महावीर जयंती 2020: जानिए, क्यों मनाते हैं ये पर्व एवं क्या है इस वर्ष खास

कोरोना वायरस को देखते हुए अब धार्मिक संस्‍थान और प्रतिष्ठान भी आगे आ रहे हैं और लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का संदेश दे रहे हैं। इसी कड़ी में देश प्रदेश के जैन मंदिर को महावीर जयंति पर बंद रखने का फैसला किया गया है। एक जैन मुनि के अनुसार कोरोना के बढ़ते खतरे को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। मंदिर के खुले रहने पर महावीर जयंती को देखते हुए बड़ी संख्या में लोग आ सकते हैं। ऐसे में संक्रमण फैलने का खतरा को देखते हुए यह निर्णय किया गया है।

इस महावीर जयंती पर जैन मुनी ने कहा- देश पहले

जैन मुनी ने बताया कि कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है। ऐसे में हमारे लिए राष्ट्रधर्म पहले है। लोगों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है। राष्ट्रधर्म को हम पूरी तरह से निभा रहे हैं और ये ध्यान रखा जा रहा है कि मंदिर में लोग न आएं। ऐसे में कोरोना के संक्रमण को रोकने में मदद मिलेगी।

क्यों मानते हैं महावीर जयंती?

कोरोना से जंग के बीच आप पूरा देश महावीर जयंती मन रहा है। ये पर्व जैन समुदाय का बड़ा त्योहार महावीर जयंती के दिन जैन धर्म की स्थापना करने वाले भगवान महावीर का जन्म हुआ था। इस पर्व को महावीर जन्म कल्यानक भी कहा जाता है।

इस पर्व पर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की जयंती मनाई जाती है। इसे हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष के तेरहवें दिन मनाया जाता है।

भगवान महावीर को जैन धर्म का स्थापक माना जाता है किन्तु मान्यता ये भी है कि वो बहुत समय पहले स्थापित हो चुके धर्म का अनुसरण कर रहे थे और उन्होंने उसे ही परिष्कृत और प्रचारित किया।

कहाँ पैदा हुए भगवान महावीर?

भगवान महावीर का जन्म वैशाली के राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां हुआ था। उनका नाम वर्धमान रखा गया था। उनका संबंध इक्ष्वांकु वंश में हुआ था।

उन्होंने अपने पिता के बाद 30 सालों तक शासन किया लेकिन बाद में जीवन के सत्य की खोज में सारे मोह-माया का त्याग कर दिया और जीवन के सत्य की खोज में निकल पड़े। उन्होंने 12 सालों तक कठिन तपस्या के उपरांत वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने इसके बाद जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित किया, इसीलिए उन्हें जैन धर्म के दर्शन और प्रचार-प्रसार का श्रेय दिया जाता है।

अपने पूरे जीवन में उन्होंने अपने शिष्यों को पांच व्रत सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की शिक्षा दी। उनकी शिक्षा को जैन अगम कहा गया। उनके सबसे बड़े व्रत सत्य का ही अनुपालन करता जैन विद्वानों का उपदेश है- ‘अहिंसा ही परमधर्म है। अहिंसा ही परम ब्रह्म है। अहिंसा ही सुख-शांति देने वाली है। अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है। यही मानव का सच्चा धर्म है। यही मानव का सच्चा कर्म है।’

जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान महावीर को 72 साल की आयु में कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में मोक्ष प्राप्त हुआ।

कैसे मनाते हैं?

जैन समुदाय अपने इस सबसे बड़े पर्व को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है, इन मूर्तियों को रथ में बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में जैन धर्म के अनुयायी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं। इस जुलूस में उनके अनुयायी भजन या स्तवन भजते हुए चलते हैं। इस दिन महावीर की शिक्षाओं का पाठ भी किया जाता है। इस दिन उनके अनुयायी सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढकर हिस्सा लेते हैं। जैन मंदिरों में बड़ी-बड़ी प्रार्थना सभाएं की जाती है।

भारत में गुजरात और राजस्थान में जैन समुदाय की बड़ी संख्या है और दिल्ली महाराष्ट्र में जैन लोग रहते हैं। इस दिन इन राज्यों में बड़े स्तर पर महावीर जयंती मनाई जाती है। इसके अलावा, पूरे विश्व में भी जैन समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते हैं।

खान-पान

जैन धर्म में खाने-पीने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। और इस दिन तो इसका खास ख्याल रखा जाता है। जैनी लोग अहिंसा धर्म का पालन करते हुए मांस-मदिरा से तो दूर ही रहते हैं वो जमीन में उगी हुई चीजों, जैसे- प्याज, लहसुन या आलू, का भी सेवन नहीं करते हैं।