सुप्रीम कोर्ट कैदियों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए बोला, शर्तों के साथ कैदियों की रिहाई पर विचार करे सरकार, आधे से ज्यादा समय सलाखों के पीछे गुज़ार चुके कैदियों की सजा होगी माफ

पूरे भारत के विभिन्न कोर्ट के समक्ष कुल तीन करोड़ 77 लाख मामलों में से करीब 37 लाख मामले पिछले 10 सालों से लंबित पड़े हुए हैं। यह जानकारी 2020 में राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) ने दी थी, जो राष्ट्रीय स्तर पर अदालतों द्वारा किए जा रहे कार्यों की निगरानी करता है। साथही लगातार अदालतों में मुकदमों का बोझ भी लगातार बढ़ रहा है तो वहीं जेलों में कैदियों की तादाद। जेल में कैदियों के लगातार बढ़ रहे बोझ को कम करने की गरज से सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों की सजा में सशर्त कटौती के निर्देश दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अपराधियों को उनके लिए तय की गई सजा अवधि में आधे से ज्यादा समय सलाखों के पीछे गुजारने के बाद रिहा करने पर विचार किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन साल, पांच साल, सात साल और 10 साल के साथ ही उम्र कैद की सजा पर भी अदालतों और सरकारों को अपने विवेक से विचार करने के लिए कहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के मुताबिक आधी से ज्यादा सजा काटने के बाद अपराधी को कुछ शर्तों के साथ रिहा किया जा सकता है। इस दिशानिर्देश की बारीकियां भी अदालत ने स्पष्ट कर दी हैं।

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि ऐसे कैदी अगर लिखित में अदालत को ये आश्वासन देते हैं कि उन्होंने जो अपराध किया है उसके लिए उन्हें पछतावा है। कानून ने जो भी सजा उन्हें दी है, वह सही है तो सरकार ऐसे कैदियों की शेष बची सजा माफ करने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।

ये होगी कैदियों की रिहाई की प्रक्रिया

जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि सरकार अपने विशेषाधिकार के तहत ऐसे कैदियों को जेल से रिहा करने की सिफारिश और कार्यवाही भी कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए समय सीमा भी तय कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि हर जिला जेल के अधीक्षक ऐसे कैदियों की पहचान कर उनकी सूचना और सूची जिला विधिक सेवा समिति को देंगे। विधिक सेवा समिति इनकी बाकायदा अर्जी बनाएगी और उसे सरकार को भेजेगी। राज्य सरकारें इन अर्जियों पर तय समय सीमा के भीतर रिहाई को लेकर फैसला लेंगी।

दिल्ली और छत्तीसगढ़ में किया जाएगा शुरू

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि इस योजना के तहत जिन कैदियों की सजा माफ की जाएगी, ऐसे दोषियों को उच्च न्यायालय में दायर अपनी अपील भी वापस लेनी होगी। सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि ये पायलट प्रोजेक्ट दिल्ली और छत्तीसगढ़ के उच्च न्यायालय से शुरू किया जाएगा। इसकी रिपोर्ट जनवरी 2022 में सुप्रीम कोर्ट को दी जाएगी।

कोर्ट ने यह भी साफ किया इस आदेश का मकसद यह नहीं कि सजा काट रहे दोषियों से जबरदस्ती कबूल नामा लिखवा कर सजा के खिलाफ अपील करने के उनके अधिकार को ही खत्म कर दिया जाए। ये निर्देश कैदियों के लिए स्वैच्छिक होगा। उनकी मर्जी हो तो वह इस पर अमल कर सकते हैं। कोर्ट ने ये भी साफ किया कि उम्र कैद की सजा वाले मामलों में जहां दोषी 8 साल या 16 साल की सजा काट चुका हो तो उनके लिए भी जिला विधिक सेवा समिति उच्च न्यायालय को अर्जी भेज सकती है। सरकार तय समय सीमा में इस पर भी कार्रवाई करेगी।

कोर्ट ने यूपी सरकार को जारी किया नोटिस

कैदियों को छोड़ने के मामले में इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को भी नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश इस मामले में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है। यहां ऐसे कैदियों की तादाद भी ज्यादा है, जिन्हें उम्र कैद या ज्यादा अवधि की सजा हुई हो। कोर्ट ने यूपी सरकार को ये चेतावनी भी दी कि यदि एक महीने में जवाब नहीं आया तो मुख्य सचिव को अदालत में तलब किया जाएगा। वहीं, बिहार सरकार ने ऐसी सभी सूचनाएं राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को दे दी है। अब मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी में होगी।