सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एडल्ट्री के सबूत नहीं होने पर DNA टेस्ट की अनुमति नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि एडल्ट्री (व्याभिचार) का कोई प्राथमिक सबूत नहीं है तो शादी के दौरान पैदा हुए बच्चे की वैधता स्थापित करने के लिए डीएनए परीक्षण का आदेश नहीं दिया जा सकता है। मंगलवार को न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने निचली अदालत और बंबई हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के साथ वैवाहिक विवाद में अपने बच्चे के डीएनए परीक्षण का आदेश देने की याचिका की अनुमति दी थी, क्योंकि उसने आरोप लगाया था कि वह उस बच्चे का जैविक पिता नहीं है और उसकी पत्नी के अन्य पुरुषों के साथ शारीरिक संबंध थे।

एडल्ट्री साबित करने के लिए नहीं दिया जा सकता डीएनए परीक्षण का आदेशः SC

पीठ ने भारतीय एविडेंस अधिनियम की धारा 112 का उल्लेख किया, जो कि एक बच्चे की वैधता के अनुमान के बारे में बताती है। पीठ का कहना है कि एडल्ट्री (व्याभिचार) साबित करने के लिए सीधे डीएनए परीक्षण का आदेश नहीं दिया जा सकता है और निचली अदालत और हाईकोर्ट ने आदेश पारित करने में गलती की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यभिचार के आरोप को साबित करने के लिए कुछ प्राथमिक सबूत होने चाहिए और उसके बाद ही अदालत डीएनए परीक्षण के वैज्ञानिक साक्ष्य पर विचार कर सकती है. बच्चे के डीएनए परिक्षण कराने के लिए याचिका दायर करने वाले व्यक्ति की वकील मनीषा कोरिया ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट की ओर से आदेश पारित किया जा चुका है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि ‘प्राथमिक साक्ष्य कहाँ है? सीधे डीएनए परीक्षण नहीं किया जा सकता है. आपको कुछ प्राथमिक सबूत दिखाने होंगे।’

निचली अदालत और हाई कोर्ट ने दिए थे DNA टेस्ट के आदेश

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले इस जोड़े की शादी 2008 में हुई थी और 2011 में इनके घर एक बेटी का जन्म हुआ था। जिसके छह साल बाद पति ने तलाक की याचिका दायर की थी. इसके बाद उन्होंने बच्चे के डीएनए टेस्ट के लिए फैमिली कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। हालांकि निचली अदालत ने उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा. जिसके बाद पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख किया।

पत्नी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को बताया कि पति की ओर से दायर तलाक की याचिका में एडल्ट्री (व्याभिचार) का कोई आरोप नहीं लगाया गया था और उस याचिका में एडल्ट्री (व्याभिचार) का एक भी दावा नहीं किया गया था. उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं। फिलहाल कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद डीएनए परीक्षण के आदेश को रद्द कर दिया है।