
भारत 15अगस्त 1947 को जब आजाद हुआ उस वक्त भारत के जनप्रतिनिधित्व की चिंताओं में एक चिंता गरीबी उन्मूलन की थी। कुछ वर्ष की खातिर सरकार के कार्य में तेजी रही। कई कार्यक्रम चलाए गए।कई सुविधाओ का शिलान्यास हुआ।
पर समय जैसे जैसे बीतते गए समाज स्थिर होने के कगार पर आया ही था की जननायक अब जन भक्षक बन बैठे। गरीबों की भलाई के लिए कागज पे काफी काम किए गए। पर वे सारे काम धरातल पर कही नजर नहीं आएं। सरकारों के द्वारा पास फंड फिर आखिर किसकी झोली में गिरें।
गरीबों के विकाश के पैसों से आखिर किसका विकाश हुआ।गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार के द्वारा 28 अप्रैल 1989 को एक योजना का शिलान्यास हुआ जिसे हम नेहरू रोजगार योजना के नाम से जानते है जिसमे गरीबी रेखा से नीचे के परिवार के एक सदस्य को सरकार के द्वारा 50 से 100 दिनों का रोजगार देने का प्रावधान है। क्या एक वर्ष में सिर्फ 100 दिन ही होते हैं वाह रे योजना के निर्माताओं ।क्या 100दिन के काम कर लेने से एक गरीब धनवान हो जायेगा।
और आश्चर्य की बात तो ये है की वास्तविक गरीब इस योजना से अनजान है फिर वह कैसे इस योजना से लाभान्वित होगा। आज इस योजना का निरीक्षण किया जाए तो समर्थवान लोगो के नाम का भी पर्दाफाश होगा जो गरीब बन इस योजना का गलत लाभ ले रहे है, वैसे लोग सामने आएंगे जिनके कारण गरीब अपने अधिकार से वंचित रह जाता है और गरीब का गरीब रह जाता है।सरकार के द्वारा गरीबी रेखा के मापदंड के क्या कहने एक गरीब तभी गरीब कहलाएगा यदि शहर में रहनेवाला गरीब 1 महीने में 859 रुपया 60 पैसे से कम खर्च करता हो और गांव में रहने वाला गरीब 1 महीने में 672 रुपया 80 पैसे या इससे कम खर्च करता हो। जनता के हित चाहने वाले जननायकों आज के वक्त में 900 का तो सिलेंडर ही आता है। फिर भी आपके मापदंड कितने काबिल ए तारीफ हैं।
भारत की भोली भाली जनता को क्या खूब बेवकूफ बना रहे हैं ये सता के सौदागर।दैनिक भास्कर के अनुसार वर्ष 1947 में भारत की 80% आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी।पर सवाल यहां अब ये उठते हैं कि क्या गरीबी रेखा को तय करने वाले मापदंड से भारत की सही सही गरीबी का पता चल पाता है? कितने गरीब वास्तविक रूप से भारत के सरकार से मिलने वाली योजनाओं से लाभान्वित हो पाते हैं?
क्या सरकारी तंत्र सचमुच निष्पक्ष और न्यायसंगत है?
क्या वाकई देश के नेताओ का उद्देश्य जन की सेवा है? सोचिए,और आवाज उठाइए। जरूरत मंदो को सही जानकारी दीजिए । खुद को देश के प्रती ईमानदार रखिए। फिर देखिए भारत में खुशहाली का आगमन कितनी तेजी से होता है।
You must be logged in to post a comment.