लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की रनीति के आगे भाजपा का कोई भी मुद्दा काम नही आ रहा ,आगे भाजपा क्या मुद्दा तलाशती है, जो इन दो दिग्गजों के बीच कटुता पैदा कर सके…..

जब कोई गठबंधन की सरकार हो तो विपक्ष इस प्रतीक्षा में रहता है कि कब उसे दोनों के बीच मतभेद को बढ़कर पार्टी  तोरने का मौका मिले। बिहार में भी यह देखने को मिलता रहा है। जदयू-भाजपा सरकार के बीच ऐसी कटुता पैदा करने में राजद का काफी योगदान रहा, पर एक समय एक-दूसरे के विरोधी रहे राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और सीएम नीतीश कुमार के एक पंगत में बैठने के बाद भाजपा के इस तरह के प्रयास सफल होते नहीं दिख रहे। बीजेपी ने दो मंत्रियों कार्तिक सिंह एवं सुधाकर सिंह के साथ राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद की नाराजगी को मुद्दा बनाने की बहुत कोशिश की, पर उसकी चाल कामयाब नहीं हो सकी है।

अब तक लालू एवं नीतीश के बीच जिस स्तर का सामंजस्य बना हुआ है, उसमें कलह की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है। बीच-बीच में खटास पैदा करने वाले मौके आते रहे हैं, लेकिन दोनों पार्टियों ने उसे संभाल  लिया। मंत्रिमंडल गठन के तुरंत बाद ही भाजपा ने जोर शोर से राजद के विधान परिषद सदस्य कार्तिक सिंह का मामला उठाया। कानून मंत्री बनाए गए कार्तिक सिंह के खिलाफ कुछ आपराधिक मामले चल रहे हैं।

भाजपा ने इसी आधार पर हंगामा शुरू कर दिया। विवाद कुछ आगे बढ़ता, इससे पहले ही लालू-नीतीश ने बातचीत कर भाजपा के हाथ से मुद्दा छीन लिया। देर रात खबर आई कि कार्तिक सिंह ने त्यागपत्र दे दिया है। उनका विधि विभाग राजद के ही दूसरे मंत्री को दे दिया गया। यह सब सप्ताह भर के भीतर ही हो गया। भाजपा कुछ राजनीतिक लाभ नहीं उठा सकी। इसके बाद कृषि मंत्री सुधाकर सिंह का मामला उठा। सुधाकर पर गबन का एक मामला चल रहा है, जिसमें उन्हें सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिली हुई है। सुधाकर सिंह भी अंतत: मंत्रिमंडल से विदा हुए।

सुधाकर के त्यागपत्र से आहत उनके पिता राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद आहत हो गए और चुप्पी साध अपने गांव निकल गए। जगदानंद की नराजदगी को भाजपा मुद्दा बनाने लगी। लालू भी थोड़ा तल्ख हो गए। अब्दुल बारी सिद्दकी का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए चलने लगा।

राजद के माई समीकरण को देखते हुए इसे सही समझा जाने लगा, लेकिन लालू जानते थे कि जगदानंद का जाना नुकसानदेय होगा और संदेश भी सही नहीं जाएगा इसलिए उन्होंने नई कार्यकारिणी में संतुलन बनाया और अब्दुल बारी सिद्दकी को राष्ट्रीय प्रधान सचिव बनाकर सारे विवाद शांत कर दिए। जगदानंद भी मान गए और वह ही अब अध्यक्ष होंगे। लालू ने उपेक्षित पड़े शरद यादव के भी दो खास माने जाने वाले सुशल मोरारे और बीनू यादव को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर उन्हें भी संतुष्ट कर दिया।  अब देखना होगा कि आगे भाजपा क्या मुद्दा तलाशती है, जो इन दो दिग्गजों के बीच कटुता पैदा कर सके।