राहुल गांधी ने सोची समझी रणनीति के तहत छोड़ा अमेठी, इन समीकरणों के चलते चुनी गई रायबरेली की सीट

अमेठी का रण छोड़कर राहुल गांधी ने एक साथ कई निशाने साधे हैं। इसके पीछे कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति नजर आती है। एक तो कमजोर संगठन, दूसरा हार के बाद क्षेत्र से दूरी सहित कई ऐसे कारण हैं, जिसका जवाब कांग्रेस नहीं खोज पा रही थी। ऐसे में एक बीच का रास्ता निकाला गया। नतीजन, करीब एक माह से अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी चयन को लेकर बने सस्पेंस पर अंतिम क्षणों में पर्दा उठा। राहुल गांधी के रायबरेली और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा के नामांकन के बाद कार्यकर्ता तक सकते में हैं। चाय-पान की दुकानों से लेकर सोशल मीडिया तक में यहीं छाया हुआ है। इसके नफा-नुकसान का आकलन हो रहा है।

पिछले दिनों सोनिया गांधी के राज्यसभा में जाने के बाद जारी किए गए उनके भावुक पत्र के बाद ही यह बड़ा सवाल खड़ा हुआ था कि रायबरेली में उनकी विरासत कौन संभालेगा। बेटा राहुल गांधी या फिर बिटिया प्रियंका गांधी। विरासत के सवाल का महज चार दशक का ही मंथन करें तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाती है। 1980 में संजय गांधी की मौत के बाद जब बेटे राजीव गांधी और बहू मेनका गांधी में किसी एक के चयन की बात आई तो इंदिरा गांधी ने भी बेटे को तवज्जो दी थी। 1984 में मेनका गांधी बगावती तेवर अख्तियार कर राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में उतरीं तो शिकस्त का मुंह देखना पड़ा।

1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद 1999 में सोनिया गांधी राजनीति में लौटीं तो अमेठी में पति की विरासत को संभाला। 2004 में जब उन्होंने अपना क्षेत्र बदलकर रायबरेली किया तो अमेठी सीट राहुल गांधी को ही सौंपी। यह वह दौर था जब सोनिया से लेकर कमोवेश पूरी कांग्रेस राहुल के पीछे खड़ी थी। राहुल ने पार्टी की कमान तक संभाली।

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