पटना के फुटपाथ पर तालीम ले ऐसे रौशन हो रहे तारे जमीं के…

बिहार की राजधानी पटना के बोरिंग रोड स्थित फुटपाथ पर कुछ युवकों के प्रयास से सूरज डूबने के बाद जगमगा उठते हैं तारे जमीं के। समाज को संदेश देती पटना की यह कहानी बता रहे हैं विवेक चंद्र…

वक्त ढ़लती शाम का है। पटना के एसके पुरी स्थित फुटपाथ पर छोटे-छोटे कई टेबुल लैंप जगमगा रहे हैं और इनकी मध्धीम से रोशनी में फैल रहा है शिक्षा का उजियारा। दो दर्जन से ज्यादा गरीब बच्चे हर दिन यहां फुटपाथ पर लगने वाले इस खास स्कूल में तालीम लेने आते हैं। यहां पढ़ने वालों में सभी बच्चे वैसे हैं, जो दिन भर दो जून की रोटी की तलाश में छोटा मोटा काम किया करते हैं। कोई गुब्बारा बेचता है, तो कोई कूड़ा बीनने का काम करता है।

अमन और उनके दोस्तों की अनोखी पहल

पटना के फुटपाथ पर हर शाम पांच बजे से सात बजे तक कामकाजी बच्चों के लिए ये स्कूल संचालित होता है। इस अनोखे स्कूल को चला रहे हैं पटना के युवा अमन और उनके दोस्त संयम, सूरज, पंकज, प्रज्ञा और गरिमा। ये सभी दोस्त मिलकर बच्चों को पढ़ाते हैं, साथ हीं कलम किताब जैसी जरूरतों को भी पूरा करते हैं।

ऐसे मिली प्रेरणा

अमन को फुटपाथ पर इस अनोखे स्कूल को संचालित करने की प्रेरणा गुब्बारे बेचने वाली एक बच्ची रेशम से मिली। अमन बताते हैं कि हम सभी दोस्त हर शाम यहां की चाय दुकान पर चाय पीने आते थे। यहीं रेशम नाम की एक बच्ची गुब्बारे बेचती थी। धीरे-धीरे यह बच्ची हम लोगों से घुल-मिल गयी। एक दिन वह गुब्बारे के साथ पीठ पर एक स्कूल बैग टांगकर आयी और कहा कि मुझे पढ़ना है। उसके बाद हम सभी दोस्त ने फुटपाथ पर बिठाकर उस बच्ची को हर शाम पढ़ाना शुरू कर दिया। देखते-देखते यहां बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। आज यहां 35 बच्चे हैं, जो हर शाम पढ़ाई के लिए जुटते हैं।

स्थानीय लोगों से भी मिल रही मदद

बच्चों को पढ़ाने वाली प्रज्ञा बताती हैं कि शुरू में हम सभी दोस्तों ने मिलकर चटाई और बैट्री से संचालित होने वाले टेबुल लैंप खरीदे, किताबें और पेंसिल खरीदे। पर अब इस कार्य में स्थानीय लोगों का समर्थन भी मिल रहा है। कई लोग यहां बच्चों की पढ़ाई के लिए जरूरी संसाधान की आपूर्ती करवा रहे हैं।

बेहद खुश रहते हैं बच्चे

इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के चेहरों पर पढ़ाई की खुशी साफ झलकती है। यहां पढ़ने वाले प्रिंस कहते हैं कि हम जब दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देखते थे तो हमें भी लगता कि काश हम भी पढ़ पाते। आज हमारी पीठ पर भी स्कूल बैग होता है और हम भी यहां बैठ पढ़ाई करते हैं। प्रिंस आगे कहता है कि वह दिन भर परिवार की गाड़ी खींचने के लिए कुछ काम किया करता है। पर उसका सपना डॉक्टर बनने का है, जिससे वह लोगों की मदद कर सके।

अमन और उनके दोस्तों के इस नेक पहल से मशीन होती इस दुनिया में न सिर्फ उम्मीद का नया सवेरा फूट रहा है बल्कि इन कामकाजी बच्चों की आंखों में भी भर रही है एक चमक।