बोडोलैंड की मांग करने पर लगा विराम, केंद्र सरकार ने NDFB के साथ किया शांति समझौते पर हस्ताक्षर

 

असम में अलग बोडोलैंड की मांग करने वाले नेशनल डेमोक्रेटिक फेडरेशन आफ बोडोलैंड के साथ सरकार का शांति समझौते पर करार हो गया है. एनडीएफबी के सभी गुटों ने हिंसा का रास्ता छोड़ने का फैसला किया था. लंबे समय से अलग बोडो राज्य की मांग करते हुए आंदोलन चलाने वाले ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (एबीएसयू) ने भी इस समझौते पर हस्ताक्षर किये. इस त्रिपक्षीय समझौते पर असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल, एनडीएफबी के चार गुटों के नेतृत्व, एबीएसयू, गृह मंत्रालय के संयुक्त सचिव सत्येंद्र गर्ग और असम के मुख्य सचिव कुमार संजय कृष्णा ने गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में हस्ताक्षर किये. केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक समझौता है. उन्होंने यह दावा भी किया कि इससे बोडो मुद्दे का व्यापक हल मिल सकेगा.

एनडीएफबी के 1550 सदस्य करेंगे सरेंडर

शांति समझौते के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज केंद्र, असम सरकार और बोडो प्रतिनिधियों ने एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. यह समझौता असम के लिए और बोडो लोगों के लिए एक सुनहरा भविष्य सुनिश्चित करेगा. उन्होंने कहा कि 130 हथियारों के साथ एनडीएफबी के सभी गुटों के 1550 सदस्य 30 जनवरी को आत्मसमर्पण करेंगे. गृह मंत्री के रूप में मैं सभी प्रतिनिधियों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि सभी वादे समयबद्ध तरीके से पूरे होंगे. जिन चार गुटों के साथ समझौता हुआ है, उनमें रंजन डैमारी, गोविंदा बासुमातरी, धीरेन बारो और बी. साओरैगरा के नेतृत्व वाले गुट शामिल है.

1960 से हो रही है बोडोलैंड को अलग राज्य बनाने की मांग

असम में बोडोलैंड का मुद्दा और इससे जुड़ा विवाद छह दशक पुराना है. बोडो ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है. वह 1960 से अपने लिए अलग राज्य की मांग करती आई है. उसका कहना है कि उसकी जमीन पर दूसरे समुदायों की अनाधिकृत मौजूदगी बढ़ती जा रही है जिससे उसकी आजीविका और पहचान को खतरा है. 1980 के दशक के बाद बोडो आंदोलन हिंसक होने के साथ तीन धाराओं में बंट गया था. पहली धारा का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) ने किया जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था. दूसरा संगठन बोडोलैंड टाइगर्स फोर्स (बीटीएफ) है जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की. तीसरा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी एबीएसयू था जिसने समस्या के राजनीतिक समाधान की मांग की. इस दौरान हुई हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान गई और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा.