बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होते ही सियासत भी तेज हो गई…महागठबंधन के दल फ्रंटफुट पर तो बीजेपी असमंजस में फंसी हुई नजर आ रही….

 अगस्त 2022 में नीतीश सरकार ने जातिगत जनगणना को कैबिनेट से मंजूरी दी थी तो बीजेपी इसके समर्थन में खड़ी रही थी, लेकिन अब उसके नेता दो नावों पर सवार हैं।

बीजेपी के कुछ नेता आर्थिक तो कुछ जातिगत जनगणना के पक्ष में है। ऐसे में बीजेपी से न तो खुलकर विरोध करते बन रहा है और न ही समर्थन करते बन रहा है?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन दिनों ‘समाधान यात्रा’ के जरिए बिहार का दौरा कर रहे हैं। उन्होंने यात्रा के दौरान कहा कि इस सर्वेक्षण में जाति और समुदाय का विस्तृत रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा। इस जनगणना से सिर्फ जातियों की गणना नहीं, बल्कि राज्य के हर परिवार के बारे में आर्थिक सहित और पूरी जानकारी जुटाई जाएगी, जिससे उनके विकास में मदद मिलेगी और देश व समाज के उत्थान में भी बहुत फायदा होगा। साथ ही आरजेडी नेता व डिप्टीसीएम तेजस्वी यादव ने कहा कि इस सर्वेक्षण से सरकार को गरीब लोगों की मदद के लिए वैज्ञानिक तरीके से विकास करने में मदद मिलेगी। तेजस्वी ने कहा कि बीजेपी नहीं चाहती कि जनगणना की जाए।

असमंजस में है बीजेपी…

बीजेपी जातिगत जनगणना पर असमंजस में फंसी हुई है।बीजेपी सांसद सुशील मोदी कहते हैं कि जब कैबिनेट की बैठक से जातिगत जनगणना का निर्णय पारित हुआ था तब तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री नहीं थे। ऐसे में तेजस्वी को इसका श्रेय लेने का कोई हक नहीं। सुशील मोदी यह भी कहते हैं कि कर्नाटक व तेलंगाना के बाद बिहार तीसरा राज्य है, जहां बीजेपी के समर्थन से जातिगत जनगणना हो रही है। हालांकि, वह यह भी कहते हैं कि क्या गारंटी है कि जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाएगी?

उपजातियों की भी होनी चाहिये गणना….

बिहार में एनडीए सरकार के दौरान डिप्टी सीएम रहे तारकेश्वर प्रसाद कहते हैं महागठबंधन सरकार की ओर से कराई जा रही जातीय गणना से समाज के विकास की जगह जातीय तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जातीय जनगणना के विरोध में सीधे तो कुछ नहीं कह रहे हैं, लेकिन प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ जाति की गणना हो रही है, उप जातियों की गणना क्यों नहीं हो रही है? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुशवाहा समाज में दांगी समाज को उपजाति नहीं मानेंगे तो क्या उसे एक अलग ही जाति मानेंगे और बनिया समाज में 65 उपजातियां हैं तो क्या उसे एक वैश्य समाज ही मानेंगे या 65 उप जातियों में मानेंगे।

गरीबों को क्या लाभ मिलेगा इस से ?

वहीं, बिहार में बीजेपी के दिग्गज नेता विजय सिन्हा जातिगत जनगणना पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्होंने ट्विटर पर वीडियो जारी कर कहा कि जातीय के बजाए केवल आर्थिक जनगणना करवाकर समाज को तोड़ने से बचाया जा सकता है। समरस समाज की परिकल्पना कभी भी जाति में बांट कर पूरी नहीं की जा सकती है।क्षेत्रीय पार्टियां केवल अपनी राजनीतिक रोटी सेकना और अपना उल्लू सीधा करना चाहती हैं।

52 फीसदी भागीदारी का है खेल….

जातिगत जनगणना के विरोध और समर्थन के पीछे सारा खेल सियासत से जुड़ा है। जातिगत जनगणना के समर्थन के पीछे पिछड़ी जातियों के वोट बैंक का है, जिनकी आबादी 52 फीसदी से ज्यादा बताई जाती है। विरोध के पीछे उच्च जातियों का दबाव है। मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े समुदाय की आबादी 52 फीसदी है, लेकिन उन्हें 27 फीसदी आरक्षण मिलता है। ओबीसी का कहना कि उनकी आबादी बढ़ी है। इसीलिए नतीश कुमार और तेजस्वी यादव पुरे जोर शोर से जनगणना का श्रेय ले रहे हैं।