भारत में रहनेवाले अल्पसंख्यक हिंदुओं को केंद्र सरकार क्या दिला पाएगी अल्पसंख्यको के अधिकार।

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि जिन राज्यों में हिंदुओं की संख्या कम है वहाँ की सरकारें उन्हें अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं।

केंद्र ने कहा है कि ऐसा होने की स्थिति में हिंदू इन राज्यों में, अपने अल्पसंख्यक संस्थान स्थापित और संचालित कर सकते हैं।

केंद्र ने बताया कि जैसे महाराष्ट्र ने 2016 में यहूदियों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया गया था। वैसे ही राज्य, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक का दर्जा हिंदुओं को दिया जा सकता हैं। कर्नाटक ने भी उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती को अपने राज्य में अल्पसंख्यक भाषाओं का दर्जा दिया है।

केंद्र ने कहा, “राज्य सरकारें ऐसे समुदायों के संस्थानों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दे सकती हैं।”केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफ़नामा दाख़िल कर ये जानकारी दी है।

ये हलफ़नामा एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका के बाद दायर किया गया है जिसमें उन्होंने दावा किया था कि लदाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल, पंजाब और मणिपुर में यहूदी, बहाई और हिंदू धर्म के लोग अपने संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान के तौर पर संचालित नहीं कर सकते।

केंद्र सरकार ने हलफ़नामें में लिखा, “इन राज्यों में वे अपने शिक्षण संस्थानों को स्थापित और संचालित कर सकते हैं। अल्पसंख्यक के तौर पर पहचान के विषय में संबंधित राज्य फ़ैसला कर सकते हैं।” केंद्र सरकार ने कहा कि अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन का मकसद अल्पसंख्यकों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए किय गया था ताकि हर नागरिक राष्ट्र निर्माण में हिस्सा ले सके

इस मामले में वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर की थी।

सिर्फ़ राज्यों को अधिकार नहीं

इसके अलावा केंद्र ने ये भी कहा कि सिर्फ़ राज्यों को अल्पसंख्यकों के विषय पर कानून बनाने का अधिकार नहीं दिया जा सकता क्योंकि ये संविधान और सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के विपरीत होगा। केंद्र ने कहा, “संविधान की आर्टिकल 246 के तहत संसद ने ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक्ट 1992’ को कानून बनाया है। अगर ये मान लिया जाए कि सिर्फ़ राज्यों को ही अल्पसंख्यकों के विषय में कानून बनाने का हक़ है तो संसद की शक्ति का हनन होगा और ये संविधान के ख़िलाफ़ है।”

केंद्र ने अपनी दलील में टीएमए पाई और बाल पाटिल के केसों का भी ज़िक्र किया।

पीआईएल में क्या कहा गया था?

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में वकील अश्विनी उपाध्याय ने अदालत से कहा था कि वे केंद्र राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान करने के लिए निर्देश जारी करे क्योंकि दस राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन उन्हें अल्पसंख्यकों के लिए दी जानी वाली सुविधाएं नहीं मिल रही हैं।

उपाध्याय की याचिका में कहा गया है, “कई धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक पूरे भारत में फैले हुए हैं। उन्हें किसी राज्य या केंद्र शासित राज्य में सीमित नहीं किया जा सकता है।”

बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने हिंदुओं को अल्पसंख्य का दर्जा वाली ख़बर की क्लिपिंग के साथ ट्वीट किया है, “हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलेगा।” सुप्रीमकोर्ट में इस मसले पर उपाध्याय ने ही जनहित याचिका दायर की थी।

इसके अलावा उन्होंने एक वीडियो ट्वीट करके ये भी सवाल उठाया है कि क्या देश को अल्पसंख्यक आयोग या अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय की ज़रूरत है?

उन्होंने कहा कि भारत संविधान से चलता है और इस संविधान में कहीं भी अल्पसंख्यक मंत्रालय या अल्पसंख्यक आयोग का ज़िक्र नहीं है। उपाध्याय ने कहा, “संविधान में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन का ज़िक्र है, और वो सबके लिए बना हुआ है। जब एनएचआरसी है सबके लिए, तो फिर एक अलग से धार्मिक आधार पर कमीशन की क्या ज़रूरत है।”