कोरोना के बढ़ते कहर के के बीच अब ब्लैक और व्हाइट फंगस के बाद अब यैलो फंगस ने भी दस्तक दे दी है। दिल्ली-एनसीआर में गाजियाबाद से मामला सामने आया है। बतादें कि यैलो फंगस को ब्लैक और व्हाइट फंगस से ज्यादा खतरनाक माना जा रहा है। जानकारी के मुताबिक ईएनटी सर्जन डॉक्टर बृज पाल त्यागी के अस्पताल में इसके मरीज का इलाज किया जा रहा है।
क्या है इस बीमारी के लक्षण
जानकारों के मुताबिक सुस्ती, कम भूख लगना या बिल्कुल भी भूख न लगना और वजन कम होना मुकोरसेप्टिकस यानी यैलो फंगस के लक्षण हैं। समय के साथ रोगी में इसके और गंभीर लक्षण दिखने लगते हैं, जिसमें मवाद का रिसाव करना और संभवतः खुले घाव का धीमी गति से ठीक होना और सभी घावों की धीमी गति से भरना, कुपोषण और ऑर्गन फेलियर और आखिरकार आंखों का धंसना शामिल हैं।
गौरतलब है कि यैलो फंगस एक घातक बीमारी है क्योंकि यह आंतरिक रूप से शुरू होता है और इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप किसी भी लक्षण के मिलने पर डॉक्टर से संपर्क कर उपचार शरू करें। डॉ प्रभात रंजन ने बताया कि अभी इसका एकमात्र इलाज इंजेक्शन Amphotericin B है जोकि एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीफ़ंगल है।
क्या है इस बीमारी की वजह
आस-पास में होने वाली गंदगी का यैलो फंगस का मुख्य कारण बताया जा रहा है। विशेषज्ञों की माने तो इससे बचाव के लिए अपने घर के आस पास के जगह को साफ़ रखें, जितना हो सके स्वच्छता पर धयान दें , साथही बैक्टीरिया और फंगस के विकास को रोकने में मदद करने के लिए पुराने खाद्य पदार्थों को जल्द से जल्द हटाना बहुत महत्वपूर्ण है।
घर की ह्यूमिडिटी भी इसके विकास में मायने रखती है। दरअसल बहुत अधिक ह्यूमिडिटी बैक्टीरिया और फ़ंगस के विकास को बढ़ावा दे सकती है। सही ह्यूमिडिटी जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं वह 30% से 40% है, बहुत अधिक नमी होने की तुलना में कम ह्यूमिडिटी से निपटना आसान है। वॉटरटैंक में नमी को कम करना और अच्छी प्रतिरोधक प्रणाली भी पीले फंगस की संभावना को कम कर सकती है।
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