भारतेंदु जयंती पर कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स में संगोष्ठी का आयोजन, सफलता के लिए मन की पवित्रता और उस पर नियंत्रण ज़रूरी – डॉ जे बी पांडेय

भारतेंदु जयंती के अवसर पर गुरूवार को कालेज आफ कामर्स आर्ट्स एण्ड साइंस पटना में आईक्यूएसी के तत्वावधान में ‘सफलता का राज’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य तपन कुमार शांडिल्य ने की।

संगोष्ठी को मुख्य अतिथि के रुप में संबोधित करते हुए हिन्दी के विद्वान और रांची विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जे. बी. पांडे ने कहा कि भारतेंदु आधुनिक हिंदी के जनक माने जाते हैं और वे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। सफलता के राज विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सफलता के लिए मन की पवित्रता और उस पर नियंत्रण अपेक्षित है। मन के पूर्व ‘न’ लगाने से ‘नमन’ बनता है और पीछे लगाने से ‘मनन’ बनता है। अर्थात मन को नमन करना सिखाइए और उसे ‘मनन’ अर्थात चिंतन एवं पठन में लगाएं। अर्थात नमन + मनन = ज्ञान की प्राप्ति = सफलता

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि भारतेंदु ने 35 वर्ष की आयु में हिंदी साहित्य को जितना कुछ दे दिया वह अप्रतिम है। उनके साहित्य सेवा से खुश होकर काशी के पंडित ने उन्हें भारतेंदु की उपाधि प्रदान की। उन्होंने कहा कि हमारे सामने भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग के प्रतिनिधि कवि/लेखक के रूप में आते हैं। प्राचार्य तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि  भारतेंदु का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, वे संपादक और संगठनकर्ता थे, वे साहित्यकारों के नेता और समाज को दिशा देने वाले सुधारवादी विचारक थे, उनके आसपास तरुण और उत्साही साहित्यकारों की पूरी जमात तैयार हुई, अतः इस युग को भारतेंदु-युग की। संज्ञा देना उचित है।

इस अवसर पर प्रोफेसर (डॉ) अशोक अंशुमाली के अनुसार प्राचीन से नवीन के संक्रमण काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतवासियों की नवोदित आकांक्षाओं और राष्ट्रीयता के प्रतीक थे; वे भारतीय नवोत्थान के अग्रदूत थे जय भारत जय भारती जिस समय खड़ी बोली गद्य अपने प्रारम्भिक रूप में थी, उस समय हिन्दी के सौभाग्य से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने राजा शिवप्रसाद तथा राजा लक्ष्मण सिंह की आपस में विरोधी शैलियों में समन्वय स्थापित किया और मध्यम मार्ग अपनाया।

डॉ मुकेश कुमार ओझा ने कहा कि भारतेंदु युग को पुनर्जागरणकाल की संज्ञा दी है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता को रीति कालीन दरबारी तथा श्रृंगार प्रधान वातावरण से निकाल कर उसका जनता से नाता जोड़ा। भारतेंदु युग की कविता में प्राचीन और आधुनिक काव्य-प्रवृत्तियों का समन्वय दिखाई देता है।

डॉ मनोज कुमार ने बताया कि  इस युग की कविता में देश और जनता की भावनाओं और समस्याओं को पहली बार अभिव्यक्ति मिली। कवियों ने सांस्कृतिक गौरव का चित्र प्रस्तुत कर लोगों में आत्म-सम्मान की भावना भरने का प्रयत्न किया। भारतेंद युगीन राष्ट्रीयता के दो पक्ष थे- देशप्रेम और राजभक्ति। बहुत से संस्कृत महाकाव्यों का अनुवाद हुआ। अंग्रेजी काव्य कृतियों के भाषांतरण का समारंभ भी भारतेंदु युग में हुआ। युग में काव्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही। यद्यपि खड़ी बोली में भी छुट-पुट प्रयत्न हुए, पर वे नगण्य ही थे।

डॉ विनीता गुप्ता ने कहा कि भारतेंदु युग (सन् 1868 से 1900 ई.) आधुनिकता का प्रवेश द्वार माना जाता है। कहना न होगा कि भारतेंदु को ही हिंदी में आधुनिकता और पुनर्जागरण के प्रवर्तक और पितामह माने जाते हैं। डॉ मनोज गोवर्धनपुरी ने अपने उद्गार व्यक्त किए।

प्राचार्य बुद्ध की तस्वीर देकर अतिथि को सम्मानित किया। सभा का संचालन डॉ अजय कुमार और धन्यवाद ज्ञापन डॉ कंचना सिंह ने किया। वहीं राष्ट्रगान के साथ सभा का समापन संपन्न हुआ।