महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने नवलखा और तेलतुंबडे को सरेंडर करने के लिए तीन हफ्तों का समय दिया है. इसके साथ ही उन्हें जल्द से जल्द अपना पासपोर्ट आत्मसमर्पण करने को कहा है. नवलखा और तेलतुंबड़े की ओर से अदालत में वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी उनका पक्ष रख रहे थे.
जमानत पर ‘सुप्रीम’ इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को यूएपीए एक्ट के तहत भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में अंतरिम जमानत देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. याचिकाकर्ताओं ने बाम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
बॉम्बे हाईकोर्ट से खारिज हो चुकी है जमानत
बाम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद के कथित माओवादी संपर्क मामले में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था. न्यायमूर्ति पी. डी. नाइक ने उनकी अग्रिम जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया. पुलिस ने आरोप लगाया कि इस सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन प्राप्त था. तेलतुंबडे और नवलखा ने पिछले साल नवंबर में अग्रिम जमानत मांगते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था. इससे पहले पुणे की एक सत्र अदालत ने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया था.
जनवरी 2018 में दर्ज हुआ मामला
पुणे पुलिस ने एक जनवरी 2018 को पुणे जिले के कोरेगांव भीमा गांव में हिंसा के बाद माओवादी संपर्कों तथा कई अन्य आरोपों में नवलखा, तेलतुंबडे और कई अन्य कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज किया था। पुणे पुलिस के अनुसार, 31 दिसंबर 2017 को पुणे में हुए एल्गार परिषद सम्मेलन में उत्तेजक भाषण और उकसावे वाले बयान दिए गए जिससे अगले दिन कोरेगांव भीमा में जातीय हिंसा भड़क उठी थी
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