
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँयाद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरेआधी सोई आधी जागी
थकी दोपहरी जैसी माँचिड़ियों के चहकार में गूंजे
राधा-मोहन अली-अलीमुर्ग़े की आवाज़ से खुलती
घर की कुंडी जैसी माँबिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी थोड़ी सी सब मेंदिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँबाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गईफटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ ।
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