केंद्रीय बजट 2021-22 सही दिशा में बढ़ाया गया कदम

संविधान की व्यवस्था के अनुसार हमारे देश में आमदनी और खर्च का सालाना ब्यौरा पेश किया जाता है, जिसे बजट कहा जाता है। संसद की सहमति के बिना केन्द्र सरकार एक रूपया भी खर्च नही कर सकती है। इसलिए बजट को लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। बजट के प्रस्तावों की समीक्षा की जाती है कि उनका आम जन पर क्या असर होगा, संसाधन कैसे जुटाये जाएगें, कमी कैसे पुरी की जाएगी, आर्थिक बढ़ोतरी पर इनका प्रभाव क्या होगा तथा क्या ये प्रस्ताव तार्किक और विश्वसनीय हैं? कोरोना संकट ने देश-दुनिया की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है। सदियों में एक बार दस्तक देनेवाली ऐसी आपदा के बीच इस बार पेश किया गया बजट निश्चित तौर पर चुनौतियों से भरा था। कोरोना काल का पहला बजट बहुत ज्यादा लोक लुभावन भले न दिखे मगर यह खर्च और बचत का संतुलन साधता दिख रहा है। वित्तमंत्री ने जहाँ एक तरफ इस साल अर्थव्यवस्था में बड़े सुधार की उम्मीद जतायी वहीं दूसरी तरफ बजट 2021-22 को आत्मनिर्भर भारत का विजन बताया। वितमंत्री ने इस बजट को छह स्तंभो पर टिका बताया। पहला स्तंभ है-स्वास्थ्य, दुसरा पूंजी और बुनियादी ढांचा, तीसरा-समग्र विकास, चौथा-नवाचार, पांचवा अनुसंधान तथा छठा – न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन।

स्वास्थ्य क्षे़त्र के लिए बजट का आवंटन दोगुना

स्वास्थ्य क्षे़त्र के लिए आबंटन को दोगुना कर दिया गया है। बीते एक वर्ष के दौरान महामारी से निपटने के हमारे प्रयासो को दुनिया ने प्रशंसा भाव से देखा है। बजट में भी टीकाकरण के लिए सरकार द्वारा 35,000 करोड़ रूपये का प्रावधान उसकी इस प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि वह किसी गड़बड़ी के लिए कोई गुंजाइश नही छोड़ना चाहती। इसमें संदेह नहीं कि चाहे कोई भी सरकार हो, लोगों के जीवन की रक्षा सदैव ही उसकी सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। इस बजट में स्वास्थ्य क्षे़त्र को 2.23 लाख करोड़ रूपये दिये गये है, जो गत वर्ष से 137 प्रतिशत अधिक है। यह जीडीपी के 1.8 प्रतिशत के बराबर है। स्वास्थ्य में यह अभी तक का सबसे बड़ा आबंटन है। बजट में पोषण पर जोर, बीमारी से बचाव और उपचार पर ध्यान देने से हमारे स्वास्थ्य संबधी मानक सुधरेंगे।
रोजगार बढ़ाने के लिए करीब 17 करोड़ नौकरियां देनेवाले आटो, टेक्सटाइल और रियल एस्टेट सेक्टर पर ज्यादा फोकस किया गया है। नई वाहन स्क्रेप पॉलिसी से जहाँ बाजार में नई उम्मीद जागेगी, वहीं स्टील पर कस्टम ड्यूटी घटाने से निर्माण लागत भी कम होने के आसार है। टेक्सटाइल के लिए जहाँ सात नये मेगापार्क की घोषणा हुई है, वही रॉ काटन और यार्न का आयात महंगा कर घरेलू बाजार को बढ़ावा दिया गया है।

शिक्षा के लिए जीडीपी का 3.5 प्रतिशत आवंटन

किसी भी समाज के उत्थान में शिक्षा को सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। शिक्षा के लिए जीडीपी का 3.5 प्रतिशत आवंटन किया गया है, जो कि पिछले वर्ष जीडीपी का तीन प्रतिशत था। 15,000 आदर्श विद्यालयों की स्थापना और अगले पांच वर्षों के दौरान 50,000 करोड़ रूपये की राशि से राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान को लेकर दिखायी गयी प्रतिबद्धता एक सुखद संकेत है। आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के मार को झेल रही है। इस बजट मे प्रदूषण की रोकथाम से लेकर जलवायु खतरों से निपटने तक की बात कही गई है। इस बाजार में स्वच्छ उर्जा पर जोर दिया गया है। सबसे बड़ा एलान शहरो में प्रदूषण से निपटने के लिए 2217 करोड़ रूपये का आवंटन एवं हाइड्रोजन उर्जा मिशन पर काम शुरू करना है। बजट मे हाइड्रोजन उर्जा नीति की घोषणा भी बेहद अहम है।

ग्रामीण भारत और कृषि पर भी बजट में पूरी तरह से फोकस

ग्रामीण भारत और कृषि पर भी इस बजट में पूरी तरह से फोकस किया गया है। कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे विरोध–प्रदर्शन के बीच वितमंत्री ने बजट में 2022 तक किसानो की आमदनी दोगुनी करने कि योजना है। 2021-22 में कृषि ऋण लक्ष्य को 16.5 लाख करोड़ किया गया है। स्वामित्व योजना को देशभर मे लागू किये जाने की बात वितमंत्री ने कही है, जो एक सुखद अहसास कराता है। आपरेशन ग्रीन स्कीम का ऐलान भी एक अच्छा संकेत है। कृषि बजट 5.63 प्रतिशत बढ़ाया गया है। हालाँकि इसका आधा हिस्सा पीएम किसान योजना के लिए रखा गया है। कृषि क्षेत्र में बढ़ावा से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेगें। रोजगार सृजन एक ऐसी चीज है, जो कृषि को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। पलायन से कृषि क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। स्वामित्व योजना एक अच्छा कदम है। लैंड रिकॉर्ड और लैंड ओनरशिप को लेकर गांवो में सबसे ज्यादा समस्याएं है। इसी कारण लैंड मार्केट सही तरीके से विकसित नही हो पाया है। लैंड रिकार्ड और लैंड मार्केट सही नही होने से कृषि काफी हद तक प्रभावित हुआ है। अब स्वामित्व योजना के तहत उन्हें उनकी जमीन का स्वामित्व मिलेगा, वे सुरक्षित रह पायेंगे और अपनी जमीन को किसी को भी बटाई पर या दूसरी व्यवस्था पर दे सकेंगे।

पाँच फिशिंग हार्बर जो तटीय क्षेंत्रो के लिए हैं ,निःसन्देह सरकार के इस कदम से मरीन फिशरीज को बढ़ावा मिलेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण मरीन फिशरीज काफी कम होती जा रही है। ऐसे में सरकार का यह कदम इसे प्रोत्साहित करेगा। इस योजना में सी-वीड को बढ़ावा देने की बात कही गयी है, जो तटीय इलाके के लोगों की आर्थिक स्थिति को गति देगा। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और एक्वाकल्चर उत्पादन के साथ ही अंतर्देशीय मत्स्य पालन में भी दूसरे स्थान पर है।

रोजगार की अधिक से अधिक संभावनायें

सरकार 22 और फसलों (पेरिशिबल क्राप) को टमाटर,प्याज और आलू की तरह विशेष वरीयता सूची में शामिल करेगी,जो एक अच्छी पहल है। यदि फसलों को बढ़ावा मिलेगा, तो उनके लिए धन भी आवंटित होंगे और जरूरी इंफ्रास्ट्रकचर भी बनेंगे। जल्द खराब होने वाली फसलों को अगर इंफ्रास्ट्रकचर मिल जाएगा तो किसान अपनी फसलों की अच्छी कीमत लेने में सक्षम हो जाएगें। सरकार का यह पहल सराहनीय है।
उज्जवला योजना में एक करोड़ लोगों को शामिल करने का प्रावधान भी सराहनीय है। लकड़ी का चूल्हा जलने से जो वायु प्रदूषण होता है, निश्चित रूप से उससे राहत मिलेगी। इससे जहाँ एक ओर महिलाओं के स्वास्थय में सुधार होगा,वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण में भी कमी आयेगी। इस बजट में मछली पालन, पशुपालन व डेयरी पर फोकस इस बात को इंगित करता है कि रोजगार की अधिक से अधिक संभावनायें तलाशी जा रही हैं।

इस बजट में सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि कोई भी नया कर नहीं लगाया गया है। प्रत्यक्ष करों के साथ कोई छेड़छाड़ न करने को भले ही एक राहत के रूप में देखा जा रहा है, परंतु वास्तविकता यह भी है कि वेतन भोगियों के लिए मानक कटौती में बढ़ोतरी, लाभांश कर और कॉर्पोरेट एवं निजी आयकर की ऊंची दरों के बीच अंतर अभी भी चिंता का विषय है। फिलहाल परिस्थितियों के कारण वितमंत्री के हाथ बंधे हुए हैं, परंतु वह मध्यम वर्ग को भविष्य में राहत देने के संकेत तो दे ही सकती थी। सामाजिक क्षेत्र में भारी खर्च के बावजुद विकसित देशों और हमारी आबादी के अनुपात में यह अपर्याप्त है। नार्वे अपनी जीडीपी का करीब 6.4 प्रतिशत शिक्षा पर और अमेरिका अपने जीडीपी का करीब 17 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करता है। ऐसे में मानव विकास सूचकांक और विश्व नवापाय सूचकांक जैसी सूचियों के शीर्ष में आने के लिए हमें लंबा सफर तय करना है। भूख और बाल-कुपोषण के वैश्विक सूचकांको में भी भारत बहुत नीचे के पायदान पर है। इस बजट से लोगो को से तीन प्रमुख अपेक्षाएं थीं। कोरोना के कोप से बाहर निकलना। मानव पूंजी में निवेश बढ़ाया जाना और तीसरा आर्थिक कायाकल्प करके रोजगार का सृजन किया जाना। हालाँकि बजट में इंफास्ट्रकचर पर बड़े पैमाने पर खर्च की योजना के साथ-साथ निजीकरण की दिशा में भी निर्णायक पहल की गयी है, जो रोजगार सृजन को गति देगा। लेकिन इससे ज्यादा कुछ करने की गुंजाइश भी थी।
अतः बजट भले ही संपूर्ण प्रतीत न हो लेकिन संतुलित अवश्य दिखता है, क्योंकि यह कोरोना काल का पहला बजट है। इसमें स्वागत योग्य विचार हैं। यह बजट एक सुगठित दस्तावेज है, जो हमारी प्राथमिकताओं पर ध्यान केन्द्रित करता है। लाभ मिलने में भले ही थोडा समय लगे, लेकिन इसे सही दिशा में बढ़ाया गया कदम कहा जा सकता है।

लेखक- -डा.संजय कुमार,  राजनीतिक विश्लेषक