
होली, जो प्रतीक है बुराई पर अच्छाई के लिए। अधर्म पर धर्म का विजय के लिए। वैसे तो होली को हम रंगों के त्योहार के रूप में देखते हैं, लेकिन इस त्योहार में जितना रंगों का महत्व है, उतना हीं होलिका दहन का। रंग वाले दिन के पहले दिन को हम होलिका दहन के रूप में मनाते हैं। सूखी टहनियां, लकड़ी और सूखे पत्ते इकट्ठा कर उन्हें एक सार्वजनिक और खुले स्थान पर रखा जाता है और फिर मुर्हूत के अनुसार उसे जलाया जाता है। मकसद मान्यताओं को जीवंत रखना और समाज में मौजूद बुराइयों को अग्नि में जलाकर खत्म करने की कामना करना होता है।
होलिका दहन कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा की रात्रि ही होलिका दहन किया जाता है। इस बार होलिका दहन 9 मार्च को किया जाएगा, जबकि रंगों वाली होली 10 मार्च को है। होलिका दहन के बाद से ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। मान्यता है कि होली से आठ दिन पहले तक भक्त प्रह्लाद को अनेक यातनाएं दी गई थीं। इस काल को होलाष्टक कहा जाता है। होलाष्टक में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। कहते हैं कि होलिका दहन के साथ ही सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
होलिका दहन की तिथिः 9 मार्च 2020
पूर्णिमा तिथि प्रारंभः 9 मार्च 2020 को सुबह 3 बजकर 3 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्तः 9 मार्च 2020 को रात 11 बजकर 17 मिनट तक
होलिका दहन मुहूर्तः शाम 6 बजकर 26 मिनट से रात 8 बजकर 52 मिनट तक
होलिका दहन की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सालों पहले पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यपु राज करता था। उसने अपनी प्रजा को यह आदेश दिया कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की वंदना न करे, बल्कि उसे ही अपना आराध्य माने. लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद ईश्वर का परम भक्त था। उसने अपने पिता की आज्ञा की अवहेलना कर अपनी ईश-भक्ति जारी रखी. ऐसे में हिरण्यकश्यपु ने अपने पुत्र को दंड देने की ठान ली। उसने अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठा दिया और उन दोनों को अग्नि के हवाले कर दिया। दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी। लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और सदाचारी प्रह्लाद बच निकले। तभी से बुराइयों को जलाने के लिए होलिका दहन किया जाने लगा।
रंगों का त्योहार
होलिका दहन के अगले दिन रंग-गुलाल का त्योहार मनाया जाता है। होलिका दहन के बाद यानि 10 मार्च को रंगों का त्योहार है। सभी एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं। गांवों में सुबह के समय गिली मिट्टी की होली भी खेली जाती है। सभी रंगों के इस त्योहार में सराबोर रहते हैं। सामान्य तौर पर शाम के समय से गुलाल लगाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। जो छोटे होते हैं, वो अपने से बड़े लोगों के पैरों पर भी गुलाल लगाकर होली मनाते हैं।
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