कोविड-19 को लेकर भारत की खाद्य सुरक्षा प्रतिक्रिया : संदेहरहित, स्मार्ट और मानवीय-सुधांशु पांडे

बीते वर्षों में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) ने, जो 1960 के दशक में खाद्यान्न आपूर्ति की कमी के प्रबंधन की एक प्रणाली के तौर पर शुरू की गई थी, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (एनएफएसए) के तहत ‘कल्याण-आधारित’ से ‘अधिकार-आधारित’ खाद्य-सुरक्षा प्लेटफॉर्म तक का लंबा सफर तय कर चुकी है। करीब 67 प्रतिशत नागरिकों के लिए ‘भोजन का अधिकार’ कानून बनाना और हर महीने क्रमश: 3, 2, 1 रुपये प्रति किलो चावल, गेहूं और मोटे अनाज को सस्ते दाम पर लक्षित आबादी को खाद्यान्न वितरित करना दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रयास है। यह देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है।

एनएफएसए के तहत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) केंद्र और राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों की ओर से संयुक्त रूप से संचालित की जा रही है, जहां केंद्र सरकार देशभर में खाद्यान्न की खरीद, भंडारण, आवंटन और एफसीआई के तय डिपो तक इसे पहुंचाती है, तो राज्य/केंद्रशासित प्रदेश अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत पात्र परिवारों/लाभार्थियों की पहचान करते हैं और 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत तक शहरी आबादी को कवर करते हुए अधिनियम के प्राथमिकता वाले परिवारों (पीएचएच) की श्रेणियों के तहत राशन कार्ड जारी करते हैं और उसका प्रबंधन, उचित मूल्य की दुकानों (एफपीएस) के लिए खाद्यान्न आवंटन और लाभार्थियों को वितरित करने के लिए सभी एफपीएस तक डोर-स्टेप-डिलीवरी सुनिश्चित करते हैं।

सशक्त प्रौद्योगिकी प्रणाली : गरीबों को पहुंचा रही लाभ

इन वर्षों में, खासतौर से पिछले 6 वर्षों के दौरान कई ऐतिहासिक पहलों और तकनीकी हस्तक्षेपों ने टीपीडीएस में कई सुधारों को बढ़ावा दिया है। ‘टीपीडीएस परिचालनों का एंड-टू-एंड कंप्यूटरीकरण’ टीपीडीएस संचालन में मूक क्रांति लेकर आया है जो नागरिक केंद्रित सेवा सुनिश्चित करते हुए दुनिया के सबसे बड़े खाद्यान्न वितरण नेटवर्क को मैन्युअल रूप से संचालित प्रणाली से पारदर्शी स्वचालित प्रणाली में परिवर्तित कर रहा है। एनएफएसए के तहत देशभर में >80 करोड़ लाभार्थियों को कवर करने वाले 23.5 करोड़ राशन कार्डों की डिजिटल सूची पारदर्शिता और भागीदारी के लिए राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के संबंधित सार्वजनिक पोर्टलों पर उपलब्ध है। 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने अपने गोदामों में स्टॉक के ऑनलाइन प्रबंधन और इन-आउट की जानकारी के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखला के संचालन को स्वचालित कर दिया है। कुछ राज्यों में लाभार्थियों को एसएमएस भी भेजे जाते हैं, जिसमें उन्हें अपने एफपीएस में खाद्यान्न मिलने के संभावित समय और उसकी मात्रा के बारे में भी जानकारी दी जाती है। इसके अलावा, टोल-फ्री हेल्पलाइन 1967/1800-श्रृंखला और पीडीएस से संबंधित शिकायतों को दर्ज कराने के लिए ऑनलाइन प्रणाली ने लोगों को और सशक्त बनाया है।

सब्सिडी वाले खाद्यान्नों को प्रभावी ढंग से लक्षित आबादी तक पहुंचाने के लिए अपनाए गए प्रौद्योगिकी-सुधारों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ही वास्तविक लाभार्थियों की पहचान है। इस समय देश में 90 प्रतिशत से अधिक राशन कार्ड आधार के साथ संबद्ध हो चुके हैं, जिससे देशभर में 4.9 लाख (कुल 5.4 लाख का 91%) इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल उपकरणों के माध्यम से 70 प्रतिशत मासिक आवंटन का पारदर्शी तरीके से बायोमेट्रिक वितरण संभव हो सका है। इन उपायों ने 2013 से पिछले 7 वर्षों के दौरान लगभग 4.39 करोड़ अयोग्य/डुप्लीकेट राशन कार्ड की पहचान कर बांटे जा रहे सब्सिडी वाले अनाज पर रोक लगाई है और इस तरह से एनएफएसए के तहत लाभार्थियों के उचित लक्ष्यीकरण में लगातार सुधार हो रहा है।

इसके अलावा, प्रौद्योगिकी ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इस तरह की एक बड़ी और जटिल प्रणाली निरंतर निगरानी और लोगों की राय हासिल कर लचीली बनी रहे। लगातार तीसरे पक्ष के आकलन के साथ ही आईआईटी/आईआईएम जैसे प्रमुख संस्थानों/विश्वविद्यालयों के माध्यम से समवर्ती मूल्यांकन केंद्र और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों को पीडीएस को संवेदनशील और उत्तरदायी बनाए रखने में मदद कर रहे हैं।

वितरण के लिए एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण : एक देश एक राशन कार्ड

कंप्यूटरीकरण की मजबूत नींव का लाभ उठाते हुए, ‘एक देश एक राशन कार्ड (ओएनओआरसी) योजना’ के तहत प्रौद्योगिकी संचालित प्रक्रिया के माध्यम से देश में राशन कार्डों की नेशनल पोर्टेबिलिटी की शुरूआत की गई है। यह एकीकृत दृष्टिकोण अपने उसी राशन कार्ड का उपयोग कर बायोमेट्रिक/आधार प्रमाणीकरण के साथ देश के किसी भी कोने में किसी भी एफपीएस से पीडीएस का लाभ उठाकर खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा देकर लाभार्थियों को सशक्त बना रहा है। चूंकि यह पहल प्रवासियों को उनकी खाद्य-सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर होने में मदद कर रही है, इसलिए यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत प्रधानमंत्री के प्रौद्योगिकी से संचालित प्रणाली सुधारों का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। वर्तमान में यह प्रणाली लगभग 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में सक्रिय है और 68.7 करोड़ लाभार्थी (देश में 85 प्रतिशत एनएफएसए आबादी) कवर हो रहे हैं जबकि मार्च 2021 तक हम शेष आबादी को भी कवर करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं जिसमें दिसंबर 2020 तक अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। राष्ट्रीय हेल्पलाइन नंबर 14445 पोर्टेबिलिटी को आसान और लाभार्थी के अनुकूल बना रहा है।

महामारी के दौरान पायलट प्रोजेक्ट की शुरूआत : 2020

आगे यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई योग्य लाभार्थी न छूटे, छह राज्यों के छह जिलों- झारखंड (पलामू), उत्तर प्रदेश (बाराबंकी), गुजरात (छोटा उदयपुर), आंध्र प्रदेश (गुंटूर), हिमाचल प्रदेश (मंडी) और मिजोरम (हनथियाल) में संमिलन पर एक पायलट परियोजना शुरू की गई। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित ईज ऑफ लिविंग (ईओएल) सर्वेक्षण से मिले लाभार्थी डेटा को संमिलन के स्तर को सत्यापित करने के लिए पीडीएस डेटा के साथ मैप किया गया। हालांकि ईओएल डेटा के आधार पर आधारित न होने के कारण इस प्रक्रिया में कुछ चुनौतियां भी थीं। इस पूरे अभ्यास का उद्देश्य आम लाभार्थी को लेकर इस बात की जांच करना था कि सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों का लाभ उचित लाभार्थियों तक पहुंच रहा है या नहीं। इसके अलावा यह भी जांचना था कि कोई भी वास्तविक और योग्य लाभार्थी, जो किसी कार्यक्रम में लाभार्थी माना गया है, वह दूसरे मंत्रालय के अन्य कार्यक्रम में न छूट जाए।

61 प्रतिशत मैचिंग डेटा के साथ पायलट परियोजना दिलचस्प परिणाम दे रही है। अभिसरण में सुधार करने के लिए ब्लॉक, पंचायत और गांव स्तर पर गहराई से जांच का प्रयास किया गया है। एक कदम आगे बढ़कर भारत के रजिस्ट्रार जनरल के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) डेटा के साथ आधार से संबद्ध एनएफएसए लाभार्थियों के डेटाबेस को मैप करने के लिए एक जैसी ही प्रक्रिया अपनाई जाएगी। इस पायलट की सफलता डेटाबेस के मिलान और एक मास्टर डेटाबेस के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, जिसका उपयोग सरकार की विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रम के तहत उचित लक्ष्यीकरण के साथ अभिसरण के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म के तौर पर किया जा सकता है। ताजा उदाहरण स्वास्थ्य मंत्रालय का वह प्रस्ताव है जिसमें आयुष्मान भारत (पीएम- जन आरोग्य योजना) के तहत लाभार्थियों की पहचान के लिए एनएफएसए डेटा का इस्तेमाल करना है, चूंकि यह 67 फीसदी आबादी को कवर करता है और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी वंचित और कमजोर तबके के लोग हेल्थ कवर के लाभ से न छूटें।

महामारी के दौरान पीडीएस ने कैसे पहुंचाया लाभ?

कोविड संकट के दौरान, देश की तकनीकी संचालित पीडीएस ने तेजी के साथ अप्रैल से नवंबर 2020 तक पिछले 8 महीनों के दौरान देश में 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को करीब दोगुना मात्रा में खाद्यान्न वितरित किया। इस अवधि के दौरान विभाग ने लगभग 680 एलएमटी खाद्यान्न (सामान्य एनएफएसए के तहत करीब 350 एलएमटी, पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 321 एलएमटी) आवंटित किया था और यह देखा गया कि सभी चुनौतियों के बावजूद कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए औसतन प्रति माह 93 प्रतिशत खाद्यान्न सफलतापूर्वक वितरित किए गए। इसके अलावा, अनुमानित रूप से 2.8 करोड़ प्रवासियों/फंसे प्रवासियों में से करीब 2.74 करोड़ (98 प्रतिशत) लोगों ने आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत मुफ्त राशन प्राप्त किया। डालबर्ग जैसी एजेंसियों द्वारा किए गए कुछ स्वतंत्र सर्वेक्षणों ने भी महामारी के दौरान पीडीएस के माध्यम से लाभार्थियों के बीच खाद्यान्नों की उपलब्धता और वितरण के संबंध में बहुत उच्च स्तर की संतुष्टि व्यक्त की है।

सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम: आसानी से क्रियान्वयन

दुनिया में कहीं भी भारत के पीडीएस जितना बड़ा कार्यक्रम नहीं चल रहा है। इस प्रणाली के जरिए न केवल महामारी के दौरान वितरण हुआ बल्कि कई मायनों में संकट के दौरान सुधार भी हुआ है। वैसे, कुल मिलाकर देखें तो कमियां अब भी हो सकती हैं, पर महामारी के दौरान खाद्य सुरक्षा से निपटने के तरीके में भारत एक बेहतरीन उदाहरण के तौर पर उभरा है। यह हमारे नेतृत्व, खासतौर से प्रधानमंत्री के विजन और मजबूत प्रतिबद्धता के कारण संभव हो सका। हर महीने लगभग 81 करोड़ लोगों को भोजन देने के लिए 8 महीने मुफ्त खाद्यान्न वितरण के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की शुरूआत की गई। संकट के समय में भारत ने प्रदर्शित किया कि वह चुनौती से ऊपर उठकर भंडारण, परिवहन से लेकर वितरण तक की सभी बाधाओं से प्रभावी ढंग से निपटने में सक्षम है। लॉकडाउन के दौरान खाद्यान्न की अभूतपूर्व मात्रा को संभालने और आपूर्ति श्रृंखला के व्यवधानों से सुदूर क्षेत्रों तक डिलिवरी प्रभावित न होने देने के संपूर्ण वितरण नेटवर्क में शामिल लोगों के साथ ही भारतीय किसान भी बधाई के पात्र हैं। हजारों रेलवे रेक्स, ट्रकों से खाद्यान्न को पहुंचाया गया और अंतिम छोर तक वितरण के लिए उड़ानों और जहाजों का इस्तेमाल किया गया, जो अभूतपूर्व है।

कोविड-19 सावधानियां : सामाजिक दूरी

जैसा कि कहा जाता है कि आवश्यकता आविष्कार और नवाचारों की जननी है; कोविड-19 संकट के दौरान यह सही साबित हुआ, जब देशभर में एफपीएस डीलरों ने सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने के लिए नए तरीके अपनाए जिससे पूरे अभियान में सामाजिक दूरी बनाए रखी जा सके। देशभर के एफपीएस पर विभिन्न फनल्ड डिलिवरी तंत्र का उपयोग किया गया।

कोविड-19 के दौरान खाद्य-सुरक्षा: सुनिश्चित आपूर्ति

अरुणाचल प्रदेश के सुदूर इलाकों में रहने वाले लोगों तक समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए खाद्यान्न एयरलिफ्ट किया गया। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और अन्य क्षेत्रों में रहने वाले उन लोगों को इससे फायदा हुआ, जिन तक गाड़ी से पहुंचने का मार्ग नहीं था।

पहाड़ और पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित दुर्गम गावों तक निर्बाध खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए घोड़ों, खच्चरों और बकरियों आदि के माध्यम से खाद्यान्न पहुंचाया गया। उत्तराखंड/जम्मू-कश्मीर में सड़क मार्ग से न पहुंचे जा सकने वाले दुर्गम क्षेत्रों में स्थित एफपीएस तक सामग्री पहुंचाने के लिए टट्टू/खच्चर/घोड़ों की मदद ली गई।

नारी शक्ति…

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्वयं सहायता समूह ‘दुर्गा’ महिला लाभार्थियों के लिए एनएफएसए और पीएम-जीकेएवाई के तहत वितरण के काम में जुटी रही, जो देश में पीडीएस के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

सुधांशु पांडे, सचिव, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग, भारत सरकार