पटना हाईकोर्ट ने बिहार के नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव को एक दिसंबर को तलब किया है। मामला राज्य के नगर निकायों में चुनाव में देरी और सरकार की तरफ से बहाल प्रशासकों का कार्यकाल खत्म होने से जुड़ा हुआ है। प्रधान सचिव को इस बात का जवाब देना होगा कि जब राज्य में नगर निकाय के विघटन की अवधि 6 महीने से अधिक हो गई है तो फिर किस कानून के तहत प्रशासक निकायों में काम कर रहे हैं। साथ ही उनसे ये भी जाना जाएगा कि प्रावधानों और कानूनों का उल्लंघन मान प्रशासक द्वारा किए जा रहे कार्यों पर रोक क्यों न लगा दी जाए।
कल यानी गुरुवार को न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति सुनील दत्त मिश्रा की खंडपीठ ने दो अलग-अलग रिट याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की। राज्य सरकार की तरफ से सरकारी वकील किंकर कुमार ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद डेडिकेटेड कमीशन का गठन कर दिया गया है। डेडिकेटेड कमीशन (अतिपिछड़ा वर्ग आयोग) की रिपोर्ट आते ही राज्य में नगर निकाय का चुनाव करा लिया जाएगा। राज्य के नगर निकायों में चुनाव में देरी और सरकार की तरफ से बहाल प्रशासकों का कार्यकाल खत्म होने के मामले में आवेदकों की ओर से कोर्ट को बताया गया कि संविधान के तहत 5 साल की अवधि खत्म होने के पहले नगर निकाय का चुनाव हर हाल में करा लेना है। लेकिन राज्य के नगर निकायों का चुनाव नहीं करा कर उसे विघटित कर दिया गया और प्रशासक की बहाली कर दी गई। एक साल से ज्यादा की अवधि बीत जाने के बावजूद नगर निकायों में प्रशासक काम कैसे कर रहे हैं। कोर्ट को बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कार्यों को गैरकानूनी करार दिया है। जिस प्रकार पंचायतों में परामर्शदात्री समिति का गठन किया गया, उसी प्रकार नगर निकायों में भी परामर्शदात्री समिति का गठन किया जाए, ताकि नगर निकाय का कार्य सुचारू रूप से चुनाव खत्म होने तक हो सके।
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