
निर्भया के चार दोषियों की ओर से लगातार कानूनी दांव पेंच का इस्तेमाल कर उसे विलंब करने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने कहा कि फांसी की सजा के खिलाफ अपीलों का एक अंत आवश्यक है. बोबड़े ने कहा कि दोषी को यह कभी नहीं लगना चाहिए कि फांसी की सजा से जुड़ा एक सिरा हमेशा खुला रहेगा और सजा को चुनौती दी जाती रहेगी. इसके साथ ही लोगों में यह गलत संदश जाएगा.
निर्भया के चार दोषियों की ओर से एक एक कर दायर की जा रही याचिकाएं पर कोर्ट ने कहा कि इसे कानून के अनुसार करना होगा. इसके साथ ही जजों का भी समाज और पीड़ितों के प्रति कर्तव्य बनता है..
सीजेआई एस ए बोबडे, जस्टिस एस अब्दुल नजीर औरजस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में मौत की सजा पाने वाली महिला शबनम और उसके प्रेमी सलीम की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए ये सख्त टिप्पणियां कीं. पीठ ने दोनों दोषियों को मौत की सजा सुनाये जाने के 2015 के अपने फैसले के खिलाफ उनकी पुनर्विचार याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रखा
सजा को कम करने की मांग का एसजे ने किया विरोध
तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, ‘कोई किसी चीज के लिए अनवरत नहीं लड़ता रह सकता.’ दोषियों के वकीलों ने शबनम और उसके प्रेमी सलीम की मौत की सजा को इस आधार पर कम करने की मांग की कि उन्हें सुधरने का अवसर दिया जाए. जिसका सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पुरजोर विरोध किया.
2008 में प्रेमी और प्रेमिका ने की थी 7 सदस्यों की हत्या
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 2008 में घटी इस सनसनीखेज वारदात में महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता, दो भाइयों, उनकी पत्नियों और 10 महीने के भांजे की गला घोंटकर हत्या कर दी थी.
केंद्र ने मृत्युदंड के लिए सात दिन की सीमा तय करने की याचिका
निर्भया मामले में दोषियों की ओर से कानून का हवाला देकर लगातार एक एक याचिकाएं दाखिल करने पर देशभर में गुस्सा का माहौल है और इसको लेकर गुरुवार को ही केंद्र सरकार ने दोषियों को फांसी देने के लिए सात दिन की समयसीमा तय करने की अपनी याचिका दायर की है इसके साथ ही उच्चतम अदालत से तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि दोषी न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया जस्टिस एस ए बोबडे और जस्टिस एस ए नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गृह मंत्रालय की याचिका को लिया जाए और 2014 के शत्रुघन चौहान मामले में जारी दिशानिर्देशों को बदलकर पीड़ित केंद्रित बनाया जाए जो अभी दोषी केंद्रित हैं.
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