प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को 68वीं बार ‘मन की बात’ के जरिये संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत में टॉय इंडस्ट्री को बड़ी भूमिका निभानी है। असहयोग आंदोलन के समय गांधीजी ने कहा था कि यह भारतीयों में आत्मविश्वास जगाने का आंदोलन है। ऐसा ही हमें आत्मनिर्भर भारत आंदोलन के साथ भी है।
देश में सादगी से हो रहा हर आयोजन
मेरे प्यारे देशवासियो नमस्कार, देश में हो रहे हर आयोजन में जिस तरह का संयम और सादगी इस बार देखी जा रही है, वो अभूतपूर्व है। हम बहुत बारीकी से अगर देखेंगे, तो एक बात अवश्य हमारे ध्यान में आएगी- हमारे पर्व और पर्यावरण। इन दोनों के बीच एक बहुत गहरा नाता रहा है।
अंतरराष्ट्रीय त्योहार बन रहा है ओणम
इन दिनों ओणम का पर्व भी धूम-धाम से मनाया जा रहा है। ये पर्व चिंगम महीने में आता है। इस दौरान लोग कुछ नया खरीदते हैं, अपने घरों को सजाते हैं, पूक्क्लम बनाते हैं, ओनम-सादिया का आनंद लेते हैं, तरह-तरह के खेल और प्रतियोगिताएं भी होती हैं। ओणम की धूम तो, आज, दूर-सुदूर विदेशों तक पहुंची हुई है। अमेरिका हो, यूरोप हो, या खाड़ी देश हों, ओणम का उल्लास आपको हर कहीं मिल जाएगा। ओणम एक अंतरराष्ट्रीय त्योहार बनता जा रहा है।
इस कालखंड में देश कई मोर्चों पर लड़ रहा है
हमारे किसानों ने कोरोना की इस कठिन परिस्थितियों में भी अपनी ताकत को साबित किया है। कोरोना के इस कालखंड में देश कई मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है, लेकिन इसके साथ-साथ, कई बार मन में ये भी सवाल आता रहा कि इतने लंबे समय तक घरों में रहने के कारण, मेरे छोटे-छोटे बाल-मित्रों का समय कैसे बीतता होगा।
खिलौने हमारी आकांक्षाओं को देते हैं उड़ान
साथियो, हमारे चिंतन का विषय था- खिलौने और विशेषकर भारतीय खिलौने। हमने इस बात पर मंथन किया कि भारत के बच्चों को नए-नए खिलौने कैसे मिलें, भारत, खिलौना उत्पादन का बहुत बड़ा हब कैसे बने। साथियो, खिलौने जहां गतिविधि को बढ़ाने वाले होते हैं, वहीं खिलौने हमारी आकांक्षाओं को भी उड़ान देते हैं। बच्चों के जीवन के अलग-अलग पहलू पर खिलौनों का जो प्रभाव है, इस पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी बहुत ध्यान दिया गया है।
भारत के कुछ क्षेत्र खिलौनों के केंद्र के रूप में हो रहे हैं विकसित
हमारे देश में लोकल खिलौनों की बहुत समृद्ध परंपरा रही है। कई प्रतिभाशाली और कुशल कारीगर हैं, जो अच्छे खिलौने बनाने में महारत रखते हैं। भारत के कुछ क्षेत्र टॉय क्लस्टर्स यानी खिलौनों के केंद्र के रूप में भी विकसित हो रहे हैं। जैसे, कर्नाटक के रामनगरम में चन्नापटना, आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा में कोंडापल्ली, तमिलनाडु में तंजौर, असम में धुबरी, उत्तर प्रदेश का वाराणसी- कई ऐसे स्थान हैं, कई नाम गिना सकते हैं।
एति-कोप्पका टॉयज एक समय में थे बहुत प्रचलित
अब आप सोचिए कि जिस राष्ट्र के पास इतनी विरासत हो, परंपरा हो, विविधता हो, युवा आबादी हो, क्या खिलौनों के बाजार में उसकी हिस्सेदारी इतनी कम होनी, हमें अच्छा लगेगा क्या? जी नहीं, ये सुनने के बाद आपको भी अच्छा नहीं लगेगा। अब जैसे आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में श्रीमान सी.वी. राजू हैं। उनके गांव के एति-कोप्पका टॉयज एक समय में बहुत प्रचलित थे। इनकी खासियत ये थी कि ये खिलौने लकड़ी से बनते थे, और दूसरी बात ये कि इन खिलौनों में आपको कहीं कोई एंगल या कोण नहीं मिलता था।
आत्मनिर्भर भारत में वर्चुअल गेम्स और टॉयज में सबको निभानी है अहम भूमिका
साथियो, इसी तरह, अब कंप्यूटर और स्मार्टफोन के इस जमाने में कंप्यूटर गेम्स का भी बहुत ट्रंड है। ये गेम्स बच्चे भी खेलते हैं, बड़े भी खेलते हैं। लेकिन, इनमें भी जितने गेम्स होते हैं, उनकी थीम्स भी अधिकतर बाहर की ही होती हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान में वर्चुअल गेम्स हों, टॉयज का सेक्टर हो, सभी ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। 100 वर्ष पहले, गांधी जी ने लिखा था कि ’असहयोग आंदोलन, देशवासियों में आत्मसम्मान और अपनी शक्ति का बोध कराने का एक प्रयास है।’
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