मुजफ्फरपुर के लीची बागानों पर पड़ रहा लॉकडाउन का असर, लीची खरीदने नहीं आ रहे व्यापारी, 500 करोड़ रु. के नुकसान की आशंका

बिहार में एक ओर कोरोना वायरस संक्रमित की संख्या बढ़ रहे है वही मुजफ्फरपुर के लीची किसानों को लॉकडाउन ने चिंता बढ़ा दी है। इस बार पेड़ों पर लीची तो खूब लगी है, लेकिन इनके खरीदार गायब हैं। बिहार में व्यापारी हर साल मार्च के आखिरी हफ्ते या अप्रैल के शुरुआत में लीची खरीदने के लिए इनके बागों में घूमना शुरू कर देते हैं। वे लीची के पेड़ों पर लगे मंजर को देखकर दाम तय करते हैं। लेकिन लॉकडाउन की वजह से व्यापारी इस बार लीची नहीं खरीद रहे हैं।

सबसे ज्यादा लीची मुजफ्फरपुर में ही होती है

देश में लीची की खेती ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक और उत्तराखंड में होती है। देश में कुल 56 हजार स्क्वायर फीट में इसकी खेती होती है। इसमें बिहार का हिस्सा 36 हजार स्क्वायर फीट है। यहां सबसे ज्यादा लीची मुजफ्फरपुर में ही होती है।

किसानों को इस बार बड़ा नुकसान

लीची किसान बताते हैं कि जिले के किसान व्यापारियों से पांच साल या दस साल का अनुबंध कर लेते हैं। वे पांच साल का पूरा पैसा ले लेते हैं। उन्हें तो लॉकडाउन से कोई दिक्कत नहीं है लेकिन, कई ऐसे किसान हैं जो एक या दो साल के लिए ही अनुबंध करते हैं। कई ऐसे भी किसान हैं, जिनका पांच साल या दस साल का अनुबंध पूरा हो गया है। इन किसानों को इस बार बड़ा नुकसान हो रहा है।

मुजफ्फरपुर में करीब 700 करोड़ का कारोबार

हर साल लीची से करीब 700 करोड़ का कारोबार सिर्फ मुजफ्फरपुर में होता है। बिहार के दूसरे जिले को भी मिला दिया जाए तो आंकड़ा एक हजार करोड़ पार कर जाता है। मुजफ्फरपुर की शाही लीची इतनी फेमस है कि बेगूसराय, समस्तीपुर, मोतिहारी और वैशाली के किसान भी मुजफ्फरपुर के लीची के नाम से अपना माल बेचते हैं और उन्हें इससे अच्छी आमदनी भी हो जाती है।