मोरबी ब्रिज हादसा: किसकी लापरवाही की वजह से गई 141 जिंदगी, रिनोवेशन के बाद क्यों नही की गई पुल की जांच….

गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी का केबल ब्रिज गिरने से मरने वालों की संख्या 141 हो चुकी है। इनमें 50 से ज्यादा बच्चे शामिल हैं। मौत के इन डराने वाले आंकड़ों के बीच इस घटना के जिम्मेदारों को बचाने का खेल भी शुरू हो गया है। सोमवार को पुलिस ने इस केस में जिन 9 लोगों को गिरफ्तार किया, उनमें ओरेवा के दो मैनेजर, दो मजदूर, तीन सिक्योरिटी गार्ड और दो टिकट क्लर्क शामिल हैं।

पुलिस की FIR में न तो पुल को ऑपरेट करके पैसे कमाने वाली ओरेवा कंपनी का जिक्र है, न रिनोवेशन का काम करने वाली देवप्रकाश सॉल्युशन का। पुल की निगरानी के लिए जिम्मेदार मोरबी नगर पालिका के इंजीनियरों का भी नाम इसमें नहीं है। यानी केवल छोटे कर्मचारियों को हादसे का जिम्मेदार ठहराकर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है।

मोरबी त्रासदी तकनीकी तौर पर घोर लापरवाही का दुष्परिणाम है। दो करोड़ रु. से पुल की साज-सज्जा तो कर दी गई लेकिन पुल का भार उठाने वाले महत्वपूर्ण पुर्जे ‘एंकर पिन’ को मजबूत नहीं किया। इससे दरबारगढ़ की ओर लगी पुल की एंकर पिन उखड़ गई और हादसा हो गया।

एंकर पिन वह हिस्सा होता है, जो केबल्स पर झूलते पुल को दोनों ओर से थामे रहता है। मोरबी पुल के एंकर-पिन की क्षमता 125 व्यक्ति की है, लेकिन रविवार को 350 से अधिक व्यक्तियों को प्रवेश दे दिया गया। ठेकेदार और सरकारी इंजीनियर्स ने यह ध्यान ही नहीं दिया कि पुल 140 साल पुराना है। उसके एंकर पिन इतना बोझ संभालने में सक्षम ही नहीं थे।

इसकी जांच के लिए विशेषज्ञ स्ट्रक्चरल इंजीनियरों के साथ-साथ स्थानीय इंजीनियरों से जानकारी प्राप्त की गई, जिससे पता चला कि सस्पेंशन ब्रिज के दोनों ओर दो एंकर पिन थे। इस पिन से पुल जुड़ा हुआ है और इसे नींव माना जाता है। जब नवीनीकरण किया गया था तो इस एंकर पिन को अनदेखा कर दिया गया था। पुराने पुल की नींव कितनी मजबूत है और कितना काम करना है, इस पर खर्च करने के बजाय सिर्फ सजावट पर ध्यान दिया गया।