जालियांवाला बाग हत्याकांड : कुएं से निकली थी लाशें, आज भी जीवित है दरिंदगी के निशान

जालियांवाला बाग हत्याकांड ब्रिटिश इतिहास का वो बदनुमा पन्ना है जो अंग्रेजों के अत्याचारों को दर्शाता है। आइए विस्तार से जानते हैं इस काले दिन की दास्तां….

वैसाखी का पर्व…..दिन रविवार यानि आज हीं के दिन साल 1919 को गोल्डेन टेंपल के दर्शन के बाद धीरे-धीरे लोग जालियांवाला बाग में जुटने लगे थे। आस पास के गांवों के अनेक हिंदुओं और सिक्खों का परिवार पर्व मनाने अमृतसर आया था। सभी नये नये कपड़ों में इस पर्व को काफी यादगार तरीके से मनाना चाहते थे। कुछ ही वक्त में हजारों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। लेकिन किसी को भी किसी प्रकार के हादसे का अनुमान मात्र भी नहीं था।

जलियांवाला बाग अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास का एक छोटा सा बगीचा है। जो चारों ओर से घिरा हुआ था । अंदर जाने का केवल एक ही रास्ता था। जनरल डायर ने अपने सैनिकों को बाग के एकमात्र तंग प्रवेश मार्ग पर तैनात किया था। ये बाग आज भी ब्रिटिश शासन के जनरल डायर की कहानी कहता नजर आता है, जब उसने सैकड़ों लोगों को अंधाधुंध गोलीबारी कर मार डाला था। 13 अप्रैल 1919 की तारीख आज भी विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है।

15 मिनट में चलीं थी 1650 राउंड गोलियां

जनरल डायर पहले से ही जानता था कि बाग में लोग जमा होने वाले हैं। उसने मौका देखा और अपने सैनिकों को लेकर पहुंच गया। जिसके बाद डायर ने बिना किसी चेतावनी के सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीखते, भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10 से 15 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलवा दीं।

लोग अपनी जान बचान के लिए इधर- उधर भागने लगे थे. यहां तक की लोग गोलियों से बचने के लिए बाग में मौजूद कुएं में भी कूद गए थे. बताया जाता है कि कुएं से कई लाशें निकाली गई थी. जिसमें बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, पुरुष शामिल थे. इसी के साथ कई लोगों की जान भगदड़ में कुचल जाने की वजह से चली गई थी.

क्या दी जनरल डायर ने सफाई

एक रिपोर्ट के अनुसार जनरल डायर ने इस कार्रवाई को सही ठहराने के लिए सफाई दी थी। उन्होंने कहा कि बिना फायरिंग के भी वह इस सभा को तितर बितर कर सकता था, लेकिन ऐसा करने पर लोग उसे मूर्ख समझते। और उसपर हंसते। इसी के चलते अपने कर्तव्य का पालन करते हुए उसने भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था।