उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के अलावा इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया में इसका विवरण देना सभी पार्टियों के लिए होगा अनिवार्य।

महाराष्ट्र विधानसभा से 12 भारतीय जनता पार्टी के विधायकों को एक साल के निलंबन के मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय लोकतंत्र के लिए खतरा है। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य के वकील ए सुंदरम से सत्र की अवधि से आगे निलंबन की तार्किकता के बारे में कड़े सवाल किए। पीठ ने कहा, जब आप कहते हैं कि कार्रवाई तर्कसंगत होनी चाहिए, तो वहां निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए और निलंबन उस सत्र से आगे नहीं जाना चाहिए।

जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि निलंबन के पीछे कोई वाजिब और ठोस कारण होना चाहिए। पीठ ने कहा, एक वर्ष के लिए निलंबन का निर्णय तर्कहीन है क्योंकि संबंधित निर्वाचन क्षेत्र को छह महीने से अधिक समय के लिए प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं किया जा सकता। हम संसदीय कानून की भावना के बारे में बात कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि जहां एक स्थान खाली होता है, वहां चुनाव होता है। निलंबन के मामले में चुनाव नहीं हो सकता, लेकिन अगर किसी व्यक्ति को निष्कासित कर दिया जाता है तो चुनाव करवाया जाएगा। यह लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है।

पीठ ने कहा कि मान लिया जाए कि किसी दल को मामूली बहुमत है और 15-20 विधायकों को निलंबित कर दिया जाए तो लोकतंत्र का भाग्य क्या होगा?

आपको बता दें कि पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक साल का निलंबन ‘निष्कासन से भी बदतर’ है क्योंकि उन निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व ही नहीं रह गया है। इस पर बुधवार को यानी आज भी सुनवाई जारी रहेगी।

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कहा कि वह उस याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगा जिसमें चुनाव आयोग को उन राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है जो चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा नहीं करते। यह याचिका भाजपा नेता व वकील अश्विनी उपाध्याय के द्वारा दायर की है।

उपाध्याय ने चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इसे सुनवाई के लिए जल्द सूचीबद्ध कीया जाए। उपाध्याय ने कहा, प्रथम चरण के मतदान के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है और राजनीतिक दल व उम्मीदवार सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व आदेशों का खुला उल्लंघन कर रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम इस मसले पर विचार करेंगे। हम आपको तारीख देंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दागी उम्मीदवारों को टिकट देने वाले दलों के लिए अपनी वेबसाइटों पर उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास का खुलासा करने के अलावा इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया में इसका विवरण देना अनिवार्य होगा।