बालिका आज… माँ कल -पद्मश्री डॉ.उषाकिरण खान ने कहा-भारतीय बालिकायें किसी से कम नहीं

नारी सम्मान तो हमारी भारतीय परंपरा का अंग है। हम यूँ ही नहीं कहते रहे हैं, मातृदेवो भव! माता प्रथम गुरू है, माता ही सर्वोपरि है। माता ही भोजन, वस्त्र और आवास देती है। गर्भ प्रत्येक जन का पहला आवास है, गर्भगृह वस्त्र है तथा सत्व-दुग्ध भोजन है। ऐसी माता कोई और नहीं बालिका ही है। प्रकृति में जितना जरूरी पुरूष है उतना ही जरूरी स्त्री भी है। प्रत्येक प्राणवान वस्तु स्त्री और पुरूष में विभाजित है। सो उसके बिना कायनात नहीं। हमारी माईथोलाॅजी में प्राकृतिक प्रतीक जो ठोस हैं, उनमें स्वभाव तथा अवदान के आधार पर वर्गीकरण है। धरती स्त्री है तो आकाश पुरूष, सूर्य पुरूष, नदियाँ स्त्री हैं तो सागर पुरूष। भौगोलिक रूप से पृथ्वी सूरज के गिर्द घूमती हैI पर सूर्य जो हजारों ग्रहों, उपग्रहों नक्षत्रों यानि सम्पूर्ण आकाश-गंगा को आलोकित करते हैं: उनका असली अस्तित्व पृथ्वी से ही प्रमाणित होता है। यह है स्त्री की मह्त्ता जो बालिका होने से ही प्रारंभ होती है। बालिका विकसित होती है माँ बनने के लिए। बालिका रहेगी तभी माँ बचेगी। वह बचेगी तभी हम माँ को बचा पायेंगे। तकनीक हमें समृद्ध करने के लिए ईजाद की गई, परंतु वही विनाश का कारण बन गई। हमारी परंपरा में जहाँ स्त्री को देवी का दर्जा मिला वहीं उसे कई जगह मात्र संतानोत्पत्ति का उपकरण मान लिया गया। पुरूषवादी यह भूल जाते हैं कि कुलवंश वृद्धि बिना स्त्री के नहीं हो सकती है। उन्हें मात्र पुत्र की आकांक्षा है। ऐसे में नई तकनीक के माध्यम से गर्भ के लिंग की जाँच करा नष्ट कर देते हैं। कई स्थान पर जन्म के बाद मार डालते हैं। इन जघन्य पापों से बची हुई लड़कियाँ भी सुरक्षित नहीं रहतीं। शिशु से लेकर वयस्क लड़की कहाँ सुरक्षित है? आये दिन जबर्दस्ती की दिल दहला देने वाली घटनायें होती रहती हैं। ऐसी घटनाओं से डरे हुए लोग भी उनमें से हैं जो लड़की को जन्म ही नहीं होने देना चाहते।

बालिका की रक्षा करेंगे तभी हमारा भविष्य सुरक्षित

ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि जगदम्बा अब कंस के हाथों से छूट चुकी है। वह कसाई कंस की गिरफ्त में नहीं है। समाज की आँखों में आँखें डालकर बालिकायें ही बता रही हैं कि जितना जुल्म ढाह लो, मैं रहूंगी परचम गाड़ के। सो हमें सोचना पड़ेगा कि समाज को, जन जन को किसी तरह शिक्षित प्रशिक्षित किया जाय ताकि बलात्कार जैसा जघन्य अपराध बंद हो। भारतीय बालिकायें किसी से कम नहीं है। उनके हाथों में जिसकी बागडोर थमाई जाय, वह बखूबी कुछ उत्कृष्ट करके दिखा देती हैं। उन्हें अवसर मिलना चाहिए। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जहाँ स्त्री कार्यरत नहीं है। देश की आतंरिक सुरक्षा यानी पुलिस, बाह्य सुरक्षा यानि सेना सब स्थान पर अपना झंडा गाड़ चुकी हैं। यह सब मात्र पुरूषोचित कार्य था,जिसे बालिकायें बखूबी सँभाल रही हैं। सेना की तीनों शाखाओं में हमारी बेटियाँ करतब दिखा रही हैं। यहाँ तक कि अंतरिक्ष में भारत की बेटियों ने उड़ाने भरीं। कल्पना चावला को कौन भूल सकता जिसने अंतरिक्ष में अपने को विलीन कर लिया। बछेन्द्री पाॅल ने पहली बार जब हिमकिरीट हिमालय के सागरमाथा एवरेस्ट पर पतह का झंडा गाड़ा था तब किसे पता था कि यह कार्य कालांतर में कई बालिकायें करेंगेी। बालिका की रक्षा करेंगे तभी हमारा भविष्य सुरक्षित रहेगा।

स्त्रियों की सेना वैशाली गणतंत्र को बचाने की निर्णायक लड़ाई लड़ी

बालिकाओं को लेकर इतिहास में अनेक उदाहरण हैं। आपने उसपर विश्वास किया, उसने आपको आश्वस्त किया। ऐतिहासिक छठी शताब्दी बी.सी. में स्त्रियों की सेना वैशाली गणतंत्र को बचाने की निर्णायक लड़ाई लड़ रही थी। साम्राज्य को दुष्टों के हाथों में जाने से बचाने को स्त्रियों की सेना लड़ रही थी। सम्राट अशोक से युद्ध में दो दो हाथ करने उत्कल वासिनी प्रज्ञा स्त्री ही थी। यह हमारे ऊपर है कि हम अपनी बालिकाओं को क्या बनाना चाहते हैं? हमारे यहाँ लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की अवधारणा यूँ ही नहीं है।  बालिका दिवस मनाने का व्यापक प्रबंध होने से कुरीतियों पर कुठाराघात हो सकता है। इक्कीसवीं सदी में जब पूरे देश में, गाँव गाँव में बालिकायें निर्भय होकर साइकिल चलाती हुई स्कूल पढ़ने जाने लगीं, तब परिवर्तन की ताजा हवा से इन्कार नहीं किया जा सकता है। गाँव गाँव में शिक्षा का प्रचार पूरी तरह से हो, प्रशिक्षण का प्रबंध हो, तब बालिकाओं में शक्ति का संचार होगा।

स्वतंत्रता आंदोलन में कंधों से कंधे मिलाकर बालिकाओं ने भाग लिया

बालिका दिवस 2008 से 24 जनवरी को मनाया जाना सुनिश्चित किया गया। देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने 24 जनवरी 1966 में शपथ लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में कंधों से कंधे मिलाकर बालिकाओं ने भाग लिया; वह चाहे रानी लक्ष्मी बाई हों या बनमाला बोस। अपने जान की बाजी लगा गईं। आजाद देश में केन्द्रीय मंत्री बनीं, मुख्यमंत्री और राज्यपाल बनीं; अन्ततः पहली बाद देश की बागडोर एक स्त्री के हाथों में आई इंदिरा गाँधी एक सशक्त प्रधानमंत्री के रूप में ख्यात हुईं। जिन युद्धों को पंडित जवाहरलाल नेहरू हार रहे थे उनकी हिम्मत इंदिरा गाँधी के सामने पस्त हो गई। पूर्वी पाकिस्तान का अस्तित्व मिट गया होता यदि भारतीय सेना साथ न देती प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के कारण सेना का आत्मविश्वास बढ़ा ताकि पाकिस्तानी सेना समर्पण कर सके। ऐसी शक्तिमती बाला को तत्कालीन बड़े नेता जो बाद में अविस्मरणीय प्रधानमंत्री बने अटलबिहारी वाजपेयी ने ‘दुर्गा’ की उपाधि दी। ऐसी शक्ति स्वरूपिणी इंदिरा गाँधी के विशेष महत्वपूर्ण दिन को भारती बालिका दिवस की मान्यता देकर हमने स्वयं को स्वतः गौरवन्वित किया है।

इस विशेष दिन हम संकल्पित हों कि हम बालिका को लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा मानेंगे। सारे समाज को यह संदेश देंगे। हम अन्याय के खिलाफ निस्पृह नहीं रहेंगे।

लेखक- सुप्रसिद्ध हिंदी और मैथिली की लेखिका हैं पद्मश्री डॉ. उषाकिरण खान