनाएं और भी प्रासंगिक होती रही है। आज प्रस्तुत है दुष्यंत कुमार की रचना ‘कहीं पे धूप’… कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बै…