“देसी खिलौना उद्योग : वर्तमान परिदृश्य एवं संभावनाएं” पर वेबिनार, एसके मालवीय ने कहा-खिलौना उद्योग में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की संकल्पना डालेगा दूरगामी प्रभाव

प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो पटना की ओर से “देसी खिलौना उद्योग: वर्तमान परिदृश्य एवं संभावनाएं” विषय पर वेबिनार का आयोजन किया गया। इस वेबिनार का आयोजन 27 फरवरी को आयोजित होने वाले ‘भारतीय खिलौना मेला 2021’ से एक दिन पहले किया गया है। वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पीआईबी के अपर महानिदेशक एसके मालवीय ने कहा कि खिलौना शुरुआत से ही हमारी सभ्यता और संस्कृति का हिस्सा रहा है। खासकर मिट्टी के खिलौनों का प्रचलन हमारी संस्कृति से सीधे जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि बीते वर्षों में खिलौनों की दुनिया में आमूलचूल परिवर्तन आ गया है। अब खिलौने मिट्टी के ना बन कर प्लास्टिक आदि से बनाए जा रहे हैं। खिलौनों का अब एक बड़ा बाजार हो गया है। ऐसे में माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा खिलौना उद्योग के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की संकल्पना दूरगामी प्रभाव डालेगा। उन्होंने कहा कि खिलौना उद्योग को राष्ट्रीयता की भावना के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।

खिलौना उद्योग पर चर्चा बेहद जरूरी

वेबिनार में विषय प्रवेश संबोधन के दौरान पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि खिलौने का बाजार बहुत बड़ा है और अब वक्त आ गया है जब देसी खिलौनों को उद्योग का शक्ल दिया जाए और इसे बाजार मुहैया कराया जाए। इसलिए ऐसे में खिलौना उद्योग पर चर्चा बेहद जरूरी हो जाती है। उन्होंने कहा कि पुराने जमाने में लोग खिलौने को कम और खेल को अधिक जानते थे। लेकिन समय बीतने के साथ लोग खेल को भूलते जा रहे हैं और खिलौने का महत्व बढ़ गया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि खिलौने ने अब खेल की जगह ले ली है।

हमारे देश में खिलौनों का इतिहास बेहद पुराना

वेबिनार में अतिथि वक्ता के रूप में शामिल उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान, उद्योग विभाग, बिहार सरकार के निदेशक अशोक कुमार सिन्हा ने खिलौनों की ऐतिहासिकता पर बात करते हुए कहा कि हमारे देश में खिलौनों का इतिहास बेहद पुराना है। खासकर बिहार में खिलौनों का चलन प्रागैतिहासिक काल के साथ-साथ पाल काल, गुप्त काल, मौर्य काल में भी देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि विदेशी यात्रियों के संस्मरण में हमें मिट्टी के खिलौने का जिक्र मिलता है। पुराने जमाने में लोग हाथ से मिट्टी के खिलौने बनाया करते थे। लड़कियों के लिए विशेष खिलौना गुड़िया प्रचलित थी। गुजरे जमाने में खिलौनों के जरिए शिक्षा देने की भी प्रथा थी। खिलौनों से बच्चों को रचनात्मकता का संदेश भी मिलता था। खिलौनों का प्रयोग देव रूप में भी हुआ है। धार्मिक उत्सवों में भी इसका इस्तेमाल होता आया है। उन्होंने कहा कि वैशाली में 1864 में खुदाई की गई थी, जिसमें बड़े पैमाने पर मिट्टी के खिलौनों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ये खिलौने आज भी वैशाली के म्यूजियम में देखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि पटना के खिलौनों का निमार्ण कार्य बहुत पुराना है। यहाँ लकड़ी के छोटे-छोटे उत्कृष्ट खिलौने मिलते थे। अंग्रेजों के आगमन के बाद खिलौनों में औद्योगिकीकरण देखा गया। जहां पहले लकड़ी, कपड़ा, सिक्की, मिट्टी, टेराकोटा इस्तेमाल होता था ; वही अंग्रेजों के आने के बाद धातु का उपयोग होने लगा। जो खिलौने कभी हाथ से बनते थे, वहीं अब कारखानों में बनने लगे। उन्होंने कहा कि आज भी बिहार के कई स्थानों पर खिलौनों का निर्माण किया जाता है। पटना सिटी इलाके में काठ के खिलौने आज भी प्रचलित हैं। अखरोट व नारियल के छिलके से बनाया कछुआ आकर्षण का मुख्य केंद्र है। पटना का गुड़िया उद्योग, दरभंगा का मिट्टी खिलौना उद्योग, मिथिलांचल और मधुबनी के सिक्की के खिलौने पूरे देश में प्रचलित है। सरकार के ‘वोकल फॉर लोकल’ पहल से खिलौना उद्योग का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है।

खिलौना उद्योग का अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका

वेबिनार में अतिथि वक्ता के रूप में शामिल एमएसएमई, पटना के सहायक निदेशक नवीन कुमार ने कहा कि देश के विकास में एमएसएमई सेक्टर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। उन्होंने कहा कि भारत में कुल छह करोड़ एमएसएमई उद्योग हैं, जिससे 20 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। इसमें खिलौने का उद्योग बहुत व्यापक व महत्वपूर्ण है। खिलौना उद्योग का अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि भारत से कई तरह के खिलौने निर्यात किए जाते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि खिलौना उद्योग के लिए एक उचित मार्केटिंग प्लेटफार्म हो, जिससे कि हम अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहुंच और पकड़ बना सकें। उन्होंने कहा कि खिलौनों के व्यापक प्रचार के लिए मेलों का आयोजन महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत सरकार द्वारा इसके लिए आर्थिक सहायता भी दी जाती है।

खिलौना उद्योग में रोजगार की संभावना अत्यधिक

वेबिनार में अतिथि वक्ता के रूप में शामिल सृजनी पटना की निदेशिका श्रीमती हेमलता शेखावत ने कहा कि आज के परिवेश में सबसे बड़ी समस्या है बढ़ती बेरोजगारी। हर युवा की चाहत है रोजगार, जिसमें लागत कम और आय ज्यादा हो। भारत में खिलौने का बाजार 25 हजार करोड़ से भी ज्यादा का है, ऐसे में रोजगार की संभावना अत्यधिक है। खिलौना आज भी प्रचलित है। उन्होंने कहा कि बच्चों के बीच दूसरे कीमती उपहारों से ज्यादा एक सस्ते खिलौने का महत्व है। यही कारण है कि इसकी सुरक्षा मानक का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा कि इस रोजगार से जुड़ने के लिए जरूरी है कि हमारे पास करने के लिए कुछ नया होना चाहिए क्योंकि आज बाजार में प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। साथ ही बच्चों के पसंद का ख्याल रखना भी बहुत अहम है, जिसका नतीजा हमें आमदनी के रूप में दिख सकता है।

अमेजॉन पर लकड़ी के खिलौनों की मांग ज्यादा

वेबिनार में अतिथि वक्ता के रूप में शामिल अमेजॉन, इंडिया के दीपक कुमार ने कहा कि पांच साल से अमेजॉन जैसा ऑनलाइन प्लेटफार्म ‘अमेजॉन कारीगर’ व ‘अमेजॉन सहेली’ नामक दो प्लेटफार्म चला रहा है। अमेजॉन कारीगर के तहत हाथ से बने खिलौनों का प्रचार किया जाता है, जबकि अमेजॉन सहेली के तहत महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे संस्थाओं को विशेष छूट का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि अमेजॉन पर लकड़ी के खिलौनों की मांग ज्यादा है। जहां मध्यप्रदेश में चमड़े के खिलौने का चलन है, वहीं राजस्थान में कठपुतली, उत्तरप्रदेश में लकड़ी व तमिलनाडु में लकड़ी के खिलौने का बाजार व्यापक है।

बाल मन को एक बार फिर से देसी की ओर मोड़ने की कोशिश

वेबिनार का संचालन करते हुए पीआईबी के सहायक निदेशक संजय कुमार ने कहा कि खिलौना बचपन को सुहाना बनाता है। यह बच्चों के मन में कोई खोट और ऊंच-नीच की भावना नहीं लाता। लेकिन बदलते दौर में देसी खिलौनो को प्लास्टिक और धातु के आधुनिक खिलौनों ने पीछे कर दिया है। खेल-खिलौनो के प्रति जो बाल मन में रचनात्मकता दिखती थी, वह कम हो गयी है। विदेशी खिलौने हावी हो गए हैं। ऐसे में बाल मन को एक बार फिर से देसी की ओर मोड़ने की कोशिश है। स्वदेशी खिलौना उद्योग के विकास हेतु भारत सरकार द्वारा आयोजित “भारतीय खिलौना मेला 2021” इसी बात ओर संकेत करता है।

वेबिनार में धन्यवाद ज्ञापन फील्ड आउटरीच ब्यूरो, छपरा के क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी पवन कुमार सिन्हा ने किया। वेबिनार में रीजनल आउटरीच ब्यूरो (आरओबी), पटना के निदेशक विजय कुमार, बिहार स्थित सभी एफओबी एवं आरओबी के अधिकारी एवं कर्मचारी सहित आमजन मौजूद थे।