निःशब्द….

निःशब्द…. ही हो जाएंगे, जब वीरान सड़कों पर मजदूरों का कारवां देखेंगे तो। जिस हाइवे और एक्सप्रेसवे की रौनक सड़सड़ाती हुई गाड़ियों के गुजरते काफिलों से बढ़ती थी, वह आज शांत है। क्योंकि कोरोना के खौफ के चलते दुनियां शांत हो गयी है। भारत लॉकडाउन है। लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं। लेकिन वो लोग जो परदेस जाकर अपने परिवार का गुजर-बसर किया करते थे, उनका क्या ? रोज कमाते थे, तब खाते थे। कमाई खत्म तब खाने को मोहताज हैं। वैसे सरकार कह रही है कि इन मजदूरों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था की जा रही है। रास्ते में कई एनजीओ और मानवता को समझने वाले दरियादिली इंसानों की मदद से इन्हें खाना भी दिया जा रहा है। लोग अपना पलायन रोकें ताकि कोरोना वायरस को रोका जा सके। लेकिन पेट की आग कहां बुझती ? जिंदगी की गाड़ी चलाने के लिए जिनके पैर दिल्ली, कोलकता, भोपाल, मुंबई, लखनउ और पटना जैसे महानगरों में चला करते थे, वो आज चल रहे हैं वीरान और सुनसान सड़कों पर। अपने घर जाने की बेसब्री है। जरूरत के सामान सिर पर, गोद में लिए बच्चे और सीधे अपने मंजिल को निहारकर चलती, ये निःशब्द कर देने वाली तस्वीरें देखिए…

ट्रकों में भेड़-बकरियों की तरह लदकर घर आते मजूदर
पैदल हीं चल दिए हजारों किलोमीटर की सफर पर
कुछ ठहरे हुए, कुछ चलते हुए
परिवार और जरूरी सामान के साथ घर है मंजिल
बदन की थकावट और चेहरे पर चिंता
संकट की घड़ी में याद आये मेले के दिन
नन्हें मुसाफिर को पानी पिलाते लोग
गाड़ी नहीं होने के बाद भी ठेले पर जाता परिवार
दिन ढ़ल गया, लेकिन घर पहुंचने का हौसला कायम है