संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करने करते हुए सुहागिन महिलाओं ने आज जितिया का व्रत रखा है। जिउतिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है। जिउतिया व्रत मुख्यरूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और झारखंड में बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। जिउतिया व्रत को मुख्य रूप से संतान की सुख और समृद्धि की कामना के लिए किया जाता है।
कैसे रखा जाता है यह व्रत
जितिया व्रत तीन दिनों तक चलता है। व्रत के पहले दिन नहाए खाए, दूसरे दिन पर निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन पारण किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक रखा जाता है। अष्टमी तिथि का प्रारंभ 09 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 35 मिनट से होगा। यह तिथि 10 सितंबर, गुरुवार को दोपहर तीन बजकर 4 मिनट पर रहेगी।
जितिया व्रत के एक दिन पहले महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा करती है फिर इसके बाद भोजन करती हैं। इसके बाद जितिया व्रत के पारण करने के बाद ही अन्न को ग्रहण करेंगी। जितिया व्रत में व्रती महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। पारण वाले दिन पर सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खाती हैं। जितिया व्रत वाले दिन पर झोर भात, भरुवा की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।
जितिया का क्या है ऐतिहासिक महत्व
इस व्रत की कथा महाभारत काल से संबंधित है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, परंतु वे द्रोपदी की पांच संतानें थीं। फिर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बनाकर उसकी दिव्य मणि ले ली।
अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।
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