कोर्ट ने कहा, परिवार के सदस्य सरकारी नौकरी में हैं तो नहीं की जा सकती दूसरे सदस्य की अनुकंपा पर बहाली, देरी से किया गया दावा अनुकंपा नियुक्ति के आधार को बनाता है कमजोर

symbols of justice and law on table of judge

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सेवा संबंधी एक मामले में फैसले के बाद अब पटना हाईकोर्ट ने अपने एक अलग फैसले में कहा है कि जब परिवार का एक सदस्य सरकारी नौकरी में है तो परिवार के किसी अन्य सदस्य को अनुकम्पा पर नौकरी नहीं दी जा सकती।

न्यायमूर्ति डॉ. अनिल कुमार उपाध्याय की एकल पीठ ने हरेंद्र कुमार की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। साथ ही दायर अर्जी को खारिज कर दिया। इसके पूर्व कोर्ट को बताया गया कि आवेदक के पिता पुलिस विभाग में तैनात थे। नौकरी में रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। पिता के मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी के लिए आवेदक ने विभाग में आवेदन को दिया। विभाग ने यह कहते हुए उनके आवेदन को नामंजूर कर दिया कि परिवार के अन्य सदस्य सरकारी नौकरी में हैं तो परिवार के दूसरे सदस्य को अनुकंपा पर बहाली नहीं की जा सकती।

विभाग के निर्णय को मृतक कर्मी के दूसरे पुत्र ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा पर नौकरी पाना किसी कर्मी के सदस्य का अधिकार नहीं है। यह व्यवस्था कर्मी की मृत्यु के बाद परिवार में वित्तीय संकट उत्पन्न नहीं हो, इसलिए सरकार ने यह नीति बनाई है। परिवार को वित्तीय सहायता करने के उद्देश्य से यह योजना लागू की गई है, लेकिन जब परिवार के ही अन्य सदस्य पहले से सरकारी नौकरी में हैं तो दूसरे सदस्य को अनुकम्पा पर नौकरी नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि आवेदक ने भी माना है कि उसका एक भाई पहले से सरकारी नौकरी में है। ऐसे में उन्हें आर्थिक मदद की कोई जरूरत नहीं है। कोर्ट ने विभाग के अनुकंपा पर नौकरी नही देने के निर्णय को सही ठहराते हुए अर्जी को खारिज कर दिया।

देरी से किया गया दावा अनुकंपा नियुक्ति के एकमात्र आधार को बनाता है कमजोर

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने सेवा संबंधी एक मामले में कहा है कि सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को दी जाने वाली अनुकंंपा नियुक्ति के लिए दावेदार के बालिग होने का इंतजार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा है कि यदि मृत कर्मचारी का आश्रित वर्षों बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा करता है व देरी से दावे का आधार उसका उस समय बालिग नहीं होना है तो यह अनुकंपा नियुक्ति की अवधारणा के विपरीत है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि देरी से किया गया दावा अनुकंपा नियुक्ति के एकमात्र आधार को कमजोर करता है।

यह निर्णय जस्टिस इरशाद अली की एकल पीठ ने विजय लक्ष्मी यादव की याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया था कि याची के पिता आजमगढ जनपद में सिविल पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे। डाकुओं के साथ मुठभेड़ में 22 जुलाई 1985 को वह वीरगति को प्राप्त हुए। उस समय याची की उम्र मात्र 17 महीने थी। 18 वर्ष की उम्र होने के लगभग तीन साल बाद वर्ष 2005 में उसने अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। विभाग से संतोषजनक जवाब न मिलने पर लगभग 15 साल बाद उसने वर्तमान याचिका दाखिल की।

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति एक अपवाद है। इसके तहत नियुक्ति देते समय शर्तों का सख्ती से पालन आवश्यक है। कोर्ट ने आगे कहा कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के कारण उसके परिवार के समक्ष आया तात्कालिक वित्तीय संकट ही अनुकंपा नियुक्ति का एकमात्र आधार है। यदि अनुकंपा नियुक्ति के दावे में देर की जाती है तो यह उपधारणा की जाएगी कि तात्कालिक वित्तीय संकट समाप्त हो चुका है। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का दावा करने वाले व्यक्ति के न तो बालिग होने का और न ही उसके अतिरिक्त शैक्षिक योग्यता अर्ज‍ित करने का इंतजार किया जा सकता है।