गांधी शिल्प बाजार में मौजूद है देशभर की सुंदर कलाकृतियां, ग्राहक नहीं

राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में अम्बपाली हस्तकरघा एवं हस्तशिल्प बहुराज्जीय सहकारी समिति की ओर से गांधी शिल्प बाजार लगाया गया है। यहां देशभर के उद्यमियों ने स्टॉल लगाया है, जहां हाथ से बनाए गये सामानों की प्रदर्शनी लगी है। आपको बता दें कि यह मेला हस्त कलाओं को प्रदर्शित करने के लिए 91 स्टॉल का संगम है। इस गांधी शिल्प बाजार से गांधी मैदान की रौनक तो बढ़ी है, लेकिन उद्यमियों के चेहरे मलीन हैं।

बात दरअसल ये है कि 8 फरवरी से शुरू हुए इस मेले में अब तक खरीदारों का रूझान नहीं दिख रहा है। लेकिन उद्यमियों को आने वाले दिनों से काफी उम्मीदें हैं। उन्हें उम्मीद है कि शेष दिनों में ग्राहक उनके सामानों को खूब पसंद करेंगे और खरीदारी करेंगे। इस मेले की खास बात ये कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में बेहतर कदम साबित हो रहा है, क्योंकि मेले में ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की बहुलता है।

हाथ की कलाकारी से चलती है जिंदगी

ये हैं जमशेदपुर की उर्मिला… इनके हाथों से बने सामान उनके स्टॉल, आपके घर या दफ्तर में चार चांद तो लगाते हैं… लेकिन उनकी जिंदगी में कोई खास बदलाव नहीं हो रही। उर्मिला बताती हैं कि वो इस काम से इतना हीं कमा पाती हैं कि जितने से जिंदगी की जरूरतें भी काफी मशक्कत के बाद पूरी हो पाती है। उन्होंने बताया कि वे किसी तरह से रोजी-रोटी और बाल-बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए कमाई कर पाती हैं लेकिन गांधी शिल्प बाजार में उनके भी आसार नहीं दिख रहे हैं। क्योंकि मेले में ग्राहक न के बराबर आ रहे हैं। उर्मिला के स्टॉल पर अलग-अलग कीमतों पर आपको अलग अलग सामान मिल जाएंगे। उनके स्टॉल पर सजे सामानों में बांस का इस्तेमाल कर बनाए गये टेबल लैंप, ट्रे, फ्लावर पॉट, वॉल हैंगिंग और पेन स्टैंड जैसे आकर्षक सामान उपलब्ध हैं।

आने वाले दिनों से उम्मीद

औरंगाबाद के मालवीय पाल की पहचान कपड़ों पर अपनी कला को उतारने से है। हाथ से बनाये चादर, टेबल क्लॉथ और तकिया की खोल से इन्हें कमाई की बड़ी उम्मीदें थी, मेले में ग्राहकों की कमी इन्हें खल रही है। जब हमने उनसे इसकी वजह पूछा तो उन्होंने  शिफ्ट इंडिया को बताया कि गांधी मैदान में और भी ऐसे मेले और एक्सपो लगे हुए हैं। शायद इसी वजह से ग्राहक अभी गांधी शिल्प बाजार की ओर आकर्षित नहीं हो पा रहे हैं।

                                        सन्नाटा का जेब पर सीधा असर

रंग-बिरंगे जूतियों को स्टॉल पर सजाये बनी शांत बैठे थे। मोबाइल में गुम थे। पंजाब की गलियों में फैली जूतियों की आहट को पटना की सड़कों पर उतारना, इन्हें काफी मुश्किल सा लग रहा था। बनी ने बताया कि जब मेले में ग्राहक हीं नहीं तो वे समय गुजारने के लिए मोबाइल का सहारा ले रहे हैं।

बांस पर बने हैं बुद्ध

पश्चिम बंगाल की शांति बुशी ने बताया कि उनके स्टॉल पर अब तक बोहनी मात्र हीं हुआ है। सूखे बांस का उपयोग कर एक से बढ़कर एक सजावट के सामान यहां मौजूद है। बांस पर शांति मूर्ति बुद्ध की तस्वीर पिरोये गये हैं। इसके साथ हीं दीवार पर लगने वाले और टेबल पर रखने वाले विभिन्न प्रकार की हस्तनिर्मित सामग्री मेले की खूबसूरती बढ़ा रही है।

                                        शांत है झूले पर बैठी चिड़िया

इस स्टॉल पर जाइये तो अपने घोंसले में बैठी सुंदर सुंदर चिड़िया आपको मिलेगी। रंग-बिरंगी ये चिड़िया ऐसा प्रतीत होती है मानों सचमुच का। हाथ से बनाये गये इन कलाकारी में मात्र उन चीजों की हीं कमी रह जाती है, जो मानव नहीं बना सकता। इसी स्टॉल पर विभिन्न प्रकार के फूल और गुलदस्ता भी सजे हैं। वहां जाइये तो ऐसा लगेगा कि किसी बाजार में नहीं बल्कि किसी बगीचे में घुस आये हैं। लहलहाते गुलाब के फूल आपको जबरन खींच ले जाती है, लेकिन कोई खरीदार न होने के कारण फूलों की खूबसूरती फीकी हो जाती है। जूट और अन्य सामानों का इस्तेमाल कर बनाया गया झूला भी है, जिस पर झूल रही है फुदकती दो नन्हीं चिड़िया। हस्तशिल्प का कंसेप्ट इन फुदकती चिड़ियों को बागानों से उठाकर बाजार तक तो पहुंचा दिया, लेकिन जरूरत है इन शिल्पकारी, कलाकारी और इनसे मिलते संदेश पर विचार करने की।

रिपोर्ट : अविनाश कुमार