सच्चे मेहनत और लगन ने दिलाई सफलता, ठेले पर पॉपकॉर्न और फल बेचने से लेकर जानिए कामयाबी तक कैसी रही उपेंद्र महतो की कहानी….!

कहते हैं खम ठोक ठेलता है जब नर पर्वत के जाते पांव उखड़, मानव जब जोर लगाता है पत्थर पानी बन जाता है। नमस्कार मैं सिद्धार्थ आज आप सभी के सामने एक ऐसे शख्स की कहानी लेकर आया हूं। जो आपको जीवन में कभी ना हारने की प्रेरणा देगी।

1977 में बिहार के शिवहर जिला में जन्मे उपेंद्र महतो। अपने घर के सबसे बड़े थे। मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण कम उम्र में ही इन्हें जीवनयापन के लिए काम करना पड़ा। दिनभर काम में व्यस्त रहने के कारण इनकी पढ़ाई अधूरी रह गई। परंतु इन्होंने अपनी अधूरी शिक्षा को कभी जीवन का बहाना नहीं बनाया और हर परिस्थिति से लड़ते चले गए।

जीवन के शुरुवाती समय में उपेंद्र महतो ने अपनी जिंदगी में काफी उतार चढ़ाव देखे। पर जीवन में इतने उतार चढ़ाव के बावजूद भी उन्होंने मजबूरीयों के आगे झुकने से मना कर परिश्रम के साथ परिस्थितियों से संघर्ष का चुनाव किया। उम्र ढलने के साथ उपेंद्र महतो का बचपना अब खत्म हो गया था। हालांकि जिम्मेदारियों के तले दबकर उपेंद्र महतो का बचपन तो काफी पहले ही उनसे छीन चुका था। धीरे धीरे परिवार का दायरा बढ़ने लगा और जिम्मेदारियों का बोझ अब सीधे तौर पर उपेंद्र महतो पर आना शुरू हो गया था।

जिम्मेदारियों और जरूरतों के बोझ ने उपेंद्र महतो को गांव की गलियों से दूर शहर कि तंग मोहल्लों में लाकर खड़ा कर दिया। शहर में आने के बाद ठेले पर पॉपकॉर्न, फल आदि बेचकर उपेंद्र महतो अपने घर का खर्च चलाने लगे। सिर्फ खुद अकेले का खर्च नही अपने से छोटे 4 भाइयों के साथ माता पिता सहित पूरे परिवार का खर्च संभालना उपेंद्र महतो के लिए इतना आसान नहीं था। पर एक कहावत है न की मरता क्या ना करता… जीवन के हर मोड़ पर दुख देखने और दुखो से होकर गुजरने वाले उपेंद्र महतो ने मेहनत का हाथ इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वो समय से गांव पैसे नही भेजेंगे तो उनके छोटे भाइयों की शिक्षा भी अधूरी रह जायेगी।

कामयाबी आने से पहले शोर नहीं मचाती, वर्ष 2014 उपेंद्र महतो के जीवन में एक सुनहरा अवसर बनकर आया जिसका उपेंद्र महतो ने भी अपने मेहनत और लगन के बल पर पूरा फायदा प्राप्त किया। 2014 में उपेंद्र महतो ने अपनी जमा की हुई पूंजी और जहां तहां से कर्ज लेकर गोल्डन नामक आइसक्रीम के डिस्ट्रीब्यूटर बन गए। समय फिर बीतता चला गया और उपेंद्र महतो का व्यवसाय चल पड़ा। कल गांव से शहर नौकरी के तलाश में आने वाला लड़का, पूरे शहर में घुमघुमकर ठेले पर फल और पॉपकॉर्न बेचने वाला व्यक्ति आज सीधे तौर पर 15 लोगो को रोजगार उपलब्ध करा रहा है। पर अब भी उपेंद्र महतो ने परिश्रम का दामन नहीं छोड़ा है। आपको आज भी उपेंद्र महतो देर रात तक कठिन परिश्रम करते नजर आ जायेंगे। और जमीन से जुड़े व्यक्तियों की एक खासियत होती है कि बड़ी से बड़ी सफलता भी उनको जमीन से दूर नहीं कर सकती।

यह थे उपेंद्र महतो जो अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय से आज भी खुद को बेहतर बनाने में लगे हुए हैं। उम्मीद हैं कि आज का हमारा यह विशेष संपादन आपको पसंद आया हो। अब हमे दीजिए इजाजत। फिर मुलाकात होगी एक नए किरदार और एक नई कहानी के साथ। खुश रहिए, निरोग रहिए, मुस्कुराते रहिए और बिहार से जुड़ी हर छोटी से छोटी खबर के लिए देखते रहिए shift India….