मुसलमानों के उत्थान की बात उनका अधिकार है, उनपर उपकार नहीं-स्वामीनाथन ए अय्यर

प्रतिष्ठित स्तंभकार स्वामीनाथन ए अय्यर ने वक्फ बोर्डों और धनवान मुसलमानों से विश्वस्तरीय शिक्षण संस्थनों की शृंखला विकसित करने लिए वित्तीय सहायता देने की बात कही है। ऐसे संस्थान जहां पढ़ने के लिए विदेशी और भारतीय हिन्दू भी आकर्षित हों।

उन्होंने यह बात लोकसभा सांसद असदउद्दीन ओवैसी की उस बात के जवाब में अपने लेख में कही है जिसमें सांसद ने मुसलमानों और अन्य समुदायों के साक्षरता अंतर और उपस्थिति अंतर को दूर करने के लिए सभी के लिए सरकारी छात्रवृत्ति की सिफारिश की थी।

श्री अय्यर के इस प्रस्ताव के पीछे उनकी यह राय आधार बनी थी कि सरकारी स्कूलों का स्तर इतना निम्न है कि मुसलमानों या अन्य समुदायों को अधिक सरकारी छात्रवृत्ति देने से कोई खास फायदा नहीं होने वाला। यह भी कि ईसाइयों ने लंबे समय से उच्च कोटि के अपने शिक्षण संस्थान बना रखे हैं।

सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों का स्तर सुधारने की जरूरत

इस बात पर तो कोई बहस ही नहीं है कि ईसाइयों ने अच्छे शिक्षण संस्थान बना रखे हैं- मैं यह भी कह सकता हूं कि मुसलमानों व अन्य ने भी ऐसा किया है। इस बात में भी शक नहीं कि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों का स्तर सुधारने की जरूरत है। लेकिन इस आलेख में जिस सीमा और प्रकृति के कार्यक्रम की जरूरत बतायी गयी है उससे वह समस्या दूर करने में कोई मदद नहीं मिलेगी जिसे ओवैसी ने रेखांकित किया है।

सच्चर कमिटी रिपोर्ट

  • वह समस्या यह है कि मुसलमान और अन्य कमजोर वर्ग विकास के मामले में अन्य धार्मिक समूहों से कहीं पिछड़े हैं। विकास के मामले में यह पिछड़ापन शिक्षा के हर फलक पर- प्री स्कूल से उच्चरत शिक्षा तक फैला है।
  • 2006 में आयी सच्चर कमिटी रिपोर्ट में यह बात सामने आयी थी कि अल्पसंख्यक कई क्षेत्रों में विकास में पीछे थे। इस रिपोर्ट के परिणामस्वरूप भारत में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए सर्वक्षेत्रीय कार्यक्रम बने।
  • इसके बाद से कुछ प्रगति हुई लेकिन अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है।
  • 2011 की जनगणना में मुसलमानों की कुल साक्षरता दर 2001 के 59 दशमलव तीन प्रतिशत के मुकाबले में काफी बेहतर होकर 68 दशमलव पांच प्रतिशत आयी थी। हालांकि मुस्लिम औरतों में यह दर काफी कम 52 प्रतिशत से भी नीचे थी।
  • अमरीका के इंडिया पाॅलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा 2013 के अंत मंे जारी एक अध्ययन में कहा गया था कि 2006 से मुसलमानों की साक्षरता का स्तर और सुधार की मात्रा दूसरी आबादियों की तुलना में साधारण सी थी।
  • इसी अध्ययन से यह पता चला कि भारत के सिर्फ 11 प्रतिशत मुसलमान ही उच्चतर शिक्षा में थे जबकि इसका राष्ट्रीय स्तर 19 प्रतिशत था और अध्ययन की अवधि में उच्चतर शिक्षा में मुसलमानों में सामान्यतः यह दर वास्तव में डेढ़ प्रतिशत कम ही हुई थी।
  • ओवैसी ने नेशनल सैम्पल सर्वे आॅफिस या एनएसएसओ की 75वीें रिपोर्ट के हवाले से बताया था कि 3 से 35 साल की 22 प्रतिशत मुस्लिम लड़कियों का कभी किसी औपचारिक शैक्षिक कोर्स में दाखिला नहीं हुआ।

इस अध्ययन से मालूम हुई बात परेशान करने वाली हैं जो मुसलमानों और कमजोर वर्गों में दूसरों की सतत जरूरत का बताती हैं। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

सरकारी सहायता की जरूरत

मेरे विचार में, इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी निवेश की सहायता से एक व्यापक और सामूहिक प्रयास की जरूरत है। इस प्रयास से हर स्तर पर शैक्षिक अवसर और गुणवत्ता मिलनी चाहिए। शैक्षिक साक्षरता पहली कोशिश होनी चाहिए और किसी स्तर तक उच्चतर शिक्षा इस कोशिश की मंजिल होना चाहिए।

प्राथमिक और माध्यमिक स्तरों पर भारत सरकार के लिए आवश्यक है कि यह अपने शैक्षणिक सुधार की पहल को बेहतर करे ताकि भाषा, विज्ञान, गणित और तकनीक में बुनियादी ज्ञान, कौशल और योग्यता सुनिश्चित हो सके। हालांकि मदरसों में सिर्फ 2-4 प्रतिशत मुसलमान बच्चे और युवक पढ़ते हैं, फिर भी उन्हें अपना पाठ्यक्रम आधुनिक बनाने की जरूरत है जो इस्लाम केन्द्रित अथवा इस्लाम मात्र पर आधारित न होकर एक समग्र सोच के साथ बनाया जाए जिससे यहां के छात्र भारतीय समाज में सहजता से घुलमिल जाएं।

उच्चतर शिक्षा सिर्फ चार साल के काॅलेज या यूनिर्सिटी जीवन का क्षेत्र न हो। इसमें माध्यमिक और माध्यमिकोत्तर स्तर से तकनीकी, वोकेशनल और पेशेवराना शिक्षा शामिल हो। उन क्षेत्रों में शिक्षा से 21वीं सदी के कॅरियर, वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्पर्धाओं में टिकने की योग्यताओं के साथ-साथ मुसलमानों व कमजोर वर्गों के लोगों को गरीबी और वंचित रहने की अवस्था से निकालने की क्षमता का निर्माण होता है।

मैं अपनी व्यक्तिगत भागीदारी से जानता हूं कि मुसलमान हर स्तर पर मुसलमानों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने को संकल्पित हैं। उदाहारण के लिए अमेरिकन फेडरेशन ऑफ मुस्लिम ऑफ इंडियन ऑरिजिन पूरे भारत के वंचित मुसलमानों व अन्य के लिए सैकड़ों स्कूलों को सहायता और छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।

बालिका शिक्षा का उत्थान

द ड्यूटी सोसाइटी ऑफ अलीगढ़ के कई सदस्यों ने कमजोर वर्गों और स्थानों के शैक्षिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करने के साथ-साथ 2016 में अपने 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर संगठनात्मक प्रयास को तेज किया है। मैंने स्वयं एएमयू की ऐसी कोशिशों से मदद की है जिनसे मुसलमानों के लिए उच्चतर शिक्षा के अवसर बेहतर होते हैं। इनमें नये मैनेजमेंट काॅम्पलेक्स, उद्यमिता केन्द्र और जन संचार विभाग के लिए ऑडिटोरियम के लिए फंडिंग शामिल है। फ्रैंक एंड डेबी इस्लाम मैनेजमेंट काॅम्पलेक्स को समर्पित करते हुए मैंने कहा था- इस मैनेजमेंट काॅम्पलेक्स से भविष्य के नेता मिलेंगे जो भारत और विश्व को एक बेहतर जगह बनाने वाले होंगे। यह एक शैक्षिक सशक्तिकरण क्षेत्र होगा।

मेरे अंदर अर्थपूर्ण शिक्षा तक बालिकाओं की पहुंच बेहतर करने का जीवन भर जुनून और संकल्प रहा है। अगर हम शिक्षा से उन्हें सशक्त बनाते हैं तो इसकी पूरी संभावना है कि वे स्वयं अपनी भाग्य विधाता हांेगी। शिक्षा लड़़कियों को परिवर्तन की वाहक बनाती हैं। शिक्षा के अभाव में बड़ी संख्या में परिवार गरीबी के जाल में फंसे रहते हैं। अपनी शिक्षा से लड़कियां बड़ी होकर मां के रूप में अपने बच्चों को पढ़ाकर इस लायक बना सकती हैं कि वे गरीबी के चक्कर में न फंसें।

यही वजह है कि मेरी पत्नी डेबी और मैंने आजमगढ़, यूपी में महिलाओं के लिए एक तकनीकी स्कूल के विकास में सहायता देने का वादा किया है। ऐसी मुसलमान ग्रेजुएट भारत और विश्व को एक बेहतर जगह बनाने में अपना अमूल्य योगदान देंगीं।

मुसलमानों और अन्य कमजार वर्गों के विकास की जरूरत पर ध्यान देना एक रणनीतिक निवेश है। यह उनका अधिकार है, उनपर उपकार नहीं। जिन्हें यह अधिकार मिलेगा वे दूसरों की मदद में अपना हाथ बटा सकते हैं। फलस्वरूप, ये सरकारी और गैर सरकारी निवेश भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज के लिए दिन दूना रात चैगुना लाभ पहुंचाने वाले होंगे।

(फ्रैंक एफ. इस्लाम वाशिंगटन डीसी स्थित उद्यमी और सामाजिक विचारक हैं। ये उनके निजी विचार हैं। उनसे [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है।)