नगर निकाय के नतीजे आगामी लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव के लिए एक बड़ा संदेश दे रही….

बिहार के 17 नगर-निगमों में महापौर, उप महापौर और पार्षदों के परिणाम आ गए हैं। इन नतीजों ने हर किसी को हैरान कर दिया है। ये भले ही दलगत चुनाव नहीं थे, लेकिन इन नतीजों से खासतौर पर बिहार की सत्ता में काबिज महागठबंधन को बड़ा सियासी संदेश मिला है। नतीजों पर नजर डालें तो गया को छोड़कर 16 शहरों में महिलाएं महापौर बनी हैं। वह भी तब, जब केवल सात सीटें ही महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। मतलब इस बार नगर निकाय चुनाव में महिलाओं का डंका बजा है।

17 में से छह नगर निगम में भारतीय जनता पार्टी समर्थित महापौर चुना गया है, जबकि छह पर ही महाठबंधन समर्थित प्रत्याशियों को जीत मिली है। समस्तीपुर से कांग्रेस समर्थित अनीता राम मेयर चुनी गईं हैं। चार अन्य पर निर्दलीय प्रत्याशियों ने परचम लहराया।

पहले महापौर और उप महापौर के चुनावी नतीजों को जान लीजिए….

बिहार के 17 नगर निगमों में महापौर और उप महापौर के चुनाव हुए। इसके अलावा 49 नगर पंचायत और दो नगर परिषद में मुख्य पार्षद और उप-मुख्य पार्षद के लिए हुए चुनाव के नतीजे भी आ गए हैं। नतीजों पर नजर डालें तो जिन 17 नगर निगम में महापौर के लिए चुनाव हुए उनमें छह पर भारतीय जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवारों की जीत हुई है। इनमें पटना में सीता साहू, भागलपुर में डॉ. वसुंधरा लाल, मुजफ्फरपुर में निर्मला देवी, कटिहार में उषा देवी अग्रवाल, आरा से इंदु देवी, छपरा से राखी गुप्ता शामिल हैं।

वहीं, महागठबंधन समर्थित गया के प्रत्याशी वीरेंद्र कुमार उर्फ गणेश पासवान, मोतिहारी की प्रीति गुप्ता, पूर्णिया की विभा कुमारी, मुंगेर की कुमकुम देवी और बेगूसराय की पिंकी देवी चुनाव जीती हैं। मतलब राजद, जेडीयू समर्थित उम्मीदवारों ने मिलकर चुनाव लड़ा फिर भी केवल छह प्रत्याशी ही महापौर बन पाए, जबकि भाजपा ने अकेले दम पर अपने छह प्रत्याशियों को महापौर बनवा दिया। उप महापौर की बात करें तो भाजपा समर्थित तीन और महागठबंधन समर्थित पांच प्रत्याशी चुनाव जीते हैं। ओवरऑल बिहार के चार बड़े नगर निगमों में से तीन पर इस बार भारतीय जनता पार्टी ने कब्जा जमा लिया है, जबकि महागठबंधन के खाते में सिर्फ एक नगर निगम गया है।

क्या संदेश दे रहे ये नतीजे? 
 कुढ़नी और फिर नगर निकाय के नतीजे एक तरह से बिहार सरकार के लिए चेतावनी देने वाले हैं। राजद और जदयू ने काफी घोषणाएं कर रखी हैं, जिसे पूरा करने में समय लग रहा है। ऐसे में लोगों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। इसका असर भी इन चुनावों में देखने को मिला। महागठबंधन ने पिछड़ी जातियों पर फोकस किया। भाजपा ने इसकी काट निकालने के लिए दलित और सवर्ण वोटर्स को एक साथ लाने की कोशिश शुरू कर दी है। इसके अलावा पिछड़े वोटर्स के बीच भी पार्टी ने सेंधमारी का फॉर्मूला तैयार कर लिया है। कुढ़नी के बाद नगर निकाय चुनावों में भी इसी फॉर्मूले के साथ भाजपा आगे बढ़ी। अब लोकसभा चुनाव में भी इसे मजबूत बनाने का काम होगा।