छठ महापर्व का आज दूसरा दिन, शाम में छठ का खरना पूजा, खरना प्रसाद का क्या है महत्व, यह भी जानें

चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत हो गई है। यह प्रकृति को चलाने वाले सूर्यदेव की उपासना का पर्व है। यह देवी कात्यायनी से आशीर्वाद मांगने का पर्व है। आज खरना है। इसमें महिलाएं उपवास रखती हैं। शाम को मिट्टी के नए चूल्हे पर गुड़ की खीर का महाप्रसाद बनाती हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद से ही निर्जला व्रत की शुरुआत हो जाती है। इसका पारण अगले दिन सूर्य देने के बाद ही किया जाता है।

मिट्टी के चूल्हे पर बनता है खऱना का प्रसाद

छठ पर्व में शुद्धता का विशेष महत्व माना जाता है। अधिकतर छठवर्ती खरना का प्रसाद मिट्टी के बने नये चूल्हे पर ही बनातीं हैं। खरना पूजा के समय और प्रसाद ग्रहण करते समय बाहर से तेज आवाज नहीं आना चाहिए। इस दौरान घर से सदस्यों को तेज आवाज में बोलने या बम-फटाका फोड़ने या कोई अन्य तेज आवाज काम करने से मना किया जाता है। क्यों कि मान्यता है कि खरना पूजा के समय या खरना प्रसाद ग्रहण करते समय तेज आवाज सुनने या शोर-शराबा व्रत में बाधा उत्पन्न करती है। मान्यता यह भी है प्रसाद ग्रहण करते समय व्रती के कान में तेज आवाज आने से वह तत्काल भोजन छोड़ देती हैं। इसलिए तेज आवाज न हो, इसका खास ध्यान रखा जाता है।

20 नवंबर को अर्घ्य देने तक निर्जला

नहाय खाय में शुद्ध-सात्विक भोजना मिला, लेकिन उसमें सेंधा नमक रहेगा। खरना के दिन, मतलब सूर्यादय से शाम में पूजा होने तक जल भी ग्रहण नहीं करना है। खरना पूजा 18 नवंबर को है। सूर्यास्त के बाद शाम में भोजन ग्रहण करने से पहले एकाग्रता से छठी मैया का पूजन किया जाता है। छठी मैया का विधिवत पूजन यानी दीप प्रज्वलन, पुष्प अर्पण, सिंदूर अर्पण इत्यादि क्रम से पूजन किया जाता है। इसके बाद मीठा भोजन ग्रहण करना है। मुख्यतः खीर, घी लगी रोटी अथवा घी में तली पूड़ी एवं फल ग्रहण किया जाता है। इस दिन व्रती यही सब भोजन करते हैं। पूजा के समय उसी कमरे में खाने के साथ जो पानी पी सके, उसके बाद सुबह के अंतिम अर्घ्य के बाद ही अन्न-जल ग्रहण का विकल्प होता है। मतलब, 18 नवंबर को एक बार शाम में मीठा खाना और पानी। फिर, सीधे 20 नवंबर को अर्घ्य देने तक निर्जला।