महागठबंधन के भीतर राजद और जदयू के बीच तल्ख बयानों के बीच राजद की कमान संभाल रहे उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस बार खुद को इस पचड़े में नहीं डालना चाह रहे…इस परहेज के मूल में है राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद द्वारा दिए गए टिप्स…

खुद तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि पापा ने उन्हें बताया है कि धैर्य ही बल है। इसलिए वह विवाद वाले मसले पर सीधे-सीधे किसी तरह बयानबाजी से बच रहे हैं। उन्हें पता है नीतीश कुमार पर ही महागठबंधन की पूरी कवायद निर्भर है। यही वजह है कि तेजस्वी माहौल गर्म करने वाले बयानों पर यह कह रहे हैं कि वोट तो केवल लालू प्रसाद और नीतीश कुमार पर है, इसलिए दूसरे बयानवीर पर ध्यान देकर वक्त क्यों खराब करना?

तेजस्वी यादव के इस अंदाज की राजनीतिक गलियारे में खूब चर्चा है। एक तीर से दो निशाने साधने की बात कही जा रही है। पहला यह कि नीतीश कुमार के प्रति अपनी आस्था को मजबूत तरीके से उन्हाेंने सभी के सामने रख दिया है। दूसरी बात यह आई कि वह उन नेताओं की परवाह नहीं करते जो उनके दल के नेताओ के तल्ख बयान पर सक्रिय हैं।

जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने जब राजद विधायक सुधाकर सिंह के मसले पर अपनी सक्रियता बढ़ाई थी, तब भी तेजस्वी ने अपनी बात नीतीश कुमार को केंद्र में रखकर ही कही थी। उन्होंने तब यह कहा था कि महागठबंधन के नेता हैं नीतीश कुमार। उन पर किसी तरह की अमर्यादित टिप्पणी बर्दाश्त नहीं।

सुधाकर सिंह पर कार्रवाई की बात हवा में तैरती रही पर तेजस्वी के इस बयान के बाद मामला पर्दे के पीछे चला गया। इस तरह रामचरितमानस प्रसंग में भी तेजस्वी ने अपनी बात बिल्कुल ही नए ढंग से कह डाली। उन्होंने कहा कि भारत का संविधान हमारा सबसे पवित्र ग्रंथ है।

उन्होंने कहा कि संविधान यह बताता है कि सभी धर्मों का हमें सम्मान करना है। यह भी जोड़ा कि संविधान के माध्यम से यह बात कही गई है कि लोगाें को अपनी बात रखने की स्वतंत्रता है। यानी यहां भी उन्होंने एक तीर से दो निशाने लगा लिए।

संविधान का सहारा लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कह शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का बचाव भी किया और संविधान का ही जिक्र कर सभी धर्मों के सम्मान की नसीहत भी दी। सबसे दिलचस्प यह रहा कि लगातार बयान दे रहे लोगों को कठघरे में खड़ा करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भाजपा के एजेंडे पर काम कर रहे हैं।