एक एक कर राज्यों को अपने कब्जे में करने वाली भाजपा के पश्चिम बंगाल की सत्ता से बाहर होने से पार्टी में किसे मिली राहत!

ममता दीदी से भारतीय जनता पार्टी की हार पार्टी के लिए बड़ा झटका है। सदियों से रण भूमि में  जीत-हार का सिलसिला चलता रहा है, हमेशा से ही कोई जीतता है तो कोई हारता। देखा गया है कि हरने वाला खेमे में  सन्नाटा पसर जाता है लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री शिवराज के लिए यह बड़ी राहत की बात है। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा की पश्चिम बंगाल में हार से वह अंदरूनी तौर पर तो वे बहुत ही खुश होंगे। कारण कुछ और नहीं, बल्कि इस हार मध्य प्रदेश में उनके विरोधी कमजोर हो गये है और उनकी कुर्सी पर मंडराता हुआ संभावित खतरा भी टलता दिखाई पड़ रहा है।

बतादें कि असल में पाश्चिम बंगाल चुनाव की जिम्मेदारी मध्य प्रदेश के तीन दिग्गिज नेताओं के हाथ थी। इसमें भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केन्द्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल और मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा शामिल है। हालांकि विजयवर्गीय लंबे समय से पश्चिम बंगाल के प्रभारी के तौर पर काम कर रहे है।

गौरतलब है कि इससे पहले पश्चिम बंगाल में लोक सभा चुनावों में जीत का सेहरा उन्हीं के सर बांधा चूका है। साथही लोकसभा चुनाव के समय नरोत्तम मिश्रा और प्रह्लाद पटेल को भी अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई थी।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के विरोधी रहे ये तीनों नेता मध्य प्रदेश के है। कोरोना की पहले लहर के ठीक पहले पिछले साल कांग्रेस की सरकार गिरे गई थी तब भाजपा की सरकार बनाने के बाद ये सभी यह इस प्रयास में थे कि शिवराज को मुख्यमंत्री न बनाकर किसी और नए चेहरे को मौका मिले। लेकिन शिवराज सिंह मुख्यमंत्री बन गये। हालांकि पश्चिम बंगाल चुव से पहले ये अटकलें लगाई जा रही थी की बंगाल की जीत के बाद मध्य प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन किया जायेगा।

ख़बरों की माने तो इन नेताओं ने तो आंतरिक तौर पर इसके कोशिश शरू कर दी थी। साथही राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से भी यह भरोसा दिलाया गया था कि इन लोगों को बड़ा इनाम दिया जायेगा। फिलहाल यह माना जाता है कि शिवराज का यह विरोधी खेमा केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी है। वैसे यह मंथन का विषय है कि कभी विजयरथ पर सवार एक के बाद एक राज्यों को अपने कब्जे में करने वाली भारतीय जनता पार्टी  धीरे-धीरे राज्यों की सत्ता से बाहर होती जा रही है।