महिलाओं ने अपने कर्तव्य, कर्मठता और सृजनशीलता के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण, सांस्कृतिक पुन निर्माण और विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है

“नारी” विधाता की सर्वोत्तम और नायाब सृष्टि है नारी की सूरत और सीरत की पराकाष्ठा और उसकी गहनता को मापना दुष्कर ही नहीं अपितु नामुमकिन है।”

          भारत के बहुविध समाज में स्त्रियों का विशिष्ट स्थान रहा हैं। पत्नी को पुरूष की अर्धांगिनी माना गया हैं। वह एक विश्वसनीय मित्र के रूप में भी पुरूष की सदैव सहयोगी रही हैं। कहा जाता हैं कि जहां नारी की पूजा होती हैं वहीं देवता रमण करते है। नारी नर की खान है। वह पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए शील और विश्व के लिए करूणा संजोने वाली महाकृति है। एक गुणवान स्त्री काँटेदार झाड़ी को भी सुवासित कर देती हैं और निर्धन से निर्धन परिवार को भी स्वर्ग बना देती हैं।

हम दिव्या औषधि वरदान अमृत होने के साथ-साथ  वह सौंधी मिट्टी की खुशबू  है , जो जीवन-बागियों को सुगंधित करती है और न केवल व्यक्तिगत बल्कि राष्ट्र निर्माण, सांस्कृतिक पुन निर्माण एवं विकास में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाती है अगर ये कहा जाए कि ये “विविधता मैं एकता का प्रतिक है तो कुछ नया नहीं होगा …” नारी, प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा प्रदत्त अद्भुत पवित्र साध्य है , जिसे महसूस करने के लिए पवित्र साधना का होना जरूरी है  इसकी न तो कोई सरहद है और ना ही कोई छोर ! यह तो एक विराट स्वरूप है, जिसके आगे स्वयं विधाता भी नतमस्तक होता है।

महिलाएं ही संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं की वास्तविक संरक्षिका रही  हैं, वे पीढ़ी दर पीढ़ी इनका संचारण और संरक्षण करती रहती हैं , सम्पूर्ण विश्व में भारत को विश्वगुरू का दर्जा दिलाने में महिलाओं की ही भूमिका रही है । यही कारण है कि भारत को संस्कृति और परम्पराओं का देश कहा जाता रहा है ।

महिलाओं ने अपने कर्तव्य, कर्मठता और सृजनशीलता के माध्यम से राष्ट्र-निर्माण, सांस्कृतिक पुन निर्माण और विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है ।  हम आज़ादी कि लड़ाई में लक्ष्मी बाई कि भूमिका लें या फिर गाँधी जी के साथ चम्पारण सत्याग्रह ।

चम्पारण में औरतें पहली बार हिंदुस्तान की जमीनी राजनीति से भी जुड़ीं, दुनिया के इतिहास में इतनी महिलाएं कभी राजनीति में आयी ही नहीं थी यहाँ औरतों की भागीदारी सूत कतने, खादी बनने के साथ शुरू हुई। लाखों वॉलंटियरों, विशेषकर महिलाएं, जो अपना घर नहीं छोड़ सकतीं थीं और पढ़ी-लिखी भी नहीं थी, गाँधी जी के नेतृत्व में भारत की आज़ादी के सपने लिए आंदोलन में भाग लेने के साथ हमें स्वतंत्र भारत में साँस लेना भी सिखाया ।

आज भी नारी पुरूषों के समान ही सुशिक्षित ,सक्षम ,और सफल है , चाहे वह क्षेत्र सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक , खेल, कला , साहित्य , इतिहास , भूगोल, खगोल, चिकित्सा , सेवा , मीडिया या पत्रकारिता कोई भी हो । नारी की उपस्थिति, योगदान ,योग्यता, उपलब्धियाँ, मार्मिकता और सृजनशीलता स्वयं एक प्रत्यक्ष परिचय देती हैं । परिवार और समाज को संभालते हुए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नारी ने हमेशा से ही विजय-पताका लहराते हुए राष्ट्र-निर्माण, सांस्कृतिक पुन निर्माण और विकास में अपना विशेष और अभूतपूर्व योगदान दिया है। यही कारण है कि वह सृजना, अन्नपूर्णा, देवी, युग दृष्टा और युग – सृष्टा होने के साथ ही सवयं सिद्धा भी हैं।

नारी के इसी रूप के कारण भारत माता कहते हुए हमें स्वाभिमान होता है किन्तु हमें ये भी समझना होगा कि भारत माता की जयाकारा के साथ साथ देश की तरक्की एवं सांस्कृतिक पुन निर्माण के लिए महिलाओं को सशक्त बनना भी अनिवार्य है।