पहली पुण्यतिथि पर इस महान राजनेता को जरूर याद कीजिए

आज जॉर्ज फर्नांडिस की पहली पुण्यतिथि है। देश उन्हें याद कर रहा है। आखिर वो कौन सी वजह है कि जॉर्ज फर्नांडिस से जनता इतना स्नेह करती रही है। आइये जानते हैं जॉर्ज फर्नांडिस के जीवन से जुड़े कुछ वैसे पहलुओं को जिसने जॉर्ज फर्नांडिस को एक मजदूर नेता से एक जनप्रिय नेता बना दिया।

1974 में हुई रेल हड़ताल

बात 1973 की है और इस समय से पहले और आजादी के बाद तक तब तीन वेतन आयोग आ चुके थे, लेकिन रेल कर्मचारियों की सैलरी को लेकर कोई ठोस बढ़ोतरी नहीं हुई थी. इस बीच जॉर्ज फर्नांडिस नवंबर 1973 को आल इंडिया रेलवेमैन्स फेडरेशन के अध्यक्ष बने.

उनके नेतृत्व में यह फैसला लिया गया कि वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल की जाए. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर कोऑर्डिनेशन कमिटी बनाई गई और 8 मई 1974 को बॉम्बे में हड़ताल शुरू हो गई और इस हड़ताल से न सिर्फ पूरी मुंबई थम सी गई बल्कि पूरा देश थम सा गया था. इस हड़ताल में करीब 15 लाख लोगों ने हिस्सा लिया था. बाद में कई और यूनियनें भी इस हड़ताल में शामिल हो गईं तो हड़ताल ने विशाल रूप धारण कर लिया.

रेलवे ट्रैक खुलवाने के लिए बुलानी पड़ी सेना

जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में इस हड़ताल में टैक्सी ड्राइवर, इलेक्ट्रिसिटी यूनियन और ट्रांसपोर्ट यूनियन भी शामिल हो गईं. मद्रास की कोच फैक्ट्री के करीब 10 हजार मजदूर भी हड़ताल के समर्थन में सड़क पर उतर आए. गया में रेल कर्मचारियों ने अपने परिवारों के साथ पटरियों पर कब्जा कर लिया. हड़ताल का असर पूरे देश में दिखने लगा और पूरा देश थमता नजर आया.

हड़ताल के बढ़ते असर को देखते हए सरकार ने इन हड़तालियों पर सख्त रुख अपनाया. सरकार ने कई जगहों पर रेलवे ट्रैक खुलवाने के लिए सेना को तैनात कर दिया.

जब जेल में भरे गये 30 हजार से ज्यादा मजदूर

एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि हड़ताल तोड़ने और निष्प्रभावी करने के लिए 30,000 से ज्यादा मजदूर नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया. हालांकि तीन सप्ताह बाद 27 मई को बिना कोई कारण बताए कोऑर्डिनेशन कमिटी ने हड़ताल वापस लेने का ऐलान कर दिया.

इस तरह देश की सबसे सफल रेल हड़ताल का समापन हो गया. हालांकि कहा जाता है कि यह हड़ताल अपने मकसद में कामयाब नहीं रहा, लेकिन भारत के इतिहास में यह टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ.

आपातकाल का बना आधार

इस देशव्यापी रेल हड़ताल की वजह से जॉर्ज फर्नांडिस राष्ट्रीय स्तर पर छा गए और देश में उनकी पहचान फायरब्रांड मजदूर नेता के तौर पर कायम हो गई. कहा जाता है कि यह हड़ताल इंदिरा गांधी की देश में आपातकाल लागू करने को लेकर एक बहाने के रूप में काम कर डाला.

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जून 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी तो वह ’इंदिरा हटाओ’ लहर के नायक बनकर उभरे. आपातकाल के दौरान वह लंबे समय तक अंडरग्राउंड रहे, लेकिन एक साल बाद उन्हें बड़ौदा डाइनामाइट केस के अभियुक्त के रूप में गिरफ्तार कर लिया गया.

पादरी बनने की थी चाहत

हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली और कोंकणी भाषाओं के जानकार जॉर्ज फर्नांडिस का जन्म 3 जून, 1930 को कर्नाटक के मंगलुरु में हुआ था.

फर्नांडिस जब 16 साल के थे तो वह क्रिश्चियन मिशनरी में पादरी बनने की शिक्षा लेने गए, लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा. और इसके बाद वह 1949 में महज 19 साल की उम्र में रोजगार की तलाश में मुंबई आ गए.

मुंबई में वह इस दौरान लगातार सोशलिस्ट पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के कार्यक्रमों में शामिल होते रहे. उनकी छवि एक विद्रोही नेता की रही. फर्नांडिस समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से प्रेरणा लिया करते थे. 50 और 60 के दशक में उन्होंने कई मजदूर हड़तालों और आंदोलनों का नेतृत्व किया.

9 बार रहे सांसद

यूनियन नेता, राजनेता और पत्रकार जॉर्ज फर्नांडीस जनता दल के प्रमुख सदस्य रहे थे. जॉर्ज ने ही समता पार्टी की स्थापना की थी. 1994 में जनता दल छोड़कर उन्होंने समता पार्टी का गठन किया था. अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने रेलवे, उद्योग, रक्षा, संचार जैसे अहम मंत्रालय संभाले.
जॉर्ज फर्नांडिस ने 1967 से 2004 तक 9 बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की. वह अगस्त 2009 से जुलाई 2010 के बीच तक राज्यसभा सांसद भी रहे थे.

जॉर्ज फर्नांडिस अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए के शासनकाल में 1998 से 2004 तक रक्षा मंत्री रहे. कारगिल युद्ध और पोखरण में परमाणु परीक्षण के दौरान फर्नांडिस ही रक्षा मंत्री थे. लेकिन उन्होंने ताबूत घोटाले मामले में विवाद को लेकर पद से इस्तीफा दे दिया था।