पीएम नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के तमाम नेता लगातार लोकसभा चुनाव 2024 में 400 से अधिक सीटें लाने की बात कर रहे थे। तमाम राजनीतिक विश्लेषक यह तो मान रहे थे कि राम मंदिर निर्माण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और विकास के कार्यों के कारण केंद्र सरकार चुनावों में बढ़त की स्थिति में है और उसे चुनाव में लाभ मिल सकता है, लेकिन चार सौ सीटों की संख्या पार कर पाने को असंभव सा काम माना जा रहा था। लेकिन जिस तरह लोकसभा चुनावों की घोषणा के ठीक पहले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू किया गया है, माना जा रहा है कि इससे जबरदस्त ध्रुवीकरण हो सकता है और इसका भाजपा को लाभ हो सकता है। अब कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानने लगे हैं कि भाजपा अपने लिए 370 और एनडीए के लिए चार सौ सीटों की संख्या को पार कर सकती है।
भाजपा उत्तर भारत के राज्यों में पहले ही बहुत मजबूत स्थिति में है। वहां पर उसे इस तरह के किसी समीकरण के बिना भी बेहतर सफलता मिलने की पूरी-पूरी उम्मीद है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वह सीएए जैसे किसी कानून के बिना भी मजबूत सफलता हासिल करेगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के तमाम नेता लगातार लोकसभा चुनाव 2024 में 400 से अधिक सीटें लाने की बात कर रहे थे। तमाम राजनीतिक विश्लेषक यह तो मान रहे थे कि राम मंदिर निर्माण, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और विकास के कार्यों के कारण केंद्र सरकार चुनावों में बढ़त की स्थिति में है और उसे चुनाव में लाभ मिल सकता है, लेकिन चार सौ सीटों की संख्या पार कर पाने को असंभव सा काम माना जा रहा था। लेकिन जिस तरह लोकसभा चुनावों की घोषणा के ठीक पहले नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू किया गया है, माना जा रहा है कि इससे जबरदस्त ध्रुवीकरण हो सकता है और इसका भाजपा को लाभ हो सकता है। अब कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानने लगे हैं कि भाजपा अपने लिए 370 और एनडीए के लिए चार सौ सीटों की संख्या को पार कर सकती है।
दरअसल, इसके पहले के चुनाव से ठीक पहले भी केंद्र सरकार ने संविधान की अनुच्छेद 35ए से संबंधित दांव खेला था। बालाकोट एयरस्ट्राइक और 35ए की रोशनी में हुए चुनाव में भाजपा ने रिकॉर्ड 303 सीटें हासिल की थीं। अब लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के ठीक पहले सीएए की घोषणा कर भाजपा ने एक बार फिर अपना ट्रंप कार्ड खेल दिया है। विपक्ष इसकी कोई काट खोज पाएगा, कह पाना मुश्किल है।
कहां होगा सबसे ज्यादा लाभ?
भाजपा उत्तर भारत के राज्यों में पहले ही बहुत मजबूत स्थिति में है। वहां पर उसे इस तरह के किसी समीकरण के बिना भी बेहतर सफलता मिलने की पूरी-पूरी उम्मीद है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वह सीएए जैसे किसी कानून के बिना भी मजबूत सफलता हासिल करेगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है।
भाजपा को बिहार और पश्चिम बंगाल में अभी भी सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। बिहार में तेजस्वी यादव की रैली ने भाजपा की नींद हराम कर दी है, तो पश्चिम बंगाल में तमाम परेशानियों के बाद भी ममता बनर्जी किसी तरह से कमजोर होती दिखाई नहीं पड़ रही हैं। लेकिन सीएए के आने से इन राज्यों के समीकरणों में भी बड़ा बदलाव आ सकता है।
पिछले चुनाव में भाजपा ने बिहार की मुस्लिम बाहुल्य किशनगंज लोकसभा सीट को छोड़कर सभी सीटों पर सफलता हासिल कर ली थी, लेकिन यदि सीएए का मुस्लिम समुदाय की ओर से बड़ा विरोध होता है, तो इसकी प्रतिक्रिया में हिंदू मतदाताओं में भी देखने को मिल सकती है और वे भाजपा या उसके सहयोगी दलों के पीछे लामबंद हो सकते हैं। इससे तेजस्वी यादव के समीकरण धरे के धरे रह सकते हैं।
पश्चिम बंगाल में बदल सकते हैं समीकरण
सीएए के लागू होने के तुरंत बाद जिस तरह पश्चिम बंगाल में जश्न का माहौल है, उसे देखकर माना जा रहा है कि भाजपा इसका जमकर लाभ उठा सकती है। चूंकि पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी मुस्लिमों को लेकर हिंदू मतदाताओं के बीच कड़ी प्रतिक्रिया देखी जाती है, ठीक चुनाव के समय सीएए के लागू होने से यह विभाजन बढ़ सकता है, जिससे भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है
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