इन बिहारी गौ सेवकों के लिए एक सलाम तो बनता है,पढ़िए इन युवाओं की अनोखी कहानी…

 हड्डी का ढांचा बनी गायों व बछड़ों को आपने कई बार सड़कों पर भटकते देखा होगा. तपती धूप में बूंद-बूंद पानी के लिए तड़पते भी देखा होगा.  पर आज हम आपको बिहार के कुछ ऐसे उत्साही युवकों की कहानी बता रहे हैं जो बीमार गाय और बछड़े की न केवल सेवा करते हैं बल्कि उनके रहने के लिए अदद छत भी मुहैया करा रहे हैं. पढ़िए इन युवाओं की अनोखी कहानी

राजधानी पटना से 43 किलोमीटर दूर काब गांव में चल रही है यह अनोखी मुहिम.  गांव की कुछ उत्साही युवाओं की टोली ने खुद के बूते एक गौशाला की शुरुआत की है.  मकसद है दुर्घटना के शिकार या फिर बीमार गायों और बछड़ों की सेवा करना, उनकी देखभाल करना और उन्हें स्वस्थ्य करना.  गौ सेवक युवाओं की इस टीम का नेतृत्व करते हैं सीताराम.

ऐसे शुरू हुई यह पहल

सीताराम खुद सुन नहीं सकते हमारे लिखे सवालों को पढ़ने के बाद वे गौशाला के शुरुआत की कहानी बताते हैं वे कहते हैं एक दिन सड़क दुर्घटना में घायल बछड़े को घर ले आए उसकी मरहम पट्टी की . इसके बाद मन में विचार आया कि न जाने ऐसे कितने ही बछड़े और गाय बीमार हो यू हीं भटकते होंगे.  बीमार गायों को देखने वाला भी कोई नहीं होता.  गाय जब तक दूध देती है तब तक उसकी खूब खातीरदारी की जाती है बाद में बीमार होने के बाद लोग गायों को बोझ समझने लगते हैं.  इसके बाद सीताराम ने खुद पहल करके झोपड़ी बनाई और देने लगे बीमार गाय और बछड़े को आसरा.

बीमार गाय और बछड़ों को आसरा देने की साथ ही वे उसकी खूब सेवा सुश्रुषा भी करने लगे.  देखते-देखते इस अनोखे आश्रम में कई तरह की बीमार गाय ठीक होने लगी. इस काम में सीताराम के साथ अन्य कई युवा भी जुड़ते चले गए। राधेश्याम कुमार, गोलू कुमार, मनीष कुमार, हर्षित कुमार, बालमुकुंद कुमार और शंकर कुमार इस टीम के सदस्य के रूप में  गौशाला  की सेवा के लिए सीताराम के साथ जुड़ गए.

सीताराम ने गांव की पुश्तैनी जमीन पर चारा उगाना शुरू कर दिया.  पर इन सबके बाद भी आर्थिक परेशानी आगे की राह में रोड़ा बनकर खड़ी रही. तब इन्होंने कुछ दुधारी गायों को भी साथ में रखने का फैसला किया.  जिससे इस अनोखी गौशाला का खर्च निकल सके.

गाय के गोबर से बनाई जा रही अनोखी मूर्तियां

गाय के गोबर से इस गौशाला में मूर्तियां बनाई जाती है इसके लिए गोबर और मिट्टी का प्रयोग किया जाता है.  भगवान कृष्ण, लक्ष्मी गणेश की आकर्षक मूर्ति यहां गोबर से बनाई जाती है.  सीताराम के सहयोगी राधेश्याम बताते हैं कि हम इन मूर्तियों को स्थानीय बाजार में फिलहाल बेच रहे हैं.  यहां बिक्री ज्यादा नहीं होती, इसके लिए बड़े बाजार की तलाश जारी है.  जहां इन मूर्तियों की मार्केटिंग हो सके. वे आगे कहते हैं यह मूर्तियां जहां इको फ्रेंडली है वही हिंदू धर्म में गोबर को पवित्र भी बताया गया है.  हर पूजा में गोबर की जरूरत होती है, इन मूर्तियों में औषधीय गुण भी होते हैं और इनका मेंटेनेंस भी काफी कम होता है.

 

सीताराम बताते हैं कि गौशाला चलाने में कई तरह की परेशानियों से लगातार  आ  रही है.  आर्थिक परेशानी भी काफी ज्यादा आती है, हमारे काम को देखकर कुछ लोग आर्थिक सहयोग भी करते हैं. इस सहयोग से धीरे-धीरे यह कार्य आगे बढ़ रहा है. सीताराम चाहते हैं कि इस गौशाला का विस्तार हो और ऐसी गौशाला देश भर में खुले जहां बीमार गायों व बछड़ों की स्वस्थ्य हो सके. वहां पशु प्रेम भी हो और श्रद्धा भी हो.  फिलहाल युवाओं की टोली अपने हौसलों के दम पर बीमार गायों की देखभाल करने का अनोखा अलख जगाए हुए हैं.  इससे लोगों को जहां प्रेरणा मिल रही है वही मशीन होती दुनिया में पशु प्रेम का राग भी गूंज रहा है.

(विवेक चंद्र की रिपोर्ट)