अमेरिका एक प्रतिष्ठित अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने एक बड़ा दावा किया है। दावे में कहा गया है कि चीन लोगों पर प्रयोगात्मक तौर पर कोरोना वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाला पहला देश है। चीन ने जुलाई के अंत में इस वैक्सीन को उच्च जोखिम दर वाले समूहों से आने वाले लोगों को दिया था।
रूस से भी पहले चीन ने लोगों को दिया वैक्सीन
अखबार के इस रिपोर्ट की माने तो चीन ने रूस से तीन हफ्ते पहले ही अपने लोगों को वैक्सीन दे दी थी। चीन और रूस की वैक्सीन में इस बात की समानता है कि दोनों ने नैदानिक परीक्षण के मानकों को पार नहीं किया है। चीन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने शनिवार को बताया कि उन्होंने कुछ स्वास्थ्यकर्मियों और सरकारी उद्यमों से जुड़े कर्मचारियों को जुलाई के आखिर में आपातकालीन प्रयोग के तहत वैक्सीन की खुराक दी थी।
पूरी दुनिया में इस समय वैक्सीन को बाजार में लाने, वैक्सीन के विकास, उसके ट्रायल को लेकर विवाद हो रहे हैं, यही वजह है कि कई देश प्रोटोकॉल को छिपा कर अपनी वैक्सीन दुनिया के सामने लाना चाहते हैं। बीजिंग की तरफ से यह घोषणा पिछले हफ्ते एक कूटनीतिक विवाद के बाद सामने आई है।
कैसे हुआ खुलासा
दरअसल, चीन ने पापुआ न्यू गिनी से कहा था कि उसने चीन के उन खानकर्मियों को वापस लौटा दिया था जिन्होंने यह प्रयोगात्मक कोरोना वैक्सीन ली थी। कोरोना वैक्सीन को लेकर किए गए चीनी दावे के बाद से अमेरिका सहित कई देश बेचैन हो गए हैं। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया है कि अमेरिका का फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) बिना कोई जानकारी दिए कोरोना वैक्सीन को विकसित करने में देरी कर रहा है।
रूस ने कब किया वैक्सीन बनाने का दावा
वहीं रूस ने 11 अगस्त को दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन बनाने की घोषणा की थी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि उनके देश ने कोरोना की पहली वैक्सीन बना ली है। उन्होंने बताया था कि उनकी बेटी को इसका टीका लगा है और वो अच्छा महसूस कर रही हैं। इसके बाद हाल ही में रूस ने कोरोना की दूसरी वैक्सीन बनाने की भी घोषणा की है।
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