राजनितिक गलियारो में कवायद तेज हो रही है की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हनुमान का वनवास टूट सकता है और दिवंगत राम विलास पासवान वाली जगह उन्हें मिल सकती है…

जनता दल यूनाईटेड और खासकर नीतीश कुमार से रिश्ता कायम रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी  ने 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान से किनारा कर लिया। ऐसा किनारा कि वह बार-बार खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ कहते रहे, लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ आवाज बुलंद कर चुके चिराग को स्वीकार नहीं किया गया। भाजपा ने उन्हें गले नहीं लगाया, लेकिन चिराग ने बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू का ‘हश्र’ पूरा कर दिखाया। नीतीश जब तक भाजपा के साथ रहे, चिराग की एंट्री नहीं हो सकी। और अब चिराग की एंट्री जरूरी हो गई है।

गुरुवार को चिराग पासवान बिहार आए। पूरी रौ में आए। आते के साथ बरसे। केंद्र में मंत्रीपद पर नहीं बोले, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में छोटे-छोटे कटाक्ष से माहौल बना दिया। वह आए तो बोलने लगे- “जो खुद समस्या है, वह आदमी समाधान यात्रा पर निकला है। उन्हें तो बक्सर का समाधान करना चाहिए था। बीएसएससी का समाधान करना चाहिए था। सीटीईटी का समाधान करना चाहिए था। पिछड़ा को अति पिछड़ा और दलित को महादलित में बांटने वाला समाज को कितना बांटेगा? नीतीश कुमार की सोच का जवाब जनता पिछले चुनाव में भी दे चुकी है।

चिराग से बदला लेने के लिए क्या-क्या नहीं किया गया…

 चुनाव परिणाम ने जदयू को जब चिराग की ताकत का एहसास हुआ तो बदला लेने के लिए भाजपा पर कथित तौर पर ऐसा दबाव बनाया गया कि दिल्ली वाले दिवंगत रामविलास पासवान के आवास से बेआबरू की तरह चिराग पासवान को निकलना पड़ा। वह तस्वीरें किसी को भुलाए नहीं भूलती होंगी। और भी दो बड़ी घटनाएं हुईं या कराई गईं। 1. जदयू ने लोजपा के इकलौते विधायक को अपने साथ कर लिया। 2. लोजपा को तोड़ने के लिए दिवंगत रामविलास पासवान के विश्वसनीय भाई पशुपति कुमार पारस की महत्वाकांक्षा को हवा दी गई और अंतत: केंद्र में भाई की जगह उन्हें मिल गई और बेटे चिराग को पिता की कुर्सी नहीं मिली। पार्टी टूटी, सो अलग।