“कोविड-19: स्टिग्मा एंड साइकोसोशल सपोर्ट” पर वेबिनार का आयोजन, एस के मालवीय ने कहा- कोरोना को लेकर लोगों में कम हो रहा डर

प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो पटना, यूनिसेफ और जनसंचार विभाग, पटना वीमेंस कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आज “कोविड-19: स्टिग्मा एंड साइकोसोशल सपोर्ट” विषय पर ओरियंटेशन वेबिनार का आयोजन किया गया। यह वेबिनार मुख्य रूप से राज्यभर के फील्ड आउटरीच ब्यूरो के अधिकारियों और पटना विमेंस कॉलेज के जनसंचार विभाग की छात्राओं के लिए आयोजित किया गया था।

कोविड-19 से लड़ने में मनोवैज्ञानिक पहलू की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

 

वेबिनार को संबोधित करते हुए पीआईबी, पटना के अपर महानिदेशक एस के मालवीय ने कहा कि कोविड-19 से लड़ने में मनोवैज्ञानिक पहलू की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। वर्तमान में देखें तो लोगों में कोरोना को लेकर डर कम हो गया है। इसकी दो बड़ी वजहें गिनाई जा सकती हैं- पहला, कोरोना संक्रमितों की संख्या में कमी देखने को मिल रही है और स्वस्थ हो रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है तथा दूसरा, जो सबसे महत्वपूर्ण है, लोग मनोवैज्ञानिक तौर पर मजबूत हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि लोगों के बीच जानकारी के अभाव में कोरोना को लेकर जो डर था, वह अब कम होने लगा है। अब समाज से सकारात्मक खबरें आने लगी हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में कोरोना के प्रति जागरूकता फैलाने में यूनिसेफ की एक अहम भूमिका रही है। यूनिसेफ ने समाज के हर तबके, हर वर्ग को कोविड-19 से जुड़ी जानकारियों के प्रति जागरूक करने का काम किया है।

‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘सोशल डेंसिटी’ दोनों को बैलेंस करना होगा

 

पीआईबी, पटना के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि कोविड-19 ने वैश्विक स्तर पर प्रभाव डाला है। यह दौर संक्रमण का दौर है, जो कि बेहद तीव्र है और संक्रमण काल में हमलोग उत्पादन, उपभोग, वितरण आदि क्षेत्रों में परिवर्तन होते देखते हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 को लेकर समाज में ‘स्टिग्मा’ से ज्यादा ‘फोबिया’ है और यही वजह है कि लोग संक्रमितों या फिर जो संक्रमित नहीं भी हैं उनसे भ्रम की स्थिति में भेदभाव पूर्ण रवैया अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमें ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ और ‘सोशल डेंसिटी’ दोनों को बैलेंस करना होगा। उन्होंने कहा कि कोविड-19 के प्रभाव से कई ऐसे क्षेत्र हैं जो पूरी तरह अप्रभावित या अछूते रहे हैं। उन क्षेत्रों की जानकारी जुटाकर अध्ययन करने की जरूरत है।

लोगों को जागरूक करना चाहिए

यूनिसेफ बिहार के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सैयद हुब्बे अली ने कहा की कोविड-19 के दौर में क्या करना चाहिए की जगह पर क्या नहीं करना चाहिए को लेकर लोगों को जागरूक करना चाहिए। हाथ धुलने, मास्क पहनने, दूरी बनाकर रहने जैसी जरूरी बातों को तो लोग पालन कर ही रहे हैं, लेकिन साथ ही उन्हें जहां-तहां ना थूकने, साफ सफाई रखने जैसी जरूरी और महत्वपूर्ण बातों से भी अवगत कराना चाहिए। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि जहां-तहां थूकना, गंदगी फैलाना एक कानूनी जुर्म है और इसके लिए उन्हें दंडित किया जा सकता है।

 

मनोवैज्ञानिक तरीके से समाधान किया जाना चाहिए

 

इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के मनोरोग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर राजेश कुमार ने कहा कि पूरे देश भर में 132 करोड़ की जनसंख्या के लिए मनोचिकित्सकों की संख्या मात्र 6000 है। यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 की समस्या का मनोवैज्ञानिक तरीके से समाधान किया जाना चाहिए। सबसे पहले लोगों के बीच बीमारी को लेकर जागरूकता फैलानी चाहिए। उसके बाद संक्रमित लोगों को चिन्हित किया जाना चाहिए और अंत में चिन्हित लोगों का इलाज किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया से लोगों में भ्रांतियां नहीं फैलेंगी।

कोविड-19 महामारी ने लोगों के बीच डर का माहौल

 

यूनिसेफ के वरिष्ठ राज्य सलाहकार सुधाकर सिन्हा ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने लोगों के बीच डर और खौफ का माहौल बना दिया है और इसी डर और खौफ की स्थिति में लोगों के मन में भ्रम ने घर बना लिया है, जिससे वह एक दूसरे के साथ भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाते हैं। उन्होंने कहा कि भेदभाव पूर्ण माहौल बनाने में सोशल मीडिया की भी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

‘मिसइंफॉर्मेशन’ या ‘डिसइंफॉर्मेशन’ समाज के लिए खतरनाक

 

पटना वीमेंस के जनसंचार विभाग की विभागाध्यक्ष मिनाती चकलानविस ने कहा कि ‘मिसइंफॉर्मेशन’ या ‘डिसइंफॉर्मेशन’, यह दोनों ही समाज के लिए खतरनाक है। उन्होंने कहा कि गलतफहमियां बहुत खतरनाक हैं। कई बार बिना सोचे-समझे और कभी-कभी जानबूझकर फैलाई जा रही गलत खबरें बहुत भयावह और परेशानियों का कारण बन जाती हैं। सोशल मीडिया पर चलाए जा रहे फेक न्यूज़ और पोस्ट भी अत्यधिक खतरनाक हैं।

यूजर्स का जिम्मेदार और सतर्क होना जरूरी

यूनिसेफ बिहार के संचार विशेषज्ञ नीपुर्नह गुप्ता ने कहा कि आज सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब और व्हाट्सएप सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने बाला प्लेटफार्म है। उन्होंने बताया कि भारत में करीब 300 मिलीयन फेसबुक यूजर है, जिसमें 73% लोग 18 से 24 साल के उम्र वर्ग के हैं। चूंकि यह वर्ग युवा है, उन्होंने इस बात पर जोर दिया हमें कोई भी पोस्ट डालने से पहले 1 बार सोचना अवश्य चाहिए। कई बार गलत खबरें तनाव को जन्म देती है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हम जब भी किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कोई सूचना डालते हैं, तो हमें यह ख्याल रखना चाहिए की यह हमारे निजी पहचान के साथ-साथ हमारे संगठन की भी पहचान को प्रभावित करता है, और इससे होने वाले हानि को रोकने के लिए उन्होंने यूजर्स का जिम्मेदार और सतर्क होना जरूरी बताया।