पटना, 13 जून, 2021, हमारी गौरैया और पर्यावरण योद्धा, पटना की ओर से आज ‘गौरैया बचाओ, पर्यावरण बचाओ’ अभियान के तहत “पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली में गौरैया और पर्यावरण” विषय पर ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया।
हमें पर्यावरण के पीछे के मूल उद्देश्यों को समझने की आवश्यकता
परिचर्चा को संबोधित करते हुए पर्यावरण चिंतक और प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी), पटना के निदेशक दिनेश कुमार ने कहा कि इंसान जिस तरह पारिस्थितिकी के साथ परस्पर क्रिया कर रहा है, उससे पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि कम आयु वाले इंसानों ने पर्यावरण के अधिक आयु वाले जंगल, पहाड़, नदियों आदि को लगातार नुकसान पहुंचाया है। इससे ना केवल इंसानों की आयु कम होगी बल्कि उनके जीवन गुणवत्ता में भी कमी आएगी। उन्होंने कहा कि हमें पर्यावरण के पीछे के मूल उद्देश्यों को समझने की आवश्यकता है। हम इस इकोसिस्टम में केवल एक वाहक के रूप में हैं और हमें इसी रूप में अपनी भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
पौधारोपण को अपने संस्कार में शामिल करना चाहिए
परिचर्चा को संबोधित करते हुए ‘ट्रीमैन’ नाम से मशहूर पर्यावरणविद राजेश कुमार सुमन ने कहा कि लोगों को हर अवसर पर पौधे लगाने की परंपरा को विकसित करना चाहिए। पौधारोपण को अपने संस्कार में शामिल करना चाहिए। जन्मदिन, सालगिरह एवं अन्य अवसरों पर लोगों को कम से कम एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए। इससे प्रतिवर्ष करोड़ों पौधे लगाए जा सकेंगे। उन्होंने कहा कि वे अपने ग्रीन पाठशाला के बच्चों से गुरु दक्षिणा के रूप में 18 पौधे लगाने की आग्रह करते हैं। उन्होंने इसके पीछे का तर्क दिया कि एक व्यक्ति को पूरे जीवन काल में जितने ऑक्सीजन की आवश्यकता है, उसकी पूर्ति कम से कम 18 पेड़ों जितना उत्सर्जित ऑक्सीजन से होता है। उन्होंने कहा कि देश के अन्य राज्यों के मुकाबले नार्थ ईस्ट में कोविड-19 के कम प्रभाव की वजह वहां पर अत्यधिक जंगलों का होना है।
गौरैया संरक्षण के लिए मुख्य रूप से यह हैं आधार
परिचर्चा को संबोधित करते हुए भूवैज्ञानिक, पर्यावरणविद एवं हिंदी रचनाकार डॉक्टर मेहता नगेंद्र सिंह ने गौरैया संरक्षण के लिए मुख्य रूप से 3 आधार बताए हैं- पहला दाना पानी की व्यवस्था, दूसरा आवास यानी घोंसले की व्यवस्था और तीसरा ढेर सारा प्यार। उन्होंने कहा कि हम मध्यम प्रजाति के पौधों को लगाकर गौरैया के लिए प्राकृतिक आवास का निर्माण कर सकते हैं। यह गौरैया संरक्षण की दिशा में एक अच्छी पहल होगी।
परिचर्चा में शामिल कवित्री जिज्ञासा सिंह ने गौरैया और पर्यावरण से जुड़े कई मनमोहक स्वलिखित कविताओं का पाठ किया।
मेरे घर आना, तू प्यारी गौरैया ।
शोर मचाना, तू प्यारी गौरैया ।।
तोता को लाना, मैना को लाना
बुलबुल को लाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर…
पेड़ लगाऊँगी, पकड़िया लगाऊँगी
घोसला बनाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर…
दाना भी दूँगी, तुम्हें पानी भी दूँगी
ख़ूब नहाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर…
ख़ूब बड़ा सा है, मोरा अँगनवाँ
फुदक फुदक जाना, तू प्यारी गौरैया ।।
मेरे घर…
पर्यावरण के साथ-साथ गौरैया का भी संरक्षण अहम
परिचर्चा के संयोजक एवं जाने माने गौरैया संरक्षक तथा प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो, पटना के सहायक निदेशक संजय कुमार ने कहा कि इकोसिस्टम में सभी घटक एक दूसरे के पूरक हैं। लेकिन इंसानों ने विकास और विलासिता की अंधीधुंध यात्रा में पर्यावरण के बिगड़ते मिजाज को और बिगाड़ दिया है। पारिस्थितिकी तंत्र को तार-तार कर दिया है। बात गौरैया और पर्यावरण की करें तो पारिस्थितिकी तंत्र के लिये औरों की तरह गौरैया की भी भूमिका अहम है। गौरैया हमारा मित्र है। घरेलू पक्षी है जो पर्यावरण का एक संरक्षक के रूप में कार्य करता है। पर्यावरण के साथ-साथ गौरैया का भी संरक्षण अहम है क्योंकि वह हमारे इको सिस्टम की हिस्सा है। नहीं तो चीन जैसा हाल हो जाएगा जब 1958 मेँ वहाँ के प्रशासक ने अनाज की बर्बादी के लिए गौरैया को दोषी करार देकर उसके खात्मे का फरमान जारी कर दिया था और देखते देखते गौरैया का पूरी तरह से सफाया कर दिया गया था। लेकिन अगले साल फिर फसल बर्बादी हुई तो पता चला कि गौरैया उसके लिए दोषी नहीं थी बल्कि फसल मेँ लगने वाले कीड़ों को खा कर मदद ही कर रही थी।
गौरैया एवं पर्यावरण विषय पर आयोजित परिचर्चा में धन्यवाद ज्ञापन भूगोल विभाग, पटना विश्वविद्यालय के निशांत रंजन ने किया। परिचर्चा में पवन कुमार,रेणु बाला,अमित पांडेय, शिव कदम,नतबर राज,सुधांशु सहित बड़ी संख्या छात्र जुड़े थे।
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