मुस्लिम समाज के पिछड़ने का कारण, पिछले पड़ाव से लगाव

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मुशर्रफ़ अली

मानव की विकास यात्रा में अनेक पड़ाव आये हैं जिन्होने उसकी ज़िंदगी में अहम बदलाव किये हैं। जब मानव का पहला पूर्वज पेड़ों से उतरकर मैदान में दो पैरों पर खड़ा हो गया तो उसको इसका ज्ञान नही था कि वह अपने इस क़दम से मानव जीवन में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रहा है। उसकी पुरानी जीवन शैली में इससे आमूल-चूल परिवर्तन होने वाला है। अचानक दो पैरों पर खड़े हो जाने से उसके दो हाथ मुक्त हो गये और तब मुक्त हुये इन दोनों हाथों से उसने तरह-तरह के औज़ार बनाने शुरु कर दिये।

इन औज़ारों ने न केवल उसकी बल्कि आने वाली पीढ़ियों की जिंदगी को आसान बनाना शुरु किया। उसके जीवन का यह पड़ाव दौरे-आहन या पत्थर युग के नाम से पहचाना जाता है लेकिन मानव इस पड़ाव पर रुका नही उसने आगे की यात्रा शुरु कर दी। जब उसने पहली बार अनाज उपजाने की विधि खोजी तब यह क़दम भी उसके जीवन में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया। इससे वह एक नये दौर में दाखिल हुआ। कृषि ने उसके घुमक्कड़ जीवन को विराम दिया। उसने जंगली पशुओं में से कुछ को पालतु बनाया और सामाजिक जीवन की शुरुआत की। उसने परिवार नामक संस्था को जन्म दिया और वस्तुओं के विनिमय से व्यापार और आर्थिक जीवन की शुरुआत की। भोजन की ज़िम्मेदारी सम्पूर्ण से हटकर कुछ पर आ गयी और इस तरह खाली हुये लोगों ने नयें काम करना आरम्भ किये। वह कृषि जीवन में सहायक नये औजा़रों का निर्माण करने लगे। इनमें लोहार-बढ़ई-नाई-धोबी-कुम्हार आदि थे जो कारीगर कहलाये।

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कृषि जीवन, मानव की विकास यात्रा का नया पड़ाव था। यहीं राजसत्ता का जन्म हुआ, वर्गो का उदय हुआ। दास-मालिक नामक नये उत्पादन सम्बंध प्रकट हुये लेकिन मानव इस पड़ाव पर भी ज़्यादा समय तक नही रुका। दासों ने अपने मालिकों के खिलाफ़ बगावत कर दी और इसके नतीजे में सामंती समाज का जन्म हुआ। इसमें सबसे बड़ा सामंत, राजा था जो सम्पूर्ण ज़मीन का मालिक होता था। उसके अधीन छोटे-छोटे सामंत थे जो भूदासों से खेती कराते और हासिल होने वाली उपज में से बहुत थोड़ा फसल उपजाने वाले भूदासों के पास छोड़ते बाकि राजा और यह छोटे सामंत आपस में बांट लेते। धर्म नामक संस्था इसी दौर की ईजाद थी।

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राजा के अधीन पुरोहित काम करते जो भूदासों में अपने शोषण के खिलाफ़ उठने वाली आवाज़ों को शांत करते। वह राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि बताते और मरने के बाद के जीवन को तकलीफ़ों से निजात मिलने का जीवन बताते। वह कहते कि तुम्हारे जीवन में जो कष्ट है वह ईश्वर की ओर से तुम्हारे गुनाहों की सज़ा है अथवा तुम्हारे पूर्व जन्म का फल है इसलिए अदृश्य उस ताकत की इबादत करो। उससे अपने गुनाहों की माफ़ी मांगो और अगर वह तुम्हारी इबादत, तपस्या से प्रसन्न हो गया, उसकी दयादृष्टि तुमपर पड़ गयी तो तुम मोक्ष प्राप्त कर लोगे और तुम्हे इस कष्टपूर्ण जीवन से छुटकारा मिल जायेगा। यह पुरोहित, मानव के मन में स्वंय और प्रकृति के बारे में उठने वाले सवालों का जवाब देते। जैसे मै कौन हूं ? कहां से आया और कहां जाऊंगा। इस धरती को किसने बनाया और कौन इसका संचालन कर रहा है।

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यह पुरोहित या धार्मिक विद्वान या अवतार उस दौर में उपलब्ध ज्ञान और राजनीतिक व्यवस्था के हितों के अनुरुप इन सवालों का जवाब देते। सामंतवाद के रुप में पहचाना जाने वाला यह पड़ाव काफ़ी लम्बा था लेकिन इंसान इस पड़ाव पर रुका नही और आगे की ओर चल दिया। अब वह एक नये दौर में दाखिल हुआ। यह उत्पादन के बिल्कुल नये साधनों का दौर था। यह औद्योगिक परिवर्तन का दौर कहलाया। मशीनों के अविष्कार ने उत्पादन में मानव श्रम को कम कर दिया और इस दौर की ज़रुरत के अनुसार एक नये तरह के समाज और उत्पादन सम्बंधों का निर्माण हुआ। जैसाकि मानव की यात्रा के पिछड़े पड़ाव को सामंतवाद नाम दिया गया था उसी तरह इस नये समाज को पंूजीवाद नाम दिया गया। इसमें सबसे बड़ा सामंत जो राजा कहलाता था उसको सत्ताच्युत कर उसकी सामंतवादी व्यवस्था को ध्वस्त कर लोकतंत्र के नाम से एक नई राजनीतिक व्यवस्था को मंज़रेआम पर लाया गया। सामंतवादी दौर में क्योंकि सारे अधिकार राजा के पास केन्द्रित थे इसलिए समस्त अधिकारों से वंचित, राजा की आज्ञा का पालन करने वाली जनता प्रजा कहलाती थी अब उस प्रजा को नागरिक में बदल दिया गया। नागरिक एक ऐसी जनता थी जिसके पास अपने अधिकार थे। इसी को पंूजीवादी दौर कहा गया।

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अभी मानव अपनी विकास यात्रा के इस पड़ाव पर ठहरा हुआ है लेकिन इस पड़ाव से आगे बढ़ने की उसकी कोशिश जारी है। अपनी विकास यात्रा को आगे ले जाने की मानव की इस कोशिश को वह लोग रोकने की कोशिश में लगे हुये हैं जिन्हें इस पड़ाव से काफ़ी लाभ मिल रहा है। वह अपनी पूरी ताकत लगाकर यथास्थिति उसी तरह बनाये रखना चाहते हैं जैसेकि पिछले दौर में मौजूद सामंत या राजा करता था लेकिन जैसाकि इतिहास में होता रहा है उनकी कोशिश से भले ही थोड़ा विलंब हो लेकिन अंत में उन्हें विफल ही होना है। वह मानव समाज वापस पीछे की ओर कदापि नही ले जा सकते साथ ही ज़्यादा समय तक वर्तमान में भी नही रोक सकते।

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अब हम इस दौर में मौजूद विकास की दौड़ में पिछड़ गये अनेक समुदाय और समाज की बात करेंगे। हम उनके पिछड़ने के कौनसे कारण है उनपर ग़ौर करेंगे। उन समाजों में से एक मुसलमान हैं। यह छिपी बात नही है कि चाहे वह शिक्षा का मैदान हो या औद्योगिक विकास का, सभी में मुसलमान उत्तरी गोलार्द्ध के देशों के समाजों की तुलना में पिछड़ गये हैं। इतिहास में कभी वह इनसे या तो समकक्ष या आगे थे तब ऐसा क्या हुआ कि वह विकास की दौड़ में पिछड़ गये तो उसका एक बड़ा कारण पिछड़े पड़ाव से उनका लगाव नज़र आता है।

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जो भी समाज ज्ञान के मामले में खुद को आगे की ओर बनाये नही रखेगा और बार-बार पीछे की ओर मुड़कर देखता रहेगा वह ठोकर खाता हुआ चलेगा। वह अपने दिमाग़ को आगे के सफ़र पर केन्द्रित नही रख पायेगा। उसका दिल लगातार उसे वापस पीछे की ओर चलने के लिए प्रेरित करेगा। वह आधेमन से चलता नज़र आयेगा। उसके मन में यह विचार बना रहेगा कि वह वापस पीछे की ओर लौट चले क्योंकि वही दौर अच्छा था। यही कारण है कि जिस पड़ाव से बाक़ि दुनिया कबकी आगे निकल चुकी है वह उसी पड़ाव पर रुक गया है। यह पड़ाव सामंतवादी पड़ाव है।

भले ही वह वर्तमान में पंूजीवादी पड़ाव में उपलब्ध सुविधाओं और आधुनिक विज्ञान का लाभ उठा रहा है लेकिन मानसिक रुप से वह पिछड़े पड़ाव पर ही ठहर गया है। उसे उस पड़ाव से इश्क हो गया है। उस पड़ाव की यादों ने उसे आत्ममुग्ध कर दिया है। उसका हाल उस आदमी की तरह हो गया है जिसके चश्में का नम्बर बदल गया है जिसकी वजह से वह आज की दुनिया को देख नही पा रहा है और पिछली दुनिया की जो तस्वीर उसके ज़हन में बिठा दी गई है वह उसे इतनी मोहक लग रही है कि वह सोचता है कि अगर मैने अपने चश्में का नम्बर बदलवाया तो वह तस्वीर उसकी कल्पना से ओझल हो जायेगी। यही कारण है कि उसने अपने चश्में का नम्बर बदलवाने की कोशिश बंद कर दी है। उसने सामंती समाज के अवशेष अपने शरीर पर तो धारण किये हुये ही है उन्हे मन में भी धारण कर रखा है।

दुनिया के अनेक मुस्लिम बहुल देशों ने इस सामंतवादी पड़ाव से आगे बढ़ने की कोशिश की, कुछ इसमें सफ़ल भी हुये जैसे टर्की लेकिन 100 साल भी नही बीते थे कि दबी हुई वह ताक़तें फिरसे उभर आयी जो अपने अनुकूल वातावरण न पाकर छिपकर अन्दर ही अंदर अपनी मुहिम चला रही थी। जैसे ही उन्हें अपने अनुकूल माहौल मिला उन्होने उस देश को वापस पुराने पड़ाव की ओर लौटाने की मुहिम शुरु कर दी। इसी तरह ईरान आगे बढ़ते-बढ़ते पिछले पड़ाव की ओर लौट गया। कुछ देशों ने और कोशिश की लेकिन आज के दौर की यथास्थिति को बनाये रखने वाली पंूजीवादी ताकतों ने उनकी कोशिशों को विफल कर दिया और उन्हें अपने साथ इस पंूजीवादी दौर में रखने की जगह पिछड़े पड़ाव की ओर ढकेल दिया। कारण था कि अगर वह आज के दौर में बने रहेगे तो वह उनकी जिंदगी में मौजूद सुविधाओं में न केवल हिस्सा बटायेंगे बल्कि उनसे प्रतियोगिता भी करने लगेंगे।

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आपको मुसलमानों में ऐसे बहुत से लोग नज़र आ जायेंगे जो आधुनिक विज्ञान का लाभ लेते हुये अंग्रेज़ी भाषा बोलते नज़र आयेंगे। आप उनकी भाषा-वेशभूषा उनके रहन-सहन से यह सोचने लगेंगे कि यह तो पिछड़े पड़ाव से आगे निकल आये हैं लेकिन अगर आप उनके ज़हन को कुरेदेंगे या उनके लेख या विचार पढ़ेंगे तो आपके सामने यह हक़ीक़त उजागर हो जायेगी कि यह तो पुराने पड़ाव पर ही ठहरे हुये हैं। वह आज भी सामंती दौर की न्याय और समाज व्यवस्था में विश्वास करते है उसे श्रेष्ठ समझते हैं।

हर वह व्यक्ति या समुदाय या समाज तब तक पिछड़ा बना रहेगा जबतक उसका लगाव पिछड़े पड़ाव से बना रहेगा। जो आज की चुनौतियां का जवाब पीछे तलाश करते हैं वह हमेशा न केवल शासित बने रहेगे बल्कि लगातार अपमान और शोषण का शिकार होते रहेगे। आज ज़रुरत है कि ज्ञान के मामले में दुनिया को आगे का रास्ता दिखाया जाये। खुद में मौजूद सामंती समाज के अवशेषों को तलाश कर उससे निमर्म मानसिक संघर्ष किया जाये और भविष्य की दुनिया का निर्माण करने के लिए अपनी नई नस्ल को रौशनख्याली की शक्ल में बौद्धिक दौलत से नवाज़ा जाये।

*लेखक मुशर्रफ़ अली हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।