राजनीति कब किस करवट मोड़ देगी यह कहना बड़ा ही पेचीदा है बिहार की राजनीति में आ रही उठापटक से इन दिनों और राज्य की राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी काफी बढ़ गई है। केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह को जनता दल यूनाइटेड ने इस बार राज्य सभा चुनाव के लिए टिकट नहीं दिया है। आरसीपी सिंह का कार्यकाल पूरा होने पर रिक्त हो रही सीट से झारखंड जदयू के अध्यक्ष खीरू महतो को जदयू ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। लंबे समय से आरसीपी सिंह के नामों की चर्चा होने के बाद सियासत में एक ऐसा दांव चला गया जिसे देख राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर भी हैरान नजर आ रहे हैं। बदलते राजनीतिक हालात के बाद आरसीपी सिंह मीडिया के सामने आए और उन्होंने पूरे प्रकरण पर अपनी बात रखी। आपको बता दें कि नीतीश कुमार के सबसे अधिक करीबी रहे आरसीपी सिंह को टिकट नहीं देने का फैसला भी खुद बिहार के मुख्यमंत्री और आरसीपी सिंह के बेहद करीबी माने जानेवाले नीतीश कुमार ने ही लिया।
कुछ सोच समझ कर ही लिया होगा नीतीश कुमार ने यह फैसला….
राजनीति में आए उठापटक के बाद आरसीपी सिंह ने मीडिया बंधुओं से बात करते हुए कहा कि नीतीश बाबू के साथ मेरा 22 साल का रिश्ता रहा है। उन्होंने कहा कि नीतीश बाबू ने हमेशा मेरे हित में ही फैसला लिया है। इस बार भी उन्होंने मेरे और पार्टी के हित में ही फैसला लिया होगा। उन्होंने कहा कि दल के लिए उन्होंने काफी काम किया है। उन्होंने बताया कि वे संसदीय राजनीति में 12 साल से काम कर रहे हैं। इससे अधिक वक्त उन्होंने पार्टी के संगठन के लिए दिया है। आगे भी वे संगठन के लिए काम करते रहेंगे। उन्होंने कहा कि आज तक किसी को नाराज करने वाला काम मैंने नहीं किया है। अगर किसी के नाराज होने की बात सामने आती है, तो उससे मिलकर नाराजगी दूर करता हूं। नीतीश कुमार की मेरे प्रति नाराजगी की खबरों का कोई आधार नहीं है।
आरसीपी बोले-नीतीश का फैसला मंजूर, संगठन के लिए काम करूंगा
राज्यसभा से बेटिकट होने के दूसरे दिन केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने चुप्पी तोड़ी। तेवर तल्ख थे, लेकिन शब्दों में समर्पण था। प्रेस कान्फ्रेंस कर कहा कि नीतीश कुमार का हर फैसला उन्हें मंजूर है। हमारे नेता ने जो किया, वह पार्टी और उनकी भलाई के लिए ही किया होगा। मंत्री पद से इस्तीफे के सवाल पर कहा कि अभी छह जुलाई तक हूं। दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री से मिलूंगा। जो कहा जाएगा, करूंगा। मैं पहले भी संगठन के लिए काम करता था। आगे भी करूंगा। नीतीश से उनका 25 वर्ष का रिश्ता है। जदयू का अहसान भी जताया। कहा कि उन्होंने पार्टी को बूथ स्तर तक कार्यकर्ता दिए। पार्टी ने उन्हें महासचिव बनाया, सदन में दल का नेता बनाया, राष्ट्रीय अध्यक्ष् बनाया और अभी नेतृत्व की सहमति से ही केंद्रीय मंत्री हूं। जो जिम्मेदारी दी गई, उसे निष्ठा से निभाया।
एक पहलू यह भी…..
जेडीयू में एक समय उपेंद्र कुशवाहा काफी तेजी से बढ़े थे। नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति छोड़कर बिहार के सीएम बने तो राज्यसभा में कुशवाहा को नेता बनाया था, लेकिन बहुत जल्द ही इनके बीच रिश्ते बिगड़ गए। कुशवाहा ने जेडीयू छोड़कर अपनी पार्टी बना ली, लेकिन बाद में कुशवाहा फिर से नीतीश के साथ आ गए। ऐसे ही शरद यादव और नीतीश कुमार की जोड़ी भी बिहार में काफी सफल रही, लेकिन 2017 के बाद ऐसी दरार आई कि शरद यादव को जेडीयू से अलग होना पड़ गया।
आरसीपी सिंह के साथ भी नीतीश कुमार ने ऐसा ही सियासी दांव चला है। राज्यसभा की रेस से उन्हें बाहर कर दिया है। हालांकि, अब सबकी निगाहें इस बात पर होंगी कि आरसीपी सिंह कब और कैसे केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हैं। बीजेपी नेतृत्व आरसीपी सिंह के प्रति सहानुभूति रखने के बावजूद फिलहाल उनके साथ इसलिए खड़ा नहीं दिख सकता क्योंकि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में उसे नीतीश कुमार के साथ की जरूरत होगी। आरसीपी सिंह के साथ दिक्कत है कि पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं में उनकी बहुत लोकप्रियता नहीं है, जिसके दम पर नीतीश को चुनौती दे सकें।
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