पूरे देश में रघुवंश प्रसाद सिंह की पहचान एक प्रखर समाजवादी नेता के रुप में थी. अपने बेदाग और बेबाक अंदाज वाले रघुवंश बाबू को शुरू से ही जनता के बीच में रहने का शौक रहा था. रघुवंश प्रसाद का जन्म छह जून 1946 को वैशाली के ही शाहपुर में हुआ था। उन्होंने बिहार विश्वविद्यालय से गणित में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। अपनी युवावस्था में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए आंदोलनों में भाग लिया था। डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करने के बाद साल 1969 से 1974 के बीच करीब 5 सालों तक सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में बच्चों को गणित पढ़ाया. गणित के प्रोफेसर के तौर पर डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने नौकरी भी की और इस बीच कई आंदोलनों में वह जेल भी गए. पहली बार 1970 में रघुवंश प्रसाद टीचर्स मूवमेंट के दौरान जेल गए. उसके बाद जब वो कर्पूरी ठाकुर के संपर्क में आए तब साल 1973 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के आंदोलन के दौरान फिर से जेल चले गए. इसके बाद तो उनके जेल आने जाने का सिलसिला ही शुरू हो गया.
1977 – 1995 तक बिहार विधानमंडल के सदस्य रहे
रघुवंश प्रसाद 1973 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का सचिव बनाया गया था। 1977 से लेकर 1995 तक वे बिहार विधानमंडल के सदस्य रहे थे। 1977 से 1979 तक उन्होंने बिहार के ऊर्जा मंत्री का पदभार संभाला था। इसके बाद उन्हें लोकदल का अध्यक्ष बनाया गया था। 1985 से 1990 के दौरान वे लोक लेखांकन समिति के भी अध्यक्ष रहे। रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस गाढ़े समय में लालू का साथ दिया. यहां से लालू और उनके बीच की करीबी शुरू हुई. 1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुए. जिसमें रघुवंश प्रसाद सिंह 2,405 के वोट से चुनाव हार गए. रघुवंश ने इस हार के लिए जनता दल के भीतर के ही कई नेताओं को जिम्मेदार ठहराया. रघुवंश चुनाव हार गए थे लेकिन सूबे में जनता दल चुनाव जीतने में कामयाब रहा. लालू प्रसाद यादव नाटकीय अंदाज में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. 1990 में उन्होंने बिहार विधानसभा के सहायक स्पीकर का पदभार संभाला था. लालू को 1988 में रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा दी गई मदद याद थी. लिहाजा उन्हें विधान परिषद भेज दिया गया. 1995 में लालू मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिए गए. ऊर्जा और पुनर्वास का महकमा दिया गया.
1996 में पहली बार संसद पहुंचे थे रघुवंश बाबू
1996 में पहली बार वे लोकसभा के सदस्य बने। 1998 में वे दूसरी बार और 1999 में तीसरी बार लोकसभा पहुंचे। इस कार्यकाल के दौरान वे गृह मामलों की समिति के सदस्य रहे। केंद्र में जनता दल गठबंधन सत्ता में आई. देवेगौड़ा प्रधानमन्त्री बने. रघुवंश बिहार कोटे से केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए. पशु पालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार. अप्रैल 1997 में देवेगौड़ा को एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रधानमन्त्री की कुर्सी गंवानी पड़ी. इंद्र कुमार गुजराल नए प्रधानमन्त्री बने और रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय में भेज दिया गया. 2004 में डॉक्टर सिंह चौथी बार लोकसभा पहुंचे। 23 मई 2004 से 2009 तक वे ग्रामीण विकास के केंद्रीय मंत्री रहे। 2009 के लोकसभा चुनाव में लगातार पांचवी बार उन्होंने जीत दर्ज की। हालांकि 10 सितंबर को उन्होंने राजद से इस्तीफा दे दिया था।
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