दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, 100% क्षमता से यात्रा के फैसले से आपत्ति है तो मेट्रो में यात्रा ना करें

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कोरोना के मद्देनजर राजधानी में बसों और मेट्रो में 100 फीसदी क्षमता के साथ यात्रा की अनुमति दिए जाने के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले व्यक्ति को आड़े हाथ लिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि यदि 100 फीसदी क्षमता के साथ यात्रा की अनुमति दिए जाने के दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के फैसले से आपत्ति है तो उन्हें मेट्रो में यात्रा नहीं करनी चाहिए।

इसके साथ ही जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की पीठ ने बसों और मेट्रो में 100 फीसदी क्षमता के साथ यात्रा की अनुमति दिए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि यदि सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करने वाले हर व्यक्ति को ऐसे मुद्दे उठाने और सरकार के फैसले को चुनौती देने की अनुमति दी जाएगी तो इस तरह की याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी।

कोर्ट ने कहा कि संबंधित विभाग के अधिकारियों ने महामारी की स्थिति के आकलन के बाद ही नीतिगत फैसला लिया है और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी। साथ ही हाईकोर्ट ने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा 24 जुलाई को मेट्रो और बसों (डीटीसी और क्लस्टर) में 100 फीसदी क्षमता के साथ यात्रा की अनुमति देने के खिलाफ दाखिल याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया। याचिका में मेट्रो और बसों में सिर्फ 50 फीसदी क्षमता के साथ ही यात्रा की अनुमति देने की मांग की गई थी। साथ ही सीट के अलावा किसी यात्री को खड़े होकर यात्रा करने की अनुमति देने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

अधिवक्ता एस.बी. त्रिपाठी की ओर से याचिका में कहा गया था कि सरकार के इस फैसले से समाजिक दूरी के नियम का पालन नहीं हो पाएगा और संक्रमण का खतरा बढ़ेगा। त्रिपाठी ने याचिका में कहा था कि कोरोना की तीसरी लहर की संभावना है, ऐसे में मेट्रो और बस जैसे सार्वजनिक परिवहन में 100 फीसदी क्षमता के साथ यात्रा की अनुमति देना न सिर्फ जोखिम भरा कदम है, बल्कि नियमों का उल्लंघन भी है।

याचिका में मेट्रो और बसों में सिर्फ 50 फीसदी क्षमता के साथ यात्रा की अनुमति देने की मांग की गई थी, ताकि समाजिक दूरी का पालन हो सके और संक्रमण का खतरा भी कम हो। याचिका में कहा था कि सरकार ने सभी रेस्तरां, सिनेमा हॉल, मल्टीप्लेक्स और अन्य जगहों पर सिर्फ 50 फीसदी लोगों को बैठने की क्षमता से परिचालन की अनुमति दी है। याचिका में कहा गया है कि सार्वजनिक परिवहन और रेस्तरां, पब, बार, सिनेमा हॉल, थिएटर, मल्टीप्लेक्स के लिए अलग-अलग नियम कैसे तय किए जा सकते हैं।